इन सीटों पर चुनाव लड रहे मंत्री, पूर्व मंत्री या उनके रिश्तेदार
आ सकते हैं कई चौंकाने वाले परिणाम, कई की साख दांव पर
जमशेदपुर: झारखंड विधानसभा चुनाव में पहले चरण में 43 सीटों में से 13 सीटें बेहद अहम मानी जा रही हैं। यह सीटें वह हैं जिनमें मंत्री चुनाव लड़ रहे हैं, पूर्व मंत्री हैं या उनके रिश्तेदार चुनावी मैदान में हैं। इन 13 सीटों पर सभी की टकटकी लगी हुई है कि यहां क्या होता है। इनमें कुछ ऐसे कैंडीडेट भी हैं जो चुनाव में सभी को चौंका सकते हैं। कुछ सीटों पर चौंकाने वाले नतीजे आ सकते हैं। आज हम इन सीटों की समीक्षा पेश करेंगे।
हटिया में इस बार कौन
हटिया में भाजपा के नवीन जायसवाल और कांग्रेस के अजयनाथ शाहदेव के बीच मुकाबला है। यहां से नवीन जायसवाल साल 2012 के उपचुनाव में पहली बार विधानसभा चुनाव जीते थे। 2014 में नवीन जायसवाल ने बाबूलाल मरांडी की पार्टी जेवीएम से चुनाव लड़ा और जीता था। बाद में जब बाबूलाल मरांडी ने अपनी पार्टी का विलय भाजपा में कर लिया तो नवीन जायसवाल भी बीजेपी में आ गए और 2019 का चुनाव जीता।
गढवा में जेएमएम व भाजपा के बीच सपा ने बनाया त्रिकोण
गढवा सीट पर इंडिया गठबंधन की तरफ से जेएमएम के प्रत्याशी मिथिलेश ठाकुर भाजपा के पूर्व विधायक सत्येंद्र तिवारी का मुकाबला कर रहे हैं। सपा से पूर्व मंत्री गिरीनाथ सिंह ने मैदान में उतर कर मुकाबला त्रिकोणीय बना दिया है। इस रोचक चुनावी जंग में मंत्री मिथिलेष ठाकुर की प्रतिष्ठा दांव पर है। इस सीट पर सत्येंद्र तिवारी 2009 और 2014 में चुनाव जीत चुके हैं। सपा उम्मीदवार गिरीनाथ सिंह ने 2005 में राजद के टिकट पर यहां से चुनाव जीता था। 2019 के चुनाव में जेएमएम के मिथिलेष ठाकुर विजयी हुए थे।
जमशेदपुर पश्चिम में बन्ना व सरयू में मुकाबला
जमशेदपुर पश्चिम में इंडिया गठबंधन की तरफ से कांग्रेस के उम्मीदवार स्वास्थ्य मंत्री बन्ना गुप्ता और एनडीए से जदयू के सरयू राय के बीच मुकाबला है। 2014 के मुकाबले में सरयू राय ने बन्ना गुप्ता को हरा दिया था। 2019 के चुनाव में सरयू रघुवर दास को हराने के लिए जमशेदपुर पूर्वी चले गए थे। बन्ना गुप्ता ने भाजपा के देवेंद्र सिंह को हराया था। 2005 में सरयू राय और 2009 में बन्ना गुप्ता जीते थे।
जमशेदपुर पूर्वी में रघुवर की बहू व सुपर कॉप में मुकाबला
जमशेदपुर पूर्वी में पूर्व सीएम रघुवर दास की बहू पूर्णिमा दास साहू और इंडिया गठबंधन के कांग्रेस के उम्मीदवार सुपर कॉप डाक्टर अजय कुमार आमने सामने हैं। इस सीट पर 1995 के बाद से रघुवर दास जीतते रहे हैं। साल 2019 में उन्हें उन्हीं के पार्टी के बागी नेता सरयू राय ने धूल चटा दी थी। इस चुनाव में इस सीट पर भाजपा के बागी नेता शिवशंकर सिंह मुकाबले को रोचक बनाने में जुटे हुए हैं। यहां परिवारवाद मुख्य मुद्दा बन गया है। भाजपा के लोग नाराज हैं कि रघुवर दास ने अपनी बहू को ही टिकट दिला दिया। बाकी कार्यकर्ता क्या हमेशा पार्टी का झंडा ही ढोते रहेंगे। यह नाराजगी भाजपा से भी है कि पार्टी अपने उसूल से हट गई है। कई भाजपाई तो यहां तक कह रहे हैं कि अब पार्टी का परिवारवाद का ढोंग उजागर हो गया है।
