जमशेदपुर : भाजपा में चंपई सोरेन की राह आसान नहीं होगी। सरायकेला में चंपई को भितरघात का खतरा है। भाजपा में कई ऐसे नेता हैं जिनको चंपई फूटी आंख नहीं सुहा रहे हैं। सूत्रों की मानें तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हिदायत के बाद भाजपा में चंपई के विरोध की बगावत दब तो गई है मगर चिंगारी अंदर ही अंदर सुलग रही है। कहा जा रहा है कि चंपई के विरोधियों ने जो रणनीति तैयार की है उसमें उन्हें सरायकेला में ही घेरने का प्लान है। चंपई के विरोधी इस काम में माहिर माने जाते हैं। ऐसे में जो हालात बन रहे हैं उसमें भाजपा में आने के बाद चंपई सोरेन घिरते नजर आ रहे हैं। क्योंकि, चंपई का आना भाजपा के कुछ दिग्गजों को खटक रहा है। यह नेता नहीं चाहते कि भाजपा में कोई बड़ा आदिवासी नेता आए। चंपई भाजपा में नहीं आने पाएं इसके लिए इन नेताओं ने एड़ी चोटी का जोर लगा दिया था। इसीलिए, चंपई के भाजपा में आने से विद्रोह नहीं हो जाए, इसके लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को हस्तक्षेप करना पड़ा है। मगर, बताया जा रहा है कि भाजपा में अंदरखाने सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है। सूत्र बताते हैं कि विरोधियों ने प्लान तैयार किया है कि अगर कोल्हान टाइगर को सरायकेला में ही चित कर दिया जाए तो चंपई की राजनीति को बाड़े में बंद किया जा सकता है। इसके लिए घेराबंदी शुरू है।
कोल्हान में है घेर कर हराने की है परंपरा
कोल्हान में किसी एक दिग्गज को हराने के लिए कई नेता आपस में हाथ मिला लेते हैं। यहां घेर कर दिग्गज को हराने की पुरानी परंपरा रही है। साल 2014 के चुनाव में अर्जुन मुंडा को खरसवां में घेर लिया गया था। उनको हराने के लिए कई अलग अलग दल के दिग्गजों ने हाथ मिला लिया था। इनमें भाजपा के कुछ ऐसे बड़े नेता शामिल थे जिनकी महत्वाकांक्षा हिलोरें मार रही थीं। दिग्गजों ने झामुमो उम्मीदवार दशरथ गगराई की हर तरह से मदद की। रुपयों की थैली खोल दी गई। रणनीति थी कि अर्जुन मुंडा को खरसावां में धराशायी कर दिया जाए ताकि वह सीएम की कुर्सी तक नहीं पहुंच पाएं। वही हुआ। अर्जुन मुंडा जैसे दिग्गज को दशरथ गागराई से 11966 मतों से शिकस्त खानी पड़ी। साल 2019 के चुनाव में जमशेदपुर पूर्वी में यही खेल हुआ। क्षेत्र के दिग्गज रघुवर दास को हराने के लिए एकजुट हो गए। इनमें भाजपा के भी कुछ बड़े दिग्गज शामिल थे। यहां भी पैसा पानी की तरह बहाया गया। नतीजा निकला कि 1995 से लगातार 5 बार चुनाव जीतने वाले अजेय रघुवर दास भी पराजित हो गए।
रमेश, गणेश या लक्ष्मण कौन थामेगा तीर-धनुष
भाजपा के रमेश हांसदा भी सरायकेला में मेहनत कर रहे हैं। उनका इरादा भी भाजपा का टिकट हासिल करना था। मगर, अब चंपई के आने के बाद यहां की राजनीतिक फिजा तब्दील हो गई है। ऐसे में रमेश हांसदा अपने सियासी कॅरियर को आगे बढ़ाने के लिए झामुमो का दामन थाम सकते हैं। कहा जा रहा है कि रमेश हांसदा की चंपई से नहीं बनती। रमेश हांसदा पहले पूर्वी सिंहभूम में झामुमो के जिलाध्यक्ष थे। चंपई से उनकी पुरानी अदावत है। चंपई के चलते ही उन्होंने झामुमो छोड़ दी थी और भाजपा में चले गए थे। सूत्र बताते हैं कि अब चंपई भाजपा में आ गए हैं तो रमेश हांसदा ठीक नहीं महसूस कर रहे हैं। रमेश्हा हांसदा झामुमो से टिकट की दावेदारी में सबसे आगे हैं। उनकी बेदाग छवि है।
