रांची: झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) के वरिष्ठ नेता और पूर्व मुख्यमंत्री चंपई सोरेन के भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) में शामिल होने की चर्चा जोर पकड़ रही है। कहा जा रहा है कि उनके साथ झामुमो के कुछ और नेता भी भाजपा का दामन थाम सकते हैं, जिससे झामुमो में खलबली मची हुई है।
चंपई सोरेन और लोबिन हेंब्रम के भाजपा में शामिल होने की संभावना
चंपई सोरेन के साथ झामुमो से निकाले गए लोबिन हेंब्रम के भी भाजपा में शामिल होने की संभावना जताई जा रही है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि भाजपा इस कदम के जरिए यह संदेश देना चाहती है कि झामुमो में आदिवासी नेताओं की उपेक्षा हो रही है। भाजपा का कहना है कि झामुमो एक परिवार की पार्टी बनकर रह गई है, और आदिवासी नेताओं का भविष्य वहां सुरक्षित नहीं है।
कोल्हान की सीटों पर भाजपा की नजर
चंपई सोरेन का कोल्हान क्षेत्र में विशेष प्रभाव है, और भाजपा इस प्रभाव का फायदा उठाना चाहती है। चर्चा है कि चंपई सोरेन अपने बेटे के लिए भी विधानसभा सीट की मांग कर रहे हैं, और भाजपा उन्हें पोटका या घाटशिला सीट से चुनाव लड़ा सकती है। इन क्षेत्रों में फिलहाल भाजपा के पास कोई मजबूत उम्मीदवार नहीं है, इसलिए चंपई सोरेन का भाजपा में शामिल होना पार्टी के लिए फायदेमंद साबित हो सकता है।
समीर मोहंती के भाजपा में शामिल होने की चर्चा
इसके अलावा, बहरागोड़ा के पूर्व विधायक कुणाल षाड़ंगी के झामुमो में जाने की चर्चा के बीच, समीर मोहंती भी भाजपा में शामिल हो सकते हैं। कुणाल षाड़ंगी का झामुमो में शामिल होना लगभग तय माना जा रहा है, इसलिए वह भाजपा में अपनी टिकट पक्की करने की कोशिश में हैं।
लोबिन हेंब्रम का भाजपा में जाना तय
लोबिन हेंब्रम, जिन्हें झामुमो से निष्कासित किया गया था, के पास अब भाजपा में जाने के अलावा कोई विकल्प नहीं है। उन्होंने 1990 में पहली बार विधायक बनने के बाद से पांच बार बोरियो विधानसभा सीट का प्रतिनिधित्व किया है, लेकिन इस बार उन्हें कैबिनेट में जगह नहीं मिली। इसके बाद उन्होंने हेमंत सरकार की स्थानीय नीति के खिलाफ आवाज उठाई थी और हाल ही में लोकसभा चुनाव में निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ा था, जिसके बाद उन्हें पार्टी से बाहर कर दिया गया। अब उनका भाजपा में जाना लगभग तय माना जा रहा है।
शिबू सोरेन के पुराने साथियों पर भाजपा का फोकस
भाजपा का लक्ष्य झामुमो के पुराने और वफादार नेताओं को अपनी ओर आकर्षित करना है, ताकि वह झारखंड में आदिवासी वोट बैंक को मजबूत कर सके। इस रणनीति का नेतृत्व असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा कर रहे हैं, जो झारखंड के लगातार दौरे कर रहे हैं। भाजपा, बांग्लादेश से घुसपैठ और आदिवासियों के मुस्लिम में कन्वर्जन का मुद्दा उठाकर आदिवासी समुदाय में अपनी पैठ बनाना चाहती है। अर्जुन मुंडा की खूंटी सीट से हार के बाद भाजपा इस चिंता में है कि आदिवासी नेताओं का समर्थन खो सकता है, इसलिए वह अपने संगठन में आदिवासी नेताओं की संख्या बढ़ाने पर जोर दे रही है।
झारखंड की राजनीति में चंपई सोरेन और लोबिन हेंब्रम का भाजपा में शामिल होना राज्य की राजनीतिक स्थिति को बदल सकता है। झामुमो के लिए यह एक बड़ी चुनौती साबित हो सकती है, जबकि भाजपा के लिए यह आदिवासी वोट बैंक को मजबूत करने का एक सुनहरा मौका हो सकता है।