रांची: राजनीति में कहते हैं कि अगर सलाहकार स्वार्थी हों, तो आपका पूरा खेल बिगड़ सकता है। यही स्थिति झारखंड के जल संसाधन मंत्री और ‘कोल्हान टाइगर’ के नाम से मशहूर चंपई सोरेन के साथ हुई है। इंडिया गठबंधन सरकार के इस प्रमुख मंत्री का सियासी भविष्य इन दिनों सवालों के घेरे में है, और इसका कारण उनके सलाहकारों का स्वार्थी होना बताया जा रहा है। चंपई सोरेन के भाजपा में शामिल होने के फैसले को लेकर चर्चाएं तेज हैं, लेकिन इस फैसले के पीछे की कहानी काफी जटिल है।
स्वार्थी सलाहकारों ने डाला संकट में सियासी करियर
चंपई सोरेन अपने कुछ करीबी सलाहकारों से हमेशा घिरे रहते थे, जिनमें से एक सलाहकार का करियर पहले गायक के रूप में शुरू हुआ था। बाद में वह चंपई के मीडिया सलाहकार बन गए। कहा जा रहा है कि हालिया राजनीतिक घटनाक्रम में इन सलाहकारों की बड़ी भूमिका रही है। जब चंपई सोरेन मुख्यमंत्री बने, तो इन सलाहकारों ने इसका जमकर फायदा उठाया। लेकिन जब हेमंत सोरेन बेल पर बाहर आए और चंपई की मुख्यमंत्री की कुर्सी खिसकी, तो इन सलाहकारों को अपने पद से हाथ धोने का डर सताने लगा।
इन सलाहकारों ने चंपई सोरेन को भाजपा में शामिल होने के लिए प्रेरित किया, ताकि वे किसी न किसी तरह से चंपई को मुख्यमंत्री बनाए रख सकें। हालांकि, यह फैसला चंपई सोरेन के सियासी करियर के लिए खतरा साबित हो सकता है, क्योंकि उनकी गतिविधियों की जानकारी लगातार लीक होती रही, जिससे उनका खेल बिगड़ गया।
आज कर सकते हैं चंपई सोरेन बड़ा ऐलान
सूत्रों के मुताबिक, चंपई सोरेन आज सोमवार को भाजपा में शामिल हो सकते हैं। हालांकि, झामुमो भी उन्हें मनाने की कोशिश कर रहा है। कई वरिष्ठ नेताओं ने उनसे संपर्क साधा है, लेकिन चंपई सोरेन की नाराजगी अभी भी कम नहीं हुई है। ऐसी संभावना है कि वह जल्द ही झामुमो को अलविदा कह देंगे।
झामुमो छोड़ने के बाद नहीं मिली कई नेताओं को सफलता
झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) छोड़ने के बाद कई नेताओं को राजनीतिक असफलता का सामना करना पड़ा है। बहरागोड़ा के विधायक कुणाल षाड़ंगी ने झामुमो छोड़कर भाजपा का दामन थामा, लेकिन उन्हें हार का सामना करना पड़ा। इसी तरह, शिबू सोरेन की बहू सीता सोरेन ने भी झामुमो छोड़कर भाजपा से चुनाव लड़ा, लेकिन सफल नहीं हो पाईं। पूर्व सांसद कृष्णा मार्डी भी झामुमो छोड़ने के बाद खास सफलता हासिल नहीं कर पाए।
अर्जुन मुंडा और विद्युत वरण महतो बने अपवाद
हालांकि, कुछ नेता झामुमो छोड़ने के बाद सफल भी हुए हैं। अर्जुन मुंडा ने झामुमो से भाजपा में आने के बाद झारखंड के मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचे और अब केंद्रीय मंत्री हैं। इसी तरह, बहरागोड़ा के पूर्व विधायक विद्युत वरण महतो ने भी झामुमो छोड़कर जमशेदपुर लोकसभा सीट से भाजपा के टिकट पर लगातार तीसरी बार जीत हासिल की है।
झामुमो ने कई आदिवासी नेताओं के लिए सियासी नर्सरी का काम किया है, जहां से वे राजनीति की बारीकियां सीखकर दूसरे दलों में पहुंचे हैं। चंपई सोरेन के साथ जो हो रहा है, वह इस बात का सबक है कि स्वार्थी सलाहकारों की संगत सियासी करियर के लिए कितनी खतरनाक हो सकती है। अब देखना होगा कि चंपई सोरेन का अगला कदम क्या होता है और उनके इस फैसले का झारखंड की राजनीति पर क्या असर पड़ता है।