जमशेदपुर : कोल्हान में भाजपा के कद्दावर सियासी सीन से गायब हैं। अभी कोल्हान में भाजपा का ऐसा कोई कद्दावर नेता नहीं है जो पार्टी की चुनावी नाव को पार लगा सके। कोल्हान में भाजपा कद्दावर नेताओं की क्राइसिस से जूझ रही है। पार्टी के कुछ नेता साइड लाइन हैं तो कुछ प्रदेश या शीर्ष नेतृत्व की बेरुखी का शिकार हैं। कई नेता तो भाजपा की अंदरूनी राजनीति का शिकार हो कर अलविदा कह कर जा चुके हैं। इस विधानसभा चुनाव में भाजपा को कोई खेवनहार नजर नहीं आ रहा है। इसी वजह से उसे एक ऐसे नेता की तलाश थी जो यहां पार्टी को आगे बढ़ा सके। कहा जा रहा है कि इसीलिए पार्टी यहां चंपई सोरेन का सहारा लेने को मजबूर हुई है।
जमशेदपुर में नहीं है कोई बड़े कद का नेता
जमशेदपुर कभी झारखंड में भाजपा की सियासत का केंद्र बिंदु होता था। यहां से अर्जुन मुंडा, रघुवर दास, सरयू राय आदि नेताओं का कद्दावर नेता शहर में भाजपा की कमान संभालते थे। इन चेहरों के सहारे भाजपा न केवल शहर की जमशेदपुर पश्चिम व जमशेदपुर पूर्वी विधानसभा सीट जीतती थी बल्कि पोटका समेत आसपास की कुछ सीटें भी झटक लेती थी। मगर, अब जमशेदपुर में भाजपा के पास कोई दमदार चेहरा नहीं है। रघुवर दास को पार्टी ने ओडिशा का राज्यपाल बना कर भेज दिया है। अर्जुन मुंडा खूंटी से लोकसभा का चुनाव हारने के बाद साइडलाइन हो गए हैं। उनको पार्टी आगे नहीं करना चाहती। अर्जुन मुंडा खुद अपने सियासी वजूद की लड़ाई लड़ रहे हैं। वह खुद एक ऐसी सीट की तलाश में हैं जहां से उन्हें राजनीतिक जीवन दान मिल जाए। सरयू राय पार्टी के साथ खड़े थे। मगर, विधानसभा चुनाव 2019 में पार्टी ने जमशेदपुर पश्चिमी से उनका टिकट काट कर उन्हें भी खुद से दूर कर दिया है। सांसद विद्युत वरण महतो का कद उतना ऊंचा नहीं है जो अपने बूते भाजपा को सीट जितवा सकें।
लक्ष्मण गिलुवा के बाद पश्चिमी सिंहभूम भी खाली
पश्चिमी सिंहभूम में कभी लक्ष्मण गिलुवा कद़्दावार नेता हुआ करते थे। साल 2021 में उनके निधन के बाद इस इलाके में कोई भाजपा का कद्दावर नेता नहीं बचा है। लक्ष्मण गिलुवा की कमी को पूरा करने के लिए भाजपा ने मधु कोड़ा और गीता कोड़ा को पार्टी में शामिल कराया मगर, यह भी मुफीद साबित नहीं हुआ। गीता कोड़ा सिंहभूम लोकसभा सीट से चुनाव हार गईं। इससे उनकी राजनीतिक साख कमजोर पड़ गई है। यही नहीं, क्षेत्र में कोड़ा दंपति का विरोध हो रहा है। भाजपा का कैडर कोड़ा दंपति को नहीं पचा पा रहा है। इसके चलते पश्चिमी सिंहभूम में भाजपा को अलग परेशानी झेलनी पड़ रही है।
अर्जुन मुंडा की हार से सरायकेला भी खाली
यही हाल, सरायकेला खरसावां का भी है। यहां भी भाजपा के पास कोई हैवीवेट लीडर नहीं है। कभी अर्जुन मुंडा खरसावां से चुनाव जीतते थे और इलाके में भाजपा की राजनीति का चेहरा बन गए थे। मगर, जब वह खरसावां से हारे तो उनकी राजनीति भी इस इलाके से उखड़ गई। अब इस क्षेत्र में भाजपा के पास कोई बड़ा नेता नहीं बचा है।