पोटका में परिवारवाद का मुद्दा हावी
पोटका में दो पूर्व केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा की पत्नी मीरा मुंडा चुनाव लड़ रही हैं। यहां दो मुद्दे चल रहे हैं। परिवारवाद के अलावा भूमिज का मुद्दा अहम है। इस सीट पर भाजपा में अंदरखाने काफी नाराजगी चल रही है। पार्टी में भितरघात हो सकता है। पोटका के लोग इस बात से भी नाराज हैं कि भाजपा ने पोटका से बाहर का उम्मीदवार दे दिया है। पोटका में राजनीति पर भूमिज बिरादरी हावी है। यहां भूमिज की संख्या भी अधिक है। इस बिरादरी के लोग भाजपा से भूमिज उम्मीदवार की मांग कर रहे थे। पूर्व विधायक मेनका सरदार भी भूमिज हैं। इसीलिए भूमिज बिरादरी भाजपा से नाराज है कि उसकी बिरादरी का प्रत्याशी नहीं है। इस सीट पर 2005 से अब तक भूमिज बिरादरी के उम्मीदवार ही चुनाव जीतते रहे हैं। 2005 में जेएमएम के अमूल्यो सरदार, 2009 में भाजपा की मेनका सरदार, 2014 में भाजपा की मेनका सरदार और 2019 में जेएमएम के संजीव सरदार जीते थे। अब लोगों की निगाह इस पर टिक गई है कि यहां से कौन जीतेगा। अर्जुन मुंडा की प्रतिष्ठा दांव पर है।
चाईबासा में क्या चौथी बार कामयाब होगी जेएमएम
चाईबासा में लगातार तीन बार चुनाव जीत चुकी जेएमएम के सामने इस बार चौथी जीत की चुनौती है। जेएमएम के दीपक बिरुआ यह चुनौती झेल रहे हैं। यहां साल 2005 में भाजपा को जीत नसीब हुई थी। जब पुत्कर हेंब्रम चुनाव जीते थे। तब से भाजपा यहां कामयाबी को तरस रही है। 2009, 2014 और 2019 में जेएमएम के दीपक बिरुआ ने बाजी मारी है। इस पर भाजपा की गीता बलमुचू मैदान में हैं। इस सीट पर लोगों की निगाह है कि आखिर 13 नवंबर को वोटर का मूड क्या रहता है। अगर दीपक बिरुआ लगातार चौथी बार जीतते हैं तो उनके कद में अप्रत्याशित तौर पर इजाफा होगा।
भवनाथपुर में फंसी भानू की हैट्रिक
भवनाथपुर में विधायक भानूप्रताप शाही लगातार दो चुनावों 2014 और 2019 से विधायक बन रहे हैं। 2014 में नवजीवन संघर्ष मोर्चा के टिकट पर और साल 2019 में भाजपा के टिकट पर चुनाव जीते थे। इस बार वह हैट्रिक मारने की कोशिश में हैं। इंडिया गठबंधन ने उनकी हैट्रिक रोकने के लिए 2009 में उन्हें हराने वाले अनंत प्रताप देव का मैदान में उतार दिया है। इस वजह से भानूप्रताप शाही टेंशन में हैं। भानूप्रताप शाही 2005 में आल इंडिया फारवर्ड ब्लाक के टिकट पर चुनाव लड़ कर पहली बार विधायक बने थे। इस सीट पर इस बार क्या खेल होता है। इसे लेकर लोग यहां नजरें बनाए हुए हैं।
क्या जेएमएम भेद पाएगी खूंटी का किला
खूंटी भाजपा का गढ़ है। यहां से नीलकंठ मुंडा बराबर चुनाव जीत रहे हैं। 2014 और 2019 में चुनाव की बाजी नीलकंठ सिंह मुंडा के ही हाथ में रही है। इस बार नीलकंठ सिंह मुंडा के सामने जेएमएम के रामसूर्य मुंडा हैं। भाजपा को यह बात खल रही है कि इस सीट पर लोकसभा चुनाव में जनता ने उन्हें नकार दिया था। भाजपा खूंटी में 47 हजार वोट से पिछड गई थी। भाजपाई इसकी भरपाई करने में जुटे हैं। मगर, जेएमएम इस बार इस किले में सेंधमारी की कोशिश में है।
