हिंडनबर्ग रिपोर्ट 2.0 के बाद जानें कौन है विलेन कांग्रेस या बीजेपी, क्या है पूरा मामला
नई दिल्ली: जनवरी 2023 में हिंडनबर्ग रिसर्च ने अडानी ग्रुप पर शेयरों में हेरफेर और अकाउंटिंग फ्रॉड के गंभीर आरोप लगाए थे। इससे अडानी ग्रुप की कंपनियों के शेयरों में लगभग 150 अरब डॉलर की गिरावट आई थी। अब, हिंडनबर्ग की दूसरी रिपोर्ट के आने के बाद, भारतीय शेयर बाजार में वैसी हलचल नहीं देखी गई। जैसा कि पहली रिपोर्ट के समय हुआ था।
हिंडनबर्ग रिपोर्ट के बाद भारतीय निवेशकों का विश्वास शायद कम हुआ है और इसने SEBI (सिक्योरिटीज एंड एक्सचेंज बोर्ड ऑफ इंडिया) की भूमिका पर भी सवाल उठाए हैं। SEBI पर बाजार में पारदर्शिता और निष्पक्षता बनाए रखने की जिम्मेदारी है। लेकिन हिंडनबर्ग के आरोपों के बाद इसकी कार्यप्रणाली पर विवाद खड़ा हो गया है।
सरकार की भूमिका पर सवाल
राजनीतिक हलकों में भी इस मुद्दे ने जोरदार चर्चा को जन्म दिया है। विपक्षी दलों ने SEBI की निष्पक्षता और सरकार की भूमिका पर सवाल उठाए हैं। कांग्रेस ने हिंडनबर्ग रिपोर्ट के संबंध में आक्रामक रुख अपनाया है, जबकि भारतीय जनता पार्टी (भा.ज.पा.) रिपोर्ट को खारिज करने में जुटी है। इस विवाद ने संकेत दिया है कि दोनों पार्टियों के नफा और नुकसान इस रिपोर्ट से जुड़े हुए हैं, और यह मुद्दा भारतीय राजनीति में नई हलचल का कारण बन गया है।
हिंडनबर्ग की रिपोर्ट में दम
हिंडनबर्ग के रिपोर्ट में दम है
हिंडनबर्ग रिपोर्ट में आरोप लगाया गया है कि माधवी बुच, जो कि SEBI की वर्तमान प्रमुख हैं, के पति धवल बुच ने 22 मार्च 2017 को मॉरीशस फंड प्रशासक ट्राइडेंट ट्रस्ट को ईमेल भेजकर अपने और अपनी पत्नी के ग्लोबल डायनामिक अपॉर्च्युनिटी फंड में निवेश की जानकारी दी थी। धवल बुच ने उस समय फंड को अकेले ऑपरेट करने की भी मांग की थी। हिंडनबर्ग का आरोप है कि यह कदम SEBI में अहम भूमिका प्राप्त करने से पहले अपनी पत्नी के नाम को हटवाने के लिए उठाया गया था।
हिंडनबर्ग ने दावा किया है कि अडानी ग्रुप पर लगाए गए आरोपों के सबूत उनके पास हैं और 40 से अधिक स्वतंत्र मीडिया जांचों में भी यही बातें सामने आई हैं। हालांकि, SEBI की ओर से इस मामले में कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई है। इसके विपरीत, SEBI ने 27 जून 2024 को हिंडनबर्ग को अडानी के शेयरों में शॉर्ट पोजिशन लेने के कारण कारण बताओ नोटिस जारी किया है।
बचाव में जुटा हिंडनबर्ग
अडानी ग्रुप ने हिंडनबर्ग की रिपोर्ट को जानबूझकर बदनाम करने का प्रयास करार दिया है। अडानी ग्रुप का कहना है कि रिपोर्ट में जिन लोगों के नामों का जिक्र किया गया है, उनके साथ उनका कोई व्यावसायिक संबंध नहीं है और पहले लगाए गए आरोपों की गहन जांच के बाद सुप्रीम कोर्ट ने जनवरी 2024 में इन्हें खारिज कर दिया है।
बुच दंपति ने आरोपों को बताया निराधार
