रांची : झारखंड में चुनावी बिगुल बजने के साथ ही पार्टियों ने अपने प्रत्याशियों के नाम का ऐलान जैसे ही ऐलान किया गया और जैसे ही प्रत्याशियों के लिस्ट सामने आई, उससे ये पता चल ही गया कि झारखंड राजनीति अखाड़े के कई बडे पहलवानों का टिकट कट गया है. झारखंड चुनावी मैदान में इस बार बगावत का तड़का लगा है. टिकट से वंचित नेताओं ने अपनी ही पार्टियों के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है. सबसे ज्यादा बागी उम्मीदवार एनडीए से निकलकर निर्दलीय मैदान में उतर चुके हैं. एनडीए में बगावत का आलम ये है कि 18 नेता अपनी ही पार्टी के प्रत्याशियों के सामने चुनौती पेश कर रहे हैं, 13 भाजपा से और 5 आजसू से. उधर, इंडिया गठबंधन भी इस बगावत से अछूता नहीं रहा है. इंडिया के 13 नेता, जिनमें 9 झामुमो और 3 कांग्रेस के हैं, अपनी ही पार्टी के खिलाफ ताल ठोक रहे हैं.
कई सीटों पर बागियों की वजह से मुकाबला बेहद कांटे का हो चुका है. निर्दलीय उम्मीदवार अगर अच्छी संख्या में वोट जुटाने में सफल होते हैं, तो गठबंधनों के कई समीकरण बिगड़ सकते हैं. 2019 के चुनाव में भी बागियों ने बड़ा उलटफेर किया था. सबसे चौंकाने वाली जीत तब देखने को मिली थी जब रघुवर दास की सरकार में मंत्री रहे सरयू राय को भाजपा ने टिकट देने से इनकार कर दिया था. नाराज सरयू राय ने रघुवर दास के खिलाफ जमशेदपुर पूर्वी से निर्दलीय चुनाव लड़ा और 15 हजार वोटों से उन्हें मात दी. इसी तरह भाजपा के अमित यादव ने बरकट्ठा से निर्दलीय मैदान में उतरकर जीत दर्ज की थी.
इंचागढ़ में आजसू के खिलाफ मोर्चा
इंचागढ़ विधानसभा सीट गठबंधन के तहत आजसू को मिली है, लेकिन पार्टी के अंदरूनी कलह के चलते यहां मुकाबला पेचीदा हो गया है. 3 बार विधायक रह चुके अरविंद सिंह पार्टी से बगावत कर निर्दलीय चुनाव लड़ रहे हैं. अरविंद सिंह का स्थानीय स्तर पर खासा प्रभाव है, और अगर वे अपने समर्थकों को साधने में सफल रहे, तो एनडीए को बड़ा झटका लग सकता है. आजसू ने इंचागढ़ से हरेलाल महतो को चुनावी मैदान में उतारा है. अब ये देखना दिलचस्प होगा कि यह सीट निर्दलीय लड़कर अरविंद सिंह अपने खाते में ले जाते है या एनडीए गठबंधन.
सिसई में JMM की मुश्किलें
सिसई में झामुमो के लिए हालात चुनौतीपूर्ण हो गए हैं. पार्टी नेता जेंगा उरांव ने टिकट न मिलने पर बगावत कर दी और निर्दलीय चुनाव मैदान में उतर आए. जेंगा का क्षेत्र में मजबूत जनाधार है और पिछले चुनाव में उनकी सक्रियता ने झामुमो प्रत्याशी जिग्गा सुसारन होरो की जीत सुनिश्चित की थी. अब उनका विरोध पार्टी के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकता है.
हटिया में NDA को झटका
आजसू के भरत काशी पिछले पांच साल से हटिया के ग्रामीण इलाकों में सक्रिय रहे हैं. पार्टी ने उन्हें टिकट नहीं दिया, तो उन्होंने निर्दलीय मैदान में उतरने का फैसला किया. काशी का ग्रामीण क्षेत्रों में अच्छा प्रभाव है और उनके चलते यहां एनडीए प्रत्याशी का समीकरण बिगड़ सकता है.
जमशेदपुर में BJP के लिए खतरे की घंटी
जमशेदपुर पश्चिमी और पूर्वी सीटें भाजपा के लिए सबसे मुश्किल साबित हो रही हैं. पश्चिमी सीट से भाजपा नेता विकास सिंह निर्दलीय मैदान में हैं. पार्टी के पुराने कार्यकर्ता रहे विकास सिंह के कारण एनडीए प्रत्याशी की राह कठिन हो सकती है. वहीं, पूर्वी सीट पर शिवशंकर सिंह और राजकुमार सिंह, दोनों भाजपा नेताओं ने निर्दलीय चुनाव लड रहे है. इन दोनों नेताओं का स्थानीय स्तर पर मजबूत जनाधार है और ये भाजपा को तगड़ा नुकसान पहुंचा सकते हैं.
जमशेदपुर पूर्वी से इस भाजपा ने रघुवर दास की बहु पूर्णिमा दास साहू को मैदान में उतारा है. पूर्णिमा के चुनाव मैदान में उतरने से भाजपा के अंदर अंतर्कलह चरम पर है और इसका ही यह परिणाम है कि शिवशंकर सिंह और राजकुमार सिंह निर्दलीय चुनाव मैंदान में हैं. वहीं शंभू चौधरी भी जमशेदपुर पश्चिमी से निर्दलीय चुनाव मैदान में हैं. जीत की संभावना भले ही कम हो, लेकिन वे एनडीए प्रत्याशी सरयू राय का खेल बिगाड़ने में कोई कसर नहीं छोडेंगे.
गुमला और लातेहार में त्रिकोणीय मुकाबला
गुमला में भी भाजपा को बागियों से खतरा है. मिशिर कुजूर, जिनकी पकड़ युवाओं और सरना आदिवासी समुदाय में मजबूत है, वे अब निर्दलीय मैदान में हैं. उनकी वजह से एनडीए को नुकसान उठाना पड़ सकता है. झामुमो के अमित एक्का भी गुमला से टिकट के दावेदार थे, लेकिन टिकट न मिलने पर उन्होंने निर्दलीय लड़ाई का रास्ता चुना है. वहीं लातेहार में कांग्रेस के मुनेश्वर उरांव ने बगावत कर दी है. लातेहार के महुआडांड क्षेत्र में उनका खासा प्रभाव है, और उनकी मौजूदगी से इंडिया गठबंधन के लिए समीकरण बिगड़ सकते हैं.
रानी कुमारी का राजद से बगावत
राजद की प्रदेश महिला अध्यक्ष रहीं रानी कुमारी भी इस बार निर्दलीय मैदान में हैं. टिकट नहीं मिलने पर उन्होंने पार्टी से नाराज होकर चुनाव लड़ने का फैसला किया है. रानी कुमारी का प्रभाव नजदीकी मुकाबले में इंडिया गठबंधन के लिए मुश्किलें खडी कर सकता है.
विशुनपुर में महात्मा उरांव का दांव
विशुनपुर सीट पर झामुमो नेता महात्मा उरांव की नाराजगी ने पार्टी की मुश्किलें बढ़ा दी हैं. उरांव का प्रभाव पश्चिम पठारी क्षेत्र में है और उनकी बगावत से झामुमो को नुकसान उठाना पड़ सकता है. इस बार झारखंड चुनाव में बागियों का जोर साफ दिख रहा है. कई प्रमुख सीटों पर बागियों की मौजूदगी एनडीए और इंडिया, दोनों गठबंधनों के लिए सिरदर्द साबित हो सकती है. अगर निर्दलीय उम्मीदवार ठीक-ठाक वोट जुटाने में कामयाब रहे, तो कई सीटों पर चुनावी समीकरण पलट सकते हैं. पिछली बार की तरह इस बार भी बागियों की कुछ जीतें पूरे चुनावी नतीजों को प्रभावित कर सकती हैं.
झारखंड की चुनावी फिजा में इस बार एक बात तो तय है—बागियों के बवाल से मुकाबले और दिलचस्प हो गए हैं. अब देखना होगा कि जनता किसे अपना जनादेश देती है और कौन अपने चुनावी सफर में इतिहास दोहराने में सफल होता है.