भारतीय जनता पार्टी जो की दुनिया की सबसे बडी पार्टी। सबसे अधिक कार्यकर्ताओं का दावा करने वाली भाजपा के 63 सांसद लोकसभा चुनाव में कम हो गए। चंद्रबाबू नायडू और नीतीश कुमार की बैशाखी के भरोसे भाजपा बडी मुश्किल से खडी हो पाई है। लेकिन, अब वह राज्यों में किसी भी कीमत पर सरकार बनाना चाहती है। चाहे इसके लिए किसी के परिवार को तोडना पडे या फिर पार्टी ही क्यों नहीं तोडनी पडे। महाराष्ट्र वाला फार्मूला इन दिनों झारखंड में अपनाया जा रहा है। भारतीय जनता पार्टी ने झारखंड में ऑपरेशन लोटस को ऑन कर दिया है। झारखंड में विधानसभा चुनाव को जीतने के लिए पांच फार्मूला बनाया गया है आखिर क्या है वह पांच फार्मूला और झारखंड में सरकार बनाने के लिए क्या-क्या नैरेटिव सेट करने में जुटी है भाजपा।
आदिवासियों में यह भ्रम फैलाने का प्रयास कि झामुमो सिर्फ एक परिवार की पार्टी है
भारतीय जनता पार्टी झारखंड में सरकार बनाने के लेकर काफी गंभीर है। पार्टी के रणनीतिकारों को यह बात स्पष्ट रूप से पता है कि वे झारखंड में तब तक सरकार नहीं बना सकते हैं, जब तक आदिवासी वोटर झारखंड मुक्ति मोरचा के साथ इंटैक्ट है। इसका उदाहरण 2024 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने देख भी लिया कि भाजपा राज्य की सभी 5 आदिवासी सीटों पर हार गई। आदिवासी वोटरों में सेंधमारी करने के लिए भाजपा इन दिनों एक नैरेटिव सेट करने में लगी हुई है। इसके लिए लोकसभा चुनाव में सीता सोरेन का जबकि अब विधानसभा चुनाव में पूर्व मुख्यमंत्री चंपई सोरेन के कंधे का सहारा लिया जा रहा है। चंपई सोरेन को सीएम की कुर्सी से हटाने के बाद अचानक भाजपा चंपई सोरेन की हितैषी बनने का प्रयास करने लगी। चंपई सोरेन के पक्ष में बयान देकर बताया गया कि चंपई सोरेन अच्छा काम कर रहे थे, लेकिन हेमंत सोरेन ने खुद सीएम बनने के लिए उन्हें कुर्सी से हटा दिया। इससे यह नैरेटिव सेट करने का प्रयास किया जा रहा है कि झारखंड मुक्ति मोर्चा को आदिवासियों से कोई मतलब नहीं है, वह सिर्फ एक ही परिवार की पार्टी है। हालांकि, धरातल पर यह कतई नहीं है। हेमंत सोरेन जब जेल जा रहे थे तब उन्होंने अपनी पत्नी कल्पना सोरेन के बजाय चंपई सोरेन को राज्य की कमान सौंपी। वे चाहते तो अपनी पत्नी को सीएम बना सकते थे। संविधान में यह प्रावधान भी है और बाद में कल्पना सोरेन गांडेय विधानसभा सीट से चुनाव जीत कर विधायक बन भी गयी। लेकिन, कल्पना सोरेन के बजाय चंपई सोरेन को मुख्यमंत्री बनाया गया। कल्पना सोरेन ने तो हमेशा चंपई सोरेन के पांव छूकर आशीर्वाद ही लिया.
बांग्लादेशी मुसलमान से आदिवासियों का हक मारा जाएगा !
भारतीय जनता पार्टी के रणनीतिकार संथाल परगना में अधिक से अधिक सीटों पर जीत के लिए इन दिनों जमाई पाडा और झारखंड का डेमोग्राफी बदलने से जुडे मुद्दे को जोर-शोर से उठा रहे हैं। वे इस प्रकार का माहौल तैयार करने में जुटे हैं कि बांग्लादेशी झारखंड में घुसपैठ कर रहे हैं। वे आदिवासी लडकियों से शादी कर आदिवासियों को मिल रहे लाभ के खत्म होने से संबंधित माहौल तैयार करने में लगे हैं। इसके लिए कई बार असम के सीएम हिमंता विश्व शर्मा इस मुद्दे को उठा चुके हैं। इससे आदिवासियों में एक भाव पैदा करने का प्रयास किया जा रहा कि भाजपा उनके हक के लिए सोच रही है। वह काफी गंभीर है।
हिमंता का जयराम महतो के साथ चाय पीने की तलब, जयराम को करेगी कमजोर
