नाराज मुस्लिमों को रिझाने के लिए शहाबुद्दीन की पत्नी को वापस लाने की फिराक में राजद, जानें कैसे डाले जा रहे डोरे
पटना : राष्ट्रीय जनता दल (राजद) ने 23 सीटों पर चुनाव लड़ा था। इनमें से उन्हें सिर्फ 4 सीटों पर ही जीत मिली है। राजद बाकी सीटें हार गई। यही नहीं, सारण से राजद सुप्रीमो पूर्व सीएम लालूप्रसाद यादव की बेटी रोहिणी आचार्य 13 हजार 471 मतों से पराजय का स्वाद चखना पड़ा। इस हार की समीक्षा के बाद लालूयादव को पता चला है कि उन्हें मुस्लिमों की हार का खमियाजा भुगतना पड़ा है। इसके बाद लालू एंड टीम सीवान के इलाके में मुस्लिमों को नाराजगी दूर करने की कवायद में जुट गई है। इसके लिए पूर्व सांसद शहाबुद्दीन की पत्नी हिना शहाब को वापस राजद से जोड़ने की कोशिश शुरू हो गई है। राजद के नेताओं का मानना है कि अगर हिना शहाब राजद से जुड़ी होतीं तो सारण के चुनाव के नतीजे ही अलग होते। इसलिए हिना शहाब को राजद से जोड़ कर सीवान इलाके में पार्टी को मजबूत करने के प्रयास शुरू कर दिए गए हैं ताकि विधानसभा में मुस्लिम वोट बैंक का फायदा उठाया जा सके।
हिना व ओसामा की लालू से मुलाकात के बाद चर्चा
हिना शहाब के राजद में जाने की अटकलें तेज हो गई हैं। इसी बीच पूर्व सांसद शहाबुद्दीन की पत्नी हिना शहाब और उनके बेटे ओसामा ने बुधवार की रात राजद एमएलसी विनोद जयसवाल के आवास पर लालू प्रसाद यादव से मुलाकात की है। इसके बाद कयास लगाए जा रहे हैं कि जल्द ही हिना शहाब के राजद में ज्वाइनिंग का एलान कर दिया जाएगा। हालांकि, हिना शहाब या ओसामा की तरफ से इस मुलाकात के बारे में सार्वजनिक तौर से कुछ भी नहीं कहा गया है। मगर, माना जा रहा है कि सीवान इलाके में राजनीतिक ऊंट करवट ले रहा है।
राज्यसभा या विधानसभा किसे चुनेंगी हिना
राजनीतिक गलियारे में कयास लगाए जा रहे हैं कि जल्द ही राजद हिना शहाब को एक राजनीतिक मुकाम देगी। चर्चा है कि हिना शहाब को राज्यसभा भेजा जा सकता है। राज्यसभा के उपचुनाव होने वाले हैं। वहीं, यह भी चर्चा है कि अगर हिना शहाब राज्यसभा नहीं जाना चाहती हैं। वह बिहार की राजनीति में ज्यादा दिलचस्पी ले रही हैं। इसलिए, उन्हें सीवान में ही रघुनाथपुर से विधानसभा का टिकट दिया जा सकता है।
सीवान व सारण से हार के बाद राजद चिंतित
लोकसभा चुनाव में लालू यादव की पार्टी राजद कभी अपना गढ़ माने जाने वाले सीवान और सारण से ही चुनाव हारा गई। सीवान से राजद के टिकट पर शहाबुद्दीन ने 1996, 1998, 1999 और 2004 में लोकसभा के चुनाव जीते थे। सूत्र बताते हैं कि राजद को हराने में हिना शहाब का खासा योगदान रहा। हिना शहाब ने सीवान और सारण में राजद के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था। इन दोनों सीटों पर हुए मतदान में शहाबुद्दीन फैक्टर हावी रहा और मुस्लिमों ने राजद को सबक सिखाया। मुस्लिमों की नाराजगी के चलते राजद इन दोनों सीटों पर चुनाव हार गया। सूत्र बताते हैं कि लालूयादव को सारण और सीवान की हार काफी खल रही है। इसीलिए, वह इन दोनों सीटों पर सियासी समीकरण राजद के पक्ष में करना चाहते हैं।
उपचुनाव में किसका पलड़ा रहेगा भारी
राजद की मीसा भारती और भाजपा के विनोद ठाकुर लोकसभा चुनाव जीत गए हैं। इस वजह से राज्यसभा में इनकी सीटें खाली हो गई हैं। अगर हिना शहाब मीसा भारती की सीट पर राज्यसभा का चुनाव लड़ती हैं और जीत भी जाती हैं तो उनका कार्यकाल सात जुलाई 2028 तक ही रहेगा। क्योंकि, मीसा भारती का कार्यकाल उतना ही बचा था। अब राज्यसभा में दो सीटों पर उप चुनाव की स्थिति में भाजपा का पलड़ा भारी है। राजद उम्मीदवार की जीत पर संदेह बरकरार है। विधानसभा में भाजपा के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के कुल 128 और इंडिया महागठबंधन के 115 विधायक हैं। इस राजनीतिक स्थिति में राज्यसभा के दोनों उम्मीदवार जीत दर्ज कर सकते हैं। यही वजह है कि हिना शहाब राज्यसभा का उपचुनाव नहीं लड़ना चाहती हैं।
शहाबुद्दीन की मौत के बाद के आई थी खटास
शहाबुद्दीन पूर्व सीएम लालूप्रसाद यादव के करीबी माने जाते थे। मगर शहाबुद्दीन की मौत के बाद उनके परिवार और लालू यादव के बीच खटास आ गई थी। परिवार के लोगों का आरोप था कि शहाबुद्दीन के जेल में निधन के बाद राजद का शीर्ष नेतृत्व उनके साथ नहीं खड़ा हुआ। यही वह वक्त था जब परिवार को राजद की जरूरत थी। दिल्ली के अस्पताल में शहाबुद्दीन के ओसामा अकेले ही दौड़ धूप कर रहे थे। बताते हैं कि कुछ मुस्लिम नेताओं ने राजद से संपर्क साधने की कोशिश की थी मगर, नतीजा सिफर रहा था। हालांकि बाद में तेज प्रताप यादव शहाबुद्दीन के घर गए थे। शहाबुद्दीन के समर्थक हिना शहाब को राज्यसभा भेजने की मांग करते रहते थे। मगर, राजद ने उनकी इस मांग की तरफ कोई ध्यान नहीं दिया। इसी वजह से इस लोकसभा चुनाव में हिना शहाब निर्दलीय चुनाव लड़ गईं। इसकी वजह से राजद सीवान से बुरी तरह हार गई। सारण में अपनी बेटी को जिताने के लिए लालू कई दिन तक कैंप करते रहे मगर, उन्हें मुस्लिमों की नाराजगी झेलनी पड़ी और अपनी बेटी को नहीं जिता सके।