सरायकेला में कद्दावर उम्मीदवार की तलाश में झामुमो
चंपई सोरेन के भाजपा में चले जाने के बाद सरायकेला में सियासी समीकरण बदल गया है। अब तक चंपई सोरेन झामुमो से चुनाव लड़ कर जीतते रहे हैं। मगर, अब उनके भाजपा में चले जाने से इस सीट पर भाजपा को तो प्रत्याशी मिल गया है। मगर, झामुमो ने अब एक कद्दावर उम्मीदवार की तलाश शुरू कर दी है। सूत्र बताते हैं कि झामुमो एक ऐसा उम्मीदवार तलाश रही है जो सरायकेला में चंपई सोरेन को हरा सके। अब झामुमो की निगाह भाजपा की तरफ से उम्मीदवारी का दावा कर रहे प्रत्याशियों पर है। इनमें रमेश हांसदा, बास्को बेसरा, गणेश महाली, लक्ष्मण टुडू और हैं। गणेश महाली भाजपा के टिकट पर सरायकेला से दो बार 2019 और 2014 में चुनाव लड़ कर हार चुके हैं। गणेश 2019 में 15 हजार 676 वोटों से और 2014 में 1 हजार 115 वोटों से हार गए थे। 2009 और 2005 में यहां से चंपई के खिलाफ भाजपा के टिकट पर लक्ष्मण टुडू भी जोर आजमाइश कर चुके हैं। लक्ष्मण टुडू 2009 में चंपई से 3246 मतों से और 2005 में 882 मतों से हारे थे। झामुमो इन दोनों नेताओं पर भी दांव लगा सकती है।
चंपई के लिए मुसीबत बन सकते हैं बास्को
बास्को बेसरा भी झामुमो से टिकट की कतार में हैं। वह अभी भाजपा में हैं। बास्को काफी अरसे से सरायकेला में अपनी जमीन तैयार कर रहे थे। बास्को की बात हेमंत सोरेन से चल रही है। गम्हरिया में जब सीएम हेमंत सोरेन झारखंड मुख्यमंत्री मइयां सम्मान योजना का कार्यक्रम करने आए थे तब बास्को बेसरा की हेमंत सोरेन से मुलाकात हुई थी। बास्को बेसरा का अपना यहां तगड़ा नेटवर्क है। बास्को बेसरा पहले भी सरायकेला से किस्मत आजमा चुके हैं। 2014 में वह कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़े थे और तीसरे नंबर पर रह कर 6890 वोट हासिल किए थे। इसके पहले 2005 में बास्को बेसरा आजसू के टिकट पर सरायकेला से लड़े थे और 15 हजार 96 वोट हासिल कर तीसरे नंबर पर थे। इस तरह, सरायकेला में आजसू और कांग्रेस का संगठन उतना मजबूत नहीं है जितना झामुमो का है। झामुमो के मतदाता सिर्फ तीर-कमान देखते हैं। उम्मीदवार कौन हैं उससे उन्हें कोई मतलब नहीं है। इसलिए अगर झामुमो बास्को बेसरा को टिकट देती है तो वह चंपई के लिए मुसीबत खड़ी कर सकते हैं।
सरायकेला विधानसभा सीट
1977- जनता पार्टी के कड़े मांझी
1980- भाजपा के कड़े मांझी
1985- झामुमो के कृष्णा मार्डी
1990- झामुमो के कृष्णा मार्डी
1991- झामुमो के चंपई सोरेन
1995- – झामुमो के चंपई सोरेन
2000- भाजपा के अनंतराम टुडू
2005- झामुमो के चंपई सोरेन
2009- झामुमो के चंपई सोरेन
2014- झामुमो के चंपई सोरेन
2019- झामुमो के चंपई सोरेन