असम के सीएम हिमंता विश्व शर्मा इन दिनों असम के साथ-साथ झारखंड बीजेपी को भी संभाल रहे हैं। वे झारखंड में भाजपा के पोस्टर ब्वाय बने हुए हैं। पिछले दिनों झारखंड दौरे पर आने के बाद वे कई अखबार के दफ्तर पहुंचे। वहां अखबार के रिपोर्टरों को इंटरव्यू दिया, जिसमें बांग्लादेशी घुसपैठ से लेकर झारखंड की हेमंत सोरेन सरकार पर वे जम कर बरसे. अखबार की यह सुर्खियां भी बनी। इसके साथ ही इन दिनों वे गाहे-बगाहे कई जगहों पर वे यह भी कह चुके हैं कि उनकी बडी तलब है कि वे जयराम महतो के साथ चाय पीयें। हिमंता बस यूं ही ऐसा नहीं कह रहे हैं। हिमंता बडे और दूरदर्शी नेता हैं। वे ऐसा कह कर राज्य के कुडमी वोटरों के बीच एक मैसेज देना चाहते हैं कि जयराम का बीजेपी से करीबी रिश्ता है। इस चाय पीने के शो के बहाने हिमंता चौक-चौराहों पर यह बात फ्लॉट करवाना चाहते हैं कि जयराम महतो का बीजेपी के साथ इंटरनल डील है। इससे जयराम महतो को ना सिर्फ चुनाव में नुकसान होगा बल्कि उनके वोटरों में कन्फ्यूजन की स्थिति पैदा होगी।
महाराष्ट्र मॉडल को झारखंड में भी लागू करने का है होमवर्क
भारतीय जनता पार्टी महाराष्ट्र मॉडल को झारखंड में भी लागू करना चाहती है। इसके लिए विरोधी दलों के परिवार के साथ ही उनकी पार्टियों में भी तोडफोड करने की जुगत में है। महाराष्ट्र में जिस प्रकार शरद पवार से उनके भतीजे अजीत पवार को अलग कर एनडीए का हिस्सा बनाया गया, वहीं झारखंड में भी हेमंत सोरेन की भाभी सोरेन को भाजपा का हिस्सा बनाया गया। जिस प्रकार शिवसेना में एकनाथ शिंदे के जरिए सेंधमारी की गयी है, ठीक उसी प्रकार झारखंड में चंपई सोरेन के जरिए झारखंड मुक्ति मोरचा में सेंधमारी की जा रही है। भाजपा का यह पूरी तरह से सेट फार्मूला झारखंड में अपनाया जा रहा है। वह भी ऐसा तब हो रहा है जब भारतीय जनता पार्टी के अंदर ही समर्पित कार्यकर्ताओं को सम्मान नहीं मिलने की वजह से सिर फुटौव्वल जारी है। भाजपा में अंदरूनी कलह इतनी अधिक है कि सांसद निशिकांत दुबे और विधायक नारायण दास हमेशा आमने-सामने रहते हैं। समीक्षा बैठक के दौरान दोनों के समर्थकों द्वारा कुर्सी उठा कर मारने की घटना को पूरे देश ने देखा।
पार्टी के कार्यकर्ता ही खुल कर बडे नेताओं पर पार्टी के लिए समर्पित रहने वाले कार्यकर्ताओं को दरकिनार कर पैसा और पैरवी के बल पर पदाधिकारी बनाने का आरोप लगा रहे हैं। इतना ही नहीं जमशेदपुर में तो भाजपा के जिला कार्यालय पर जिलाध्यक्ष के विरोध में ही पार्टी के कार्यकर्ता धरना पर बैठ चुके हैं। पार्टी के अंदर पहले से मौजूद बडे आदिवासी चेहरे बाबूलाल मरांडी, अर्जुन मुंडा, नीलकंठ सिंह मुंडा, अरुण उरांव जैसे नेता हाशिए पर हैं, इन सबके बीच चंपई सोरेन के इंट्री की तैयारी है।
ओपिनियन पोल के बहाने भाजपा के पक्ष में माहौल बनाने की तैयारी
इसी साल मई माह में विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक जारी किया गया। दुनिया के एक सौ अस्सी देशों की सूची में भारत 159 पायदान पर खडा था। चीख-चीख पर खुद को नंबर वन चैनल का दावा करने वाले मीडिया चैनल इस रिपोर्ट को दिखाते ही नहीं। क्योंकि इससे यह पता चल जाएगा कि वे कितने स्वतंत्र हैं। खैर, बात हो रही है झारखंड में भारतीय जनता पार्टी के चुनावी हथकंडों की तो उसमें एक हथियार मीडिया भी है। गाहे-ब-गाहे इसका प्रयोग भी शुरू हो गया है. पिछले दिनों टाइम्स नाउ नवभारत ने एक ओपिनियन पोल जारी किया। जिसमें बताया गया कि झारखंड में भाजपा को 38 से 43 सीटें मिल रही हैं। जबकि जेएमएम को सिर्फ 19 से 24 सीटों पर सिमटता दिखाया गया है। वहीं कांग्रेस को 7 से 12 सीटें मिलता दिखाया गया है। भाजपा को 41.02 प्रतिशत वोट मिलता हुआ बताया गया है। आखिर कहां से यह सर्वे किया गया है, कैसे यह सर्वे किया गया है, यह तो सर्वे वाले बाबू जानें, इस पर सवाल उठाना लाजिमी नहीं है। लेकिन यह बात सही है कि ये वही टाइम्स नाउ का सर्वे है जिसने 2024 के लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में एनडीए को 66 से 70 सीटें दे दी थी। साथ ही एनडीए को 358 सीटें मिलना बताया था. चुनावी गणित को जानने वाले बताते हैं कि वास्तव में इस प्रकार के सर्वे के जरिए बैक डोर से भाजपा के पक्ष में माहौल को तैयार करने का प्रयास किया जाता है, ताकि 01 से 02 प्रतिशत ऐसे लोग जो माहौल देख कर वोट करते हैं, इस प्रकार के वोटर भाजपा के पक्ष में वोट करें