आठ सीटों पर चुनाव लड़ रहे कद्दावर नेताओं के वारिस
झारखंड विधानसभा चुनाव के दूसरे चरण में 20 नवंबर को मतदान होना है। इस चरण की 8 सीटें ऐसी हैं जहां पुराने दिग्गज नेताओं की विरासत दांव पर है। इनके राजनीतिक वारिस अपनों की सियासी विरासत बचाने के लिए मैदान में उतरे हैं। हम आज इस खबर में इन्हीं सीटों का विश्लेषण करेंगे। बताएंगे कि इन सीटों पर राजनीतिक समीकरण क्या हैं। कौन किस पर भारी पड़ रहा है। इंडिया या एनडीए में कौन आगे निकल रहा है।
इन नेताओं के राजनीतिक वारिस कर रहे मुकाबला
आइए अब हम बताते हैं कि कभी झारखंड की सियासत पर चमकने वाले सितारों के कौन कौन से वारिस किन किन सीटों से चुनावी मैदान में हैं और इनकी क्या चुनावी स्थिति है। जिन नेताओं के राजनीतिक वारिस चुनाव मैदान में हैं उनमें जेएमएम के शिबू सोरेन, कांग्रेस के राजेंद्र प्रसाद सिंह, जेएमएम सांसद नलिन सोरेन, सांसद चंद्रप्रकाश चौधरी, पूर्व विधायक सूर्यदेव सिंह, पूर्व सांसद फुरकान अंसारी, दीपिका पांडेय सिंह और समरेश सिंह हैं। इन नेताओं के राजनीतिक वारिस इस बार अपने सियासी प्रतिद्विद्वियों से दो दो हाथ कर रहे हैं। सबकी निगाहें इस बात पर टिकी हुई हैं कि इन राजनीतिक वारिसों का इस बार क्या होता है। यह लोग अपनी चुनावी नैया पार लगा कर अपनों की राजनीतिक विरासत को बचा पाते हैं या नहीं।
बरहेट में हैं शिबू सोरेन के राजनीतिक वारिस
सबसे पहले हम बात करते हैं सीएम हेमंत सोरेन की। जेएमएम के सुप्रीमो शिबू सोरेन की झारखंड में जो राजनीतिक हनक रही है उसे कौन नहीं जानता। शिबू सोरेन झारखंड के तीन बार मुख्यमंत्री रहे हैं। शिबू सोरेन के आंदोलन की ही देन है कि झारखंड का निर्माण हुआ। उनके राजनीतिक वारिस हेमंत सोरेन बरहेट से चुनाव लड़ रहे हैं। उनके सामने भाजपा के जी हेंब्रम हैं। बरहेट हेमंत सोरेन के लिए सेफ सीट मानी जाती है। यह सीट जेएमएम का गढ़ है। साल 2014 में जब हेमंत सोरेन को दुमका में खतरा महसूस हुआ तो वह बरहेट से भी चुनाव लड गए थे। हेमंत सोरेन की आशंका सही निकली थी। दुमका से हेमंत भाजपा की लुइस मरांडी से हार गए थे। मगर, बरहेट ने उनकी लाज रख ली थी। यही वजह रही कि साल 2019 में जब हेमंत दुमका और बरहेट दोनों जगह से जीते तो उन्होंने बरहेट का दिल रखने के लिए ही दुमका सीट छोड दी थी। इसके बाद बरहेट में हेमंत का सिक्का चलता है। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि बरहेट में इस बार भी हेमंत ही नजर आएंगे।
बेरमो में बेटे संभाल रहे राजेंद्र प्रसाद की विरासत
कांग्रेस के दिवंगत दिग्गज नेता राजेंद्र प्रसाद सिंह की राजनीतिक विरासत उनके बेटे कुमार जयमंगल संभाल रहे हैं। कुमार जयमंगल बेरमो से चुनाव लड़ रहे हैं। इस सीट पर त्रिकोणीय मुकाबला है। बेरमो में कुमार जयमंगल के सामने भाजपा के रवींद्र पांडेय के अलावा झारखंड लोकतांत्रिक क्रांतिकारी मोर्चा के जयराम महतो भी हैं। इस सीट पर भाजपा और कांग्रेस के उम्मीदवार जीतते रहे हैं। एक टर्म कांग्रेस को मिला तो दूसरा टर्म भाजपा को। यहां की जनता ने भाजपा और कांग्रेस दोनों के उम्मीदवारों को निराश नहीं किया। साल 2000 में यहां से कांग्रेस के राजेंद्र प्रसाद सिंह जीते थे तो साल 2005 में भाजपा के योगेश्वर महतो को जीत मिली थी। साल 2009 में राजेंद्र प्रसाद सिंह जीते थे तो साल 2014 में भाजपा के योगेश्वर महतो ने जीत हासिल की थी। साल 2019 में फिर राजेंद्र प्रसाद सिंह जीत गए थे। मगर, उनके निधन के बाद उनके बेटे कुमार जयमंगल उनके राजनीतिक वारिस बने। कुमार जयमंगल ने साल 2020 में हुए उपचुनाव में जीत दर्ज की थी। उन्होंने भाजपा के योगेश्वर महतो को हराया था। इस बार इस सीट पर त्रिकोणीय मुकाबला है। भाजपा से रवींद्र पांडेय और जेएलकेएम से जयराम महतो चुनावी मैदान में कुमार जयमंगल के सामने हैं। महतो बिरादरी भाजपा को वोट करती रही है। मगर, इस बार भाजपा से महतो उम्मीदवार नहीं होने का प्रभाव पड रहा है। इस बार महतो बिरादरी जयराम के साथ जा सकती है। इस सीट पर इंडिया गठबंधन ने तो चुनावी शतरंज की बिसात पर अपने मोहरे बिछाए हैं। इसमें कांग्रेसी कितने कामयाब हो पाते हैं यह 23 नवंबर को पता चलेगा।
शिकारीपाडा में नलिन सोरेन की राजनीतिक विरासत
शिकारीपाडा में जेएमएम के सांसद नलिन सोरेन के राजनीतिक वारिस आलोक सोरेन चुनाव लड रहे हैं। यहां जेएमएम का सीधा मुकाबला भाजपा से है। भाजपा से पारितोष सोरेन मैदान में हैं। यह सीट जेएमएम के साथ ही नलिन सोरेन का गढ है। नलिन सोरेन साल 2000 से अब तक लगातार जीतते रहे हैं। अब नलिन सोरेन सांसद बन गए हैं तो अपनी सीट पर बेटे आलोक सोरेन को चुनाव लडा रहे हैं। नलिन सोरेन का मुकाबला भाजपा के पारितोष सोरेन से है। पारितोष सोरेन साल 2019 में बीजेपी के टिकट पर और साल 2014 और 2009 में झारखंड विकास मोर्चा के टिