दुमका: झारखंड में अक्टूबर-नवंबर के महीने में चुनाव होने वाले हैं. सभी पार्टियां कुल 81 सीटों में जीत हासिल करने के लिए मंथन कर रही हैं. 81 सीटों में से एक सीट ऐसी भी है जो कि झारखंड मुक्ति मोर्चा का अभेद्य किला है. दुमका संसदीय क्षेत्र में आने वाली यह सीट अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित है। यह सीट है शिकारीपाड़ा है. इस सीट में आजादी के बाद उपचुनाव को मिलाकर कुल 17 बार चुनाव हुए हैं. इसमें झामुमो ने 10 बार जीत हासिल की है. इस सीट को भेदने के लिए पिछले चार दशकों से कांग्रेस, भाजपा, जेवीएम, जेडीयू और लोजपा के कई दिग्गज नेता मैदान में उतरे और कड़ी मेहनत भी की. लेकिन इसके बावजूद यह सीट झामुमो की झोली में ही रही. यहां से झामुमो के दिग्गज नेता नलिन सोरेन को पछाड़ने में कोई भी सफल नहीं हो पाया.
लगातार 7 बार विधायक बने नलिन सोरेन, अब सांसद हैं
हाल ही में लोकसभा चुनाव 2024 संपन्न हुए. शिकारीपाड़ा विधानसभा सीट से लगातार 7 बार विधायक बने नलिन सोरेन को यहां की जनता ने अपना सांसद चुन लिया है. वह दुमका से चुनाव लड़े थे और उनके सामने भाजपा प्रत्याशी सीता सोरेन थीं. दोनों के बीच सीधी टक्कर थी. लेकिन नलिन सोरेन ने जीत हासिल कर ली. उनके सांसद चुने जाने के बाद शिकारीपाड़ा सीट खाली है. यह क्षेत्र झारखंड और पश्चिम बंगाल की सीमा से सटा है. यह सीट काठीकुंड और रानीश्वर प्रखंड क्षेत्रों में फैली है. आजादी के बाद साल 1952 में यह विधानसभा क्षेत्र अस्तित्व में आया था. इसके बाद यहां उपचुनाव को मिलाकर कुल 17 बार चुनाव हुए. झामुमो के वरिष्ठ नेता नलिन सोरेन जिन्होंने अलग झारखंड राज्य आंदोलन में संघर्ष किया था, साल 1990 से लगातार इस क्षेत्र से चुनाव जीतते आ रहे हैं. यह झामुमो का एक मजबूत किला है. उनके सांसद बनने के बाद अब यह सवाल उठ रहा है कि अपने इस मजबूत किले को बचाने में झामुमो किसे चुनावी मैदान के युद्ध में उतारेगी. यह देखना बड़ा दिलचस्प होगा.
नलिन की पत्नी-पुत्र समेत कई हैं दावेदार
सियासी बाजार में इस क्षेत्र से कई झामुमो नेताओं के दावेदारी की चर्चा है. इसमें सांसद नलिन सोरेन की पत्नी जायस बेसरा जो जिला परिषद की अध्यक्ष हैं, उनके बेटे आलोक सोरेन, दुमका के विधायक सीएम हेमंत सोरेन के भाई बसंत सोरेन के समेत कई अन्य लोग शामिल हैं. वहीं भाजपा में भी इस सीट पर पार्टी से टिकेट लेने के लिए कई दावेदार दौड़ में हैं. ऐसे में भाजपा कार्यकर्ताओं के साथ विभिन्न स्तरों पर बैठक कर प्रत्याशियों के नाम को लेकर रायशुमारी कर रही है. यह बात चर्चा में है कि भाजपा के टिकट से पूर्व में जेवीएम से चुनाव लड़ चुके परितोष सोरेन, अविनाश सोरेन के साथ कई नेता पार्टी के टिकट से चुनाव लड़ने के लिए प्रयास कर रहे हैं.
लोकसभा चुनाव 2024 में शिकारीपाड़ा से झामुमो को बढ़त
इस वर्ष संपन्न हुए लोकसभा चुनाव में शिकारीपाड़ा विधानसभा क्षेत्र से नलिन सोरेन को करीब 25 हजार वोटों से बढ़त मिली थी. यह बढ़त नलिन सोरेन को जीत दिलाने में काम आई. इस क्षेत्र से नलिन सोरेन को 87,980 वोट मिले थे. उनके सामने भाजपा की प्रत्याशी सीता सोरेन को 62,639 वोट मिले थे.
साल 2019 के विधानसभा चुनाव परिणाम
साल 2019 में झामुमो के प्रत्याशी नलिन सोरेन ने शिकारीपाड़ा सीट से जीत हासिल की थी. उन्हें कुल 79,400 वोट मिले थे. उनकी सीधी टक्कर भाजपा प्रत्याशी परितोष सोरेन से हुई थी. उन्हें कुल 49,929 वोट मिले थे. नलिन सोरेन ने परितोष सोरेन को कुल 24,971 वोट से हराया था. जेवीएम प्रत्याशी राजेश मुर्मू को कुल 5,164 वोट मिले थे इससे वह तीसरे स्थान में आए. चौथे स्थान जेडीयू के प्रत्याशी सालखन मुर्मू को 4,445 वोट मिले थे.
साल 2014 के विधानसभा चुनाव परिणाम
साल 2014 में झामुमो के प्रत्याशी नलिन सोरेन ने शिकारीपाड़ा सीट से जीत हासिल की थी. नलिन सोरेन को कुल 61,901 वोट मिले थे. वहीं दूसरे स्थान पर जेवीएम के प्रत्याशी परितोष सोरेन को 37,400 वोट मिले थे. नलिन सोरेन ने परितोष सोरेन को 24,501 वोट से हराया था. तीसरे स्थान पर लोजपा प्रत्याशी शिवधन मुर्मू को 21,010 वोट मिले थे. चौथे स्थान पर कांग्रेस प्रत्याशी राजा मरांडी को 7,877 वोट मिले थे.
साल 2009 के विधानसभा चुनाव परिणाम
साल 2009 में झामुमो के प्रत्याशी नलिन सोरेन ने शिकारीपाड़ा सीट से जीत हासिल की थी. नलिन सोरेन को कुल 30,478 वोट मिले थे. वहीं दूसरे स्थान पर जेवीएम के प्रत्याशी परितोष सोरेन को कुल 29,471 मिले थे. नलिन सोरेन ने परितोष सोरेन को 1,007 वोट से हराया था.तीसरे स्थान पर जदयू के राजा मरांडी को 29,009 वोट मिले थे.
साल 2005 के विधानसभा चुनाव परिणाम
साल 2005 में झामुमो के प्रत्याशी नलिन सोरेन ने शिकारीपाड़ा सीट से जीत हासिल की थी. नलिन सोरेन को कुल 27,723 वोट मिले थे. दूसरे स्थान पर जदयू के राजा मरांडी को कुल 24,641 वोट मिले थे. नलिन सोरेन ने राजा मार्डी को 3,082 वोट से हराया था.
साल 2000 के विधानसभा चुनाव परिणाम
साल 2000 में झामुमो के प्रत्याशी नलिन सोरेन ने शिकारीपाड़ा सीट से जीत हासिल की थी. नलिन सोरेन को कुल 39,259 वोट मिले थे. दूसरे स्थान पर भाजपा के प्रत्याशी छोटू मुर्मू को 23,126 वोट मिले थे. नलिन सोरेन ने छोटू मुर्मू को 16,133 वोट से हराया था.
1952-2019 से अब तक कौन कौन रहे हैं शिकारीपाड़ा के विधायक
आजादी के बाद साल 1952 यह विधानसभा क्षेत्र अस्तित्व में आया था. इसके बाद यहां उपचुनाव को मिलाकर कुल 17 बार चुनाव हुए. आइए आपको बताते हैं कि इस क्षेत्र से 1952 से 2019 तक किस पार्टी के कौन रहे हैं विधायक.
1952- झारखंड पार्टी के विलियम हेम्ब्रम.
1957- झारखंड पार्टी के सुपाई मुर्मू.
1962- झारखंड पार्टी के वरियार हेम्ब्रम.
1967- कांग्रेस के वरियार हेम्ब्रम.
1969- निर्दलीय प्रत्याशी,चडरा मुर्मू.
1972- हूल झारखण्ड पार्टी के शिबू मुर्मू.
1977- जनता पार्टी के बाबुलाल किस्कू.
1979- जेएमएम के डेविड मुर्मू (उपचुनाव)
1980- जेएमएम के डेविडमुर्मू.
1985- जेएमएम के डेविडमुर्मू.
1990- जेएमएम के नलिन सोरेन.
1995- जेएमएम के नलिन सोरेन.
2000- जेएमएम के नलिन सोरेन.
2005- जेएमएम के नलिन सोरेन.
2009- जेएमएम के नलिन सोरेन.
2014- जेएमएम के नलिन सोरेन.
2019- जेएमएम के नलिन सोरेन.
17 में से 10 बार झामुमो ने जीती है शिकारीपाड़ा सीट
इस क्षेत्र में आजादी के बाद उपचुनाव मिलाकर कुल 17 बार चुनाव हुआ. इसमें झारखण्ड मुक्ति मोर्चा ने 10 बार जीत हासिल की. यह सीट झामुमो का अभेद्य किला माना जाता है. इस सीट से दुमका के नलिन सोरेन ने खुद साल 1990- से लेकर 2019 तक 7 बार चुनाव जीता है. यहां झारखण्ड पार्टी ने तीन बार चुनाव जीता है और कांग्रेस, निर्दलीय, हुल झारखंड पार्टी और जनता पार्टी के उम्मीदवारों ने एक बार चुनाव जीता है. लोकसभा चुनाव 2024 में झामुमो के नलिन सोरेन को इस क्षेत्र से लगभग 25 हजार वोटों से बढ़त मिली थी. इसे झामुमो की इस क्षेत्र में मजबूती देखने को मिली है. झामुमो अब 11 बार इस सीट में अपना परचम लहराने के लिए आश्वस्त दिख रही है.
करीब 63 प्रतिशत आबादी आदिवासी और मुस्लिम मतदाताओं की
इस क्षेत्र में अनुमान लगाया जाए तो आदिवासी मतदाताओं की संख्या लगभग 55 प्रतिशत है. वहीं, मुस्लिम मतदाताओं की संख्या लगभग 8 प्रतिशत है. यहां दलित मतदाताओं की आबादी 6 प्रतिशत, कोयरी की 4 प्रतिशत, अन्य पिछड़ी जाति 7 प्रतिशत और जातियों की आबादी लगभग 13 प्रतिशत है. इसी साल संपन्न हुए लोकसभा चुनाव के परिणाम की बात करें तो इस क्षेत्र में मुस्लिम और आदिवासी मतदाताओं का झुकाव झारखण्ड मुक्ति मोर्चा की तरफ था. वहीं, अन्य समुदाय के मतदाताओं के लोग भाजपा और कांग्रेस के पक्ष में थे. अब तक के चुनाव परिणामों पर गौर करें तो आदिवासी व मुस्लिम मतदाता की गोलबंदी की वजह से पिछले साढ़े चार दशक से झामुमो के प्रत्याशी यहां से विधायक बनते जा रहे हैं. इसी वजह से संथाल परगना में शिकारीपाड़ा सीट झामुमो का अभेद्य और मजबूत किला माना जाता है.