रांची में भाजपा के सीपी सिंह की मुश्किल में
रांची में इस बार भाजपा का गढ भेदने के लिए जेएमएम की उम्मीदवार महुआ माजी तैयार हैं। पिछली बार महुआ बेहद कम अंतर 5904 वोट से हारी थीं। इस बार इस अंतर को पाटने के लिए वह जी जान से जुटी हैं। उनके सामने सीपी सिंह इस बार पिछले चुनाव के अनुभव को देखते हुए मुश्किल में हैं। वह पूरी तरह से अलर्ट मोड में हैं। जनता को बताया जा रहा है कि यह सीपी सिंह का आखिरी चुनाव है। ताकि, जनता की हमदर्दी बटोरी जा सके। जेएमएम भी रांची को हर हाल में जीतने के लिए शतरंज के दांव चल रही हैं। इस बार जेएमएम सीपी सिंह को बोल्ड कर पाती हैं या नहीं इसे लेकर लोग रांची सीट पर टकटकी लगाए हुए हैं।
बड़कागांव में कांग्रेस का है वर्चस्व
बड़कागांव में कांग्रेस के पूर्व विधायक योगेंद्र साव का परिवार पिछले तीन चुनाव से हावी है। साल 2005 में यहां से भाजपा के लोकनाथ महतो जीते थे। इसके बाद 2009 में कांग्रेस के योगेंद्र साव, 2014 में योगेंद्र की पत्नी निर्मला देवी और 2019 में उनकी बेटी अंबा प्रसाद विधायक बनी हैं। इस सीट पर 15 साल तक भाकपा के रमेंद्र कुमार और इतने ही साल भाजपा के लोकनाथ महतो का कब्जा रहा था।
लोहरदगा में मंत्री की साख का सवाल
लोहरदगा में मंत्री रामेश्वर उरांव की साख का सवाल है। 2019 में यहां से चुनाव जीतने वाले रामेश्वर उरांव के सामने इस बार 2009 व 2014 में आजसू के टिकट पर चुनाव जीतने वाले कमल किशोर भगत की पत्नी नीरू शांति भगत चुनाव लड रहे हैं। 2005 में यहां से कांग्रेस के सुखदेव भगत भी चुनाव जीते हैं। इस बार झारखंड के लोग इस सीट पर निगाह जमाए हैं कि रामेश्वर उरांव का क्या होगा।
सरायकेला में चंपई का क्या होगा
सरायकेला से इस बार फिर चंपई मैदान में हैं। मगर, इस दफा उनकी पार्टी जेएमएम नहीं बल्कि भाजपा है। चंपई भाजपा से हैं। वह इस सीट से जेएमएम के टिकट पर पांच बार जीत चुके हैं। इस बार भाजपा से पहली बार मैदान में होने की वजह से सबकी निगाहें टिकी हुई हैं कि आखिर इस बार यहां क्या होने जा रहा है। भाजपा के टिकट पर उम्मीदवार रहे गणेश महाली भी इस बार उम्मीद में हैं। प्रदेश ही नहीं देश के बडे सियासतदान इस सीट पर निगाह जमाए हुए हैं। चंपई यहां से झामुमो के टिकट पर 2005, 2009, 2014 और 2019 में चुनाव जीत चुके हैं।
घाटशिला में मंत्री के सामने पूर्व सीएम का बेटा
घाटशिला सीट से जल संसाधन मंत्री रामदास सोरेन के सामने पूर्व सीएम चंपई सोरेन के बेटे बाबूलाल सोरेन हैं। 2005 में कांग्रेस के प्रदीप बलमुचू, 2009 में जेएमएम के रामदास सोरेन, 2014 में भाजपा के लक्ष्मण टुडू और 2019 में जेएमएम के रामदास सोरेन जीते हैं। बाबूलाल सोरेन घाटशिला में दो साल से मेहनत कर रहे थे। इस वजह से रामदास सोरेन के सामने इस बार बाबूलाल सोरेन दिक्कत बन कर आए हैं। इस सीट पर भी लोगों की निगाहें हैं।