वहीं, बुच दंपति ने इन आरोपों को निराधार बताते हुए SEBI की विश्वसनीयता पर हमला और SEBI चेयरपर्सन के चरित्र हनन की कोशिश का आरोप लगाया है। उनका कहना है कि हिंडनबर्ग द्वारा आरोपित विदेशी फंड का निवेश 2015 में हुआ था, जब वे प्राइवेट नागरिक थे, और संबंधित दस्तावेज पहले ही SEBI में जमा कर दिए गए हैं। SEBI चीफ ने आरोप लगाया है कि हिंडनबर्ग ने भारत में कई नियमों का उल्लंघन किया है और SEBI की विश्वसनीयता को धूमिल करने की कोशिश की है।
अदानी ग्रुप मामले में SEBI टीम का हिस्सा थीं माधवी बुच? बड़ा सवाल
क्या माधवी बुच, जो SEBI की प्रमुख हैं, अदानी ग्रुप मामले की जांच कर रही SEBI टीम का हिस्सा थीं? इस सवाल का स्पष्ट जवाब SEBI और माधवी बुच को देना चाहिए।
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, बीबीसी ने लिखा है कि माधवी बुच ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित छह सदस्यीय पैनल को अडानी मामले की जांच की जानकारी दी थी। यदि यह सच है, तो माधवी बुच बतौर SEBI प्रमुख इस जांच का हिस्सा रही हैं। आरोप यह भी है कि यदि बुच को पता था कि अडानी ग्रुप में उनका पूर्व निवेश था, तो उन्हें जांच से खुद को अलग कर लेना चाहिए था।
हालांकि, इस पर अब तक कोई स्पष्ट सफाई सामने नहीं आई है। यदि माधवी बुच और SEBI इस मुद्दे पर सफाई प्रदान कर देती हैं, तो यह SEBI और सरकार दोनों के लिए राहत की बात होगी।
इस षडयंत्र के बारे में जनता को मालूम चल गया है
हिंडनबर्ग रिसर्च की रिपोर्ट के बाद बाजार में अपेक्षित तूफान नहीं आया। यह स्पष्ट करता है कि जनता को हिंडनबर्ग की गतिविधियों और इसके संभावित षडयंत्रों का अंदाजा लग चुका है।
हिंडनबर्ग कंपनी शॉर्ट सेलर के रूप में प्रसिद्ध है। शॉर्ट सेलिंग एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें निवेशक उन स्टॉक्स को उधार लेते हैं जिनकी कीमत गिरने की उम्मीद होती है और उन्हें बेच देते हैं। जब स्टॉक की कीमत गिर जाती है, तो निवेशक उन्हें वापस खरीदते हैं और उधारदाता को लौटाते हैं, जिससे उन्हें लाभ होता है। हिंडनबर्ग अक्सर कंपनियों पर गंभीर आरोप लगाता है, जैसे कि वित्तीय अनियमितताएं या फ्रॉड, जिसके बाद उन कंपनियों के स्टॉक्स की कीमत में गिरावट आती है। यदि हिंडनबर्ग ने पहले से ही उन स्टॉक्स पर शॉर्ट सेलिंग की होती है, तो उन्हें इस गिरावट से वित्तीय लाभ होता है।
हाल ही में हिंडनबर्ग की रिपोर्ट के बाद भारतीय शेयर बाजार में कुछ कंपनियों के शेयरों की कीमतों में गिरावट देखी गई। इसके चलते विभिन्न मार्केट प्लेयर्स शॉर्ट सेलिंग और अन्य वित्तीय रणनीतियों का उपयोग करने लगे हैं। हालांकि, सोमवार को भारतीय शेयर बाजार में हिंडनबर्ग रिपोर्ट के कारण अपेक्षित तूफान देखने को नहीं मिला। यह संकेत है कि निवेशकों का अडानी ग्रुप पर विश्वास बना हुआ है और वे हिंडनबर्ग के आरोपों को गंभीरता से नहीं ले रहे हैं।
इस स्थिति ने साबित कर दिया है कि जनता अब इस षडयंत्र को पहचान चुकी है और भारतीय शेयर बाजार में स्थिति स्थिर रखने का प्रयास कर रही है।
आर्थिक से ज्यादा है राजनितिक मामला ?
हिंडनबर्ग रिपोर्ट की सच्चाई पर बहस जारी है, लेकिन इसके राजनीतिक पहलू ने इसे विवाद का केंद्र बना दिया है।
रिपोर्ट को लेकर यह धारणा बन रही है कि इसे राजनीतिक दुर्भावना के तहत तैयार किया गया है। हिंडनबर्ग की रिपोर्ट अक्सर संसद सत्र के दौरान आती है, जिससे यह प्रतीत होता है कि यह एक सोची-समझी रणनीति का हिस्सा हो सकती है। जैसे अमेरिकी निवेशक जॉर्ज सोरोस ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ अपनी मुखरता को लेकर प्रसिद्धि प्राप्त की है, उसी तरह हिंडनबर्ग की रिपोर्ट भी विपक्ष को सत्ता पक्ष को बदनाम करने के अवसर प्रदान करती है।
कांग्रेस पार्टी ने हिंडनबर्ग रिपोर्ट को लेकर नई जांच की मांग की है और आरोप लगाया है कि सेबी ने अडानी ग्रुप को क्लीन चिट दे दी थी। कांग्रेस अध्यक्ष मलिकार्जुन खरगे ने कहा कि सरकार को सभी हितों के टकरावों को दूर करना चाहिए। राहुल गांधी ने भी सेबी की पवित्रता पर सवाल उठाया और पूछा कि क्यों SEBI प्रमुख ने अब तक इस्तीफा नहीं दिया। कांग्रेस का कहना है कि अगर निवेशकों का पैसा डूबता है तो इसका जिम्मेदार कौन होगा?
वहीं, बीजेपी ने हिंडनबर्ग की रिपोर्ट को खारिज किया है और इसे मार्केट रेगुलेटर की साख को बदनाम करने की साजिश करार दिया है। बीजेपी के राज्यसभा सांसद सुधांशु त्रिवेदी और पूर्व केंद्रीय मंत्री राजीव चंद्रशेखर ने पार्टी की ओर से मोर्चा संभाला। पूर्व केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने भी कांग्रेस को इस विवाद के लिए जिम्मेदार ठहराया।
इस बार हिंडनबर्ग की रिपोर्ट के बावजूद भारतीय शेयर बाजार में उतनी बड़ी गिरावट नहीं आई, जितनी पहले आई थी। यह दर्शाता है कि भारतीय निवेशकों का अडानी ग्रुप पर भरोसा बना हुआ है और हिंडनबर्ग की रिपोर्ट ने अपेक्षित प्रभाव नहीं डाला है। इस संदर्भ में, हिंडनबर्ग की रिपोर्ट और उसकी जांच ने एक बार फिर राजनीतिक गलियारों में गर्मागर्मी पैदा कर दी है।
राहुल गांधी के लिए राहु बन सकते हैं जॉर्ज सोरोस
हिंडनबर्ग रिसर्च में अमेरिकी बिजनेस टायकून जॉर्ज सोरोस की बड़ी हिस्सेदारी होने का दावा किया गया है, और उनकी कुख्यात छवि के चलते भारतीय राजनीति में उनके खिलाफ आरोपों की झड़ी लग गई है। सोरोस पर साल 1992 में बैंक ऑफ इंग्लैंड को तबाह करने और एक अरब डॉलर की कमाई करने का आरोप है। इसके अतिरिक्त, उनके खिलाफ अमेरिकी चुनावों में दखलंदाजी और मीडिया कंपनियों को बर्बाद करने के आरोप भी लगे हैं।
सोरोस के ओपन सोसाइटी फाउंडेशन की गतिविधियाँ लगभग 100 देशों में फैली हुई हैं, और उन्होंने कई बार विवादित बयान दिए हैं। उन्होंने भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को हिंदू राष्ट्र बनाने की कोशिश करने और लोकतंत्र का गला घोंटने का आरोप लगाया है। इसके साथ ही, उन्होंने अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप और अन्य वैश्विक नेताओं को भी आलोचना का निशाना बनाया है।
बीजेपी ने हाल ही में राहुल गांधी और जॉर्ज सोरोस के बीच संभावित संबंधों पर सवाल उठाए हैं। बीजेपी नेता रविशंकर प्रसाद ने आरोप लगाया है कि राहुल गांधी ने 30 मई 2023 को अमेरिका के दौरे के दौरान सोरोस की करीबी सहयोगी सुनीता विश्वनाथ के साथ बैठक की थी। इस बैठक को लेकर बीजेपी का दावा है कि राहुल गांधी ने भारतीय लोकतंत्र के खिलाफ माहौल तैयार करने का प्रयास किया।
राहुल गांधी की हालिया गतिविधियों और सोरोस के साथ उनके कथित रिश्तों को लेकर बीजेपी ने एक नई विवादास्पद बहस छेड़ दी है। बीजेपी का कहना है कि यह सोची-समझी रणनीति का हिस्सा हो सकता है, जिसका उद्देश्य हिंडनबर्ग के आरोपों से ध्यान भटकाना है। इससे यह संकेत मिलता है कि भारतीय राजनीति में सोरोस की छवि और उनके संभावित संबंधों को लेकर नई चर्चाएँ जोर पकड़ सकती हैं।