जमशेदपुर: इस बार झारखंड की हाट सीट बनी सरायकेला सीट जेएमएम और बीजेपी के लिए नाक का सवाल बन गई है। इस सीट पर इस बार दो मुख्यमंत्रियों की प्रतिष्ठा दांव पर है। यह हैं झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और असम के सीएम हिमंता बिस्वा सरमा। झारखंड ही नहीं असम की भी निगाहें सरायकेला पर लगी हैं। लोगों को इंतजार है उस दिन का जब रिजल्ट घोषित होंगे। सभी जानना चाहते हैं कि सरायकेला में इस बार क्या होने जा रहा है। सरायकेला में उम्मीदवार नहीं पार्टियां आमने सामने हैं। कमल और तीर धनुष की इस सीधी लडाई में कौन बनेगा विधायक। यह सवाल अहम है। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन कामयाब होंगे या असम के सीएम हिमंता बिस्वा सरमा होंगे सफल। इस सीट पर हेमंत सोरेन और हिमंता बिस्वा सरमा ही नहीं। बात केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह तक चली गई है। यहां भाजपा की हार का मतलब है भाजपा के चाणक्य के तमगे पर चोट। हम आज इस सीट का विश्लेषण करेंगे और बताएंगे कि यहां क्या होने जा रहा है।
नई पैकेजिंग में पुराने उम्मीदवार
सरायकेला में उम्मीदवार नहीं बदले हैं। मतदाता का चुनाव पुराने उम्मीदवारों पर ही होने जा रहा है। मतदाता चंपई या गणेश महली में से ही एक को चुनेंगे। साल 2019 का चुनाव रहा हो या 2014 का। चुनाव में चंपई सोरेन व गणेश महली ही आमने सामने थे। वोटरों ने इन्हीं में से एक को चुना था। सरायकेला में सब कुछ वही है। उम्मीदवार पुराने ही हैं। बदली है तो पार्टी। चंपई उस पार्टी में चले गए हैं जिससे गणेश महली लड़ते थे। गणेश महली उस पार्टी में चले गए हैं जिससे चंपई चुनाव लड़ा करते थे। यानि, अब तक के चुनाव में चंपई जेएमएम से और गणेश महली भाजपा से हुआ करते थे। मगर, इस चुनाव में गणेश महली जेएमएम से और चंपई भाजपा से होंगे। आइए अब हम सरायकेला की आबादी का विश्लेषण कर लें। यहां आदिवासी आबादी 33 प्रतिशत है। कुड़मी 13 प्रतिशत हैं। मुस्लिम की आबादी 3.8 फीसद है। आदिवासी वोट जेएमएम के साथ बताए जाते हैं। कुड़मी वोटों का बिखराव होगा। साथ ही सरायकेला के चुनावी माहौल में इनकमबैंसी फैक्टर भी है। चंपई कई साल से विधायक रहे हैं। यह बात भी लोगों के दिमाग में है।
अपने अपने उम्मीदवार को जिताने का प्रेशर
सरायकेला में इस नए चुनावी माहौल को तैयार किया है। असम के पूर्व सीएम हिमंता बिस्वा सरमा ने। वह चंपई को जेएमएम से तोड़ कर भाजपा में लाए। इसके बाद सियासत करवट लेना शुरू हो गई। तमाम कयास लगाए गए। आखिर में सीएम हेमंत सोरेन ने इस सीट पर बीजेपी से चुनाव लड़ने वाले गणेश महली को अपने पाले में कर लिया। अब चाहे सीएम हेमंत सोरेन हों या असम के सीएम हिमंता हों। इनकी कामयाबी का पैमाना इनके उम्मीदवार की जीत बनेगी। चंपई जीते तो लगेगा कि असम के सीएम हिमंता बिस्वा सरमा का कदम अच्छा रहा। उनका नेतृत्व कुशल रहा। गणेश महली जीते तो सीएम हेमंत सोरेन की जयकार होगी कि बढिया दांव चल कर भाजपा को चित कर दिया। इसलिए, अब इन दोनों नेताओं की प्रतीष्ठा सरायकेला में दांव पर लग गई है। राजनीतिक सूत्र बताते हैं कि दोनों सीएम ने सरायकेला में अपनी पूरी ताकत झोंक दी है। हिमंता बिस्वा सरमा ने भाजपाइयों से कह दिया है कि सरायकेला की सीट हर हाल में निकलनी चाहिए। दूसरी, तरफ हेमंत सोरेन खुद सरायकेला सीट पर नजर रखे हुए हैं। सांसद जोबा मांझी से हर दूसरे-तीसरे दिन सरायकेला का अपडेट लिया जा रहा है। उम्मीदवार के चयन से लेकर कोई भी कदम उठाने से पहले जेएमएम फूंक फूंक कर कदम रख रही है। भाजपा और जेएमएम दोनों दलों की तरफ से सरायकेला में अधिक से अधिक स्टार प्रचारक भेजने का खाका तैयार हो रहा है।
सरायकेला में किसमें है कितना दम
सरायकेला में भाजपा के उम्मीदवार पूर्व सीएम चंपई सोरेन मैदान में हैं। तो जेएमएम ने यहां से चंपई सोरेन के कंपटीटर रहे गणेश महली को उतार दिया है। चंपई सोरेन भले ही इस सीट से जीतते रहे हैं। मगर, यह काफी नजदीकी जीत रही है। साल 2019 का चुनाव छोड़ दें तो कभी वह बड़े अंतर से नहीं जीत पाए। साल दो हजार 14 के चुनाव में चंपई सोरेन को सरायकेला से 94 हजार 746 वोट मिले थे। तब चंपई सोरेन जेएमएम के टिकट पर चुनाव लड़ा करते थे। गणेश महली बीजेपी में थे। इस चुनाव में गणेश महली को 93 हजार 631 वोट मिले थे। इस तरह, चंपई सोरेन को सिर्फ 1115 वोटों से ही जीत मिली थी। साल 2009 के चुनाव में भी चंपई कोई ज्यादा वोटों से चुनाव नहीं जीते थे। इस चुनाव में चंपई को 57 हजार 156 वोट मिले थे। तब भाजपा ने लक्ष्मण टुडू को मैदान में उतारा था। लक्ष्मण टुडू को 53 हजार 910 वोट मिले थे। साल 2005 का चुनाव देखें तो चंपई सोरेन महज 882 वोट के अंतर से चुनाव जीते थे। इस तरह, चंपई की जीत का अंतर अधिकतर चुनाव में कम ही रहा है। दूसरी तरफ, अगर गणेश महली की बात करें तो क्षेत्र के भाजपाइयों में उनकी अच्छी पकड़ है। इसका गणेश महली को लाभ मिलेगा। कहा जा रहा है कि इलाके के कई कद्दावर भाजपाई गणेश महली के संपर्क में हैं। राजनीतिक जानकारों का कहना है कि गणेश महली के चलते भाजपा के वोटों में सेंधमारी की आशंका है। जबकि, चंपई के लिए झामुमो में सेंधमारी करना टेढी खीर साबित हो रहा है। जेएमएम के संगठन को हेमंत ने संभाल लिया है। सरायकेला के जेएमएम नेताओं को खुद हेमंत ने रांची में अपने आवास पर बुलाया था। यही नहीं, सांसद जोबा मांझी भी संगठन को संभालने के लिए कमान संभाले हुए हैं। यही वजह है कि चंपई सरायकेला के संगठन में ज्यादा तोड़फोड़ नहीं कर सके।
तीर धनुष देखती है जनता
शिबू सोरेन की छाप आदिवासी जनता के दिलों में है। शिबू सोरेन के प्रति लोगों में बेहद सम्मान है। कहा जाता है कि उम्मीदवार कौन है मतदाता से इससे मतलब नहीं होता। जेएमएम का मतदाता सिर्फ तीर धनुष देखता है। यही वजह है कि नेताओं की आवाजाही का जेएमएम पर ज्यादा असर नहीं पड़ता। नेता के चले जाने से जेएमएम प्रभावित नहीं होती बल्कि, नेता का अपना सियासी कैरियर ही प्रभावित हो जाता है। राजनीतिक जानकारों का कहना है कि सरायकेला में जेएमएम के वोटर अपनी जगह पर रहेंगे। वह सिर्फ तीर धनुष देखेंगे। सामने उम्मीदवार कौन है इससे मतलब नहीं है। जेएमएम ग्रामीण सीटों पर मजबूत मानी जाती है। मगर यह भी एक फैक्ट है कि सरायकेला विधानसभा क्षेत्र का एक बडा हिस्सा आदित्यपुर और गम्हरिया है। यहां शहरी मतदाताओं की अच्छी खासी तादाद है। यही शहरी मतदाता भाजपा के वोट बैंक हैं। इसी वजह से भाजपा यहां से आश्वस्त दिखती है कि भाजपा के शहरी वोटर तो हैं ही। राजनीतिक जानकारों की मानें तो चंपई को जेएमएम के ग्रामीण इलाकों के मत मिलने के साथ ही आदित्यपुर और गम्हरिया में भी वोट मिलते रहे हैं। इसीलिए माना जा रहा है कि अगर चंपई ग्रामीण इलाके से वोट बटोर सके तो यहां कमल खिल सकता है। तो दूसरी तरफ, गणेश महली भले ही बड़े नेता नहीं हों मगर, भाजपा के एक बडे कद्दावर नेता से उनकी नजदीकी जगजाहिर है। यही बड़ा नेता गणेश महली को सरायकेला से न केवल टिकट दिलाता रहा है बल्कि चुनाव में भी मदद करता रहा है। राजनीतिक हलके में चर्चा है कि इस नेता का अब भी गणेश महली के सर पर हाथ है। तभी गणेश को जेएमएम से टिकट मिला है। कहा जा रहा है कि गणेश महली की जीत के लिए इस कद्दावर नेता ने ताकत झोंक दी है।
1991 में सीन में आए थे चंपई
चंपई सोरेन 1991 में सीन में आए थे। तब विधायक कृष्णा मार्डी को लोकसभा चुनाव लड़ने के लिए कह दिया गया था। कृष्णा मार्डी बडे धाकड़ नेता रहे हैं। कृष्णा मार्डी सांसद बन गए तो सरायकेला से इस्तीफा दे दिया था। इसके बाद सीट खाली हो गई। तब चंपई चुनाव लड़े और जीत गए थे। इस जीत के बाद साल 2000 के चुनाव को छोड दें तो चंपई हर बाार जीत हासिल कर विधायक बनते रहे। साल दो हजार में यहां से भाजपा के लक्ष्मण टुडू जीते थे। इसके बाद लगातार चंपई ही इस सीट से चुनाव जीतते रहे हैं। मगर, इस बार सरायकेला में कमल खिलेगा या तीर धनुष चलेगा। इस पर लोग टकटकी लगाए हुए हैं।