मुंबई : महाराष्ट्र की राजनीति का तापमान बढ़ने लगा है. महायुति और महा विकास अघाड़ी (MVA) के बीच आमने-सामने की जोरदार टक्कर में, छोटे दलों की भूमिका भी दिलचस्प होने वाली है. इसी कड़ी में महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (MNS) के प्रमुख राज ठाकरे का भी नाम आता है, जिनके लिए इस विधानसभा चुनाव की जंग ‘करो या मरो’ जैसी है. राज ठाकरे ने अपनी पार्टी मनसे को महाराष्ट्र की सियासत में जिंदा रखने के लिए पूरा दमखम लगा दिया है, क्योंकि हाल के चुनावों में मनसे का प्रदर्शन लगातार गिरता गया है.
इस बार ठाकरे ने अपने बेटे अमित ठाकरे को भी चुनावी मैदान में उतार दिया है. महाराष्ट्र का विधानसभा चुनाव इस बार इसलिए भी खास है क्योंकि मैदान में छह बड़ी पार्टियां हैं, और बहुमत पाने के लिए महायुति और MVA के बीच कांटे की टक्कर है. महायुति गठबंधन में बीजेपी, एकनाथ शिंदे की शिवसेना और अजित पवार का एनसीपी गुट शामिल है. वहीं, विपक्षी महा विकास अघाड़ी में शिवसेना (यूबीटी), शरद पवार का एनसीपी गुट और कांग्रेस साथ में हैं.
गठबंधन की अटकलें, पर महायुति में नहीं जुड़ी मनसे
कई दिनों तक ऐसी चर्चाएं थीं कि राज ठाकरे की मनसे, महायुति में शामिल हो सकती है. लेकिन उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने साफ कर दिया कि विधानसभा चुनाव में मनसे, महायुति का हिस्सा नहीं बनेगी. फडणवीस ने राज ठाकरे को ‘दोस्त’ कहकर संबोधित किया, लेकिन इस चुनाव में मनसे के उम्मीदवार महायुति के खिलाफ मोर्चा संभालेंगे. लोकसभा चुनाव 2024 में जहां मनसे ने बीजेपी का समर्थन किया था, वहीं विधानसभा चुनाव के समीकरण अलग हैं.
पहले चुनाव में 13 सीटें, अब सिर्फ एक विधायक
राज ठाकरे की मनसे ने पहली बार 2009 के विधानसभा चुनाव में बड़ी उपलब्धि हासिल की थी, जब उसने 13 सीटें जीतीं. लेकिन इसके बाद के विधानसभा और लोकसभा चुनावों में मनसे का वोट प्रतिशत लगातार घटता गया. 2019 के विधानसभा चुनाव में तो मनसे के केवल एक विधायक ही जीत दर्ज कर पाए. पार्टी का ग्राफ लगातार गिरने से राज ठाकरे के सामने चुनौती है कि वे मनसे को राज्य की राजनीति में बरकरार रखें.
बीजेपी का समर्थन और बदलते सियासी रिश्ते
राज ठाकरे एक समय पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के समर्थक माने जाते थे, लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने कांग्रेस-एनसीपी गठबंधन के समर्थन में प्रचार किया. हालांकि, इसका असर कांग्रेस-एनसीपी की सीटों पर नहीं पड़ा. समय के साथ राज ठाकरे की राजनीति में भी बदलाव आया है. ‘मराठी मानुष’ की राजनीति से आगे बढ़ते हुए अब वे हिंदुत्व के एजेंडे पर फोकस कर रहे हैं. पिछले कुछ सालों में मस्जिदों के सामने हनुमान चालीसा पढ़ने की अपील हो या हिंदू समुदाय को साधने के लिए उनके बयान, ठाकरे का रुख हिंदुत्व की ओर झुका है.
शिवसेना के साथ विरासत की लड़ाई
राज ठाकरे हमेशा शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे की विरासत को अपनाना चाहते थे. लेकिन जब शिवसेना की कमान उद्धव ठाकरे के पास गई, तो उन्होंने अपनी अलग पार्टी महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना बना ली. बालासाहेब ठाकरे की राजनीतिक छवि को अपनाते हुए, राज ठाकरे ने मराठी पहचान की राजनीति का दांव खेला. हालांकि, अब वह हिंदुत्व की ओर झुके हैं, जिसका लाभ बीजेपी के साथ उनके संबंधों पर दिखता है.
ED की जांच के बाद बीजेपी से नजदीकी
अगस्त में राज ठाकरे को IL&FS मनी लॉन्ड्रिंग केस में प्रवर्तन निदेशालय (ED) की पूछताछ का सामना करना पड़ा था. इसके बाद उन्होंने बीजेपी के साथ नजदीकियां बढ़ाईं. ठाकरे ने बीजेपी के लिए प्रचार किया और पीएम मोदी के साथ मंच साझा किया. हाल ही में एक मराठी समाचार चैनल को दिए इंटरव्यू में उन्होंने खुलासा किया कि शिवसेना के अलावा बीजेपी ही वह पार्टी है जिसके साथ उनका रिश्ता रहा है.
अब आगे क्या ?
इस चुनाव में राज ठाकरे का फोकस पार्टी को राजनीतिक धरातल पर जीवित रखने का है. अगर मनसे को इस चुनाव में संतोषजनक सफलता नहीं मिलती है, तो महाराष्ट्र की राजनीति में उनकी स्थिति कमजोर हो सकती है. चुनावी नतीजे ये बताएंगे कि क्या राज ठाकरे अपने करिश्माई अंदाज और हिंदुत्व के एजेंडे के जरिए महाराष्ट्र में अपनी पार्टी का खोया स्थान वापस पा सकते हैं या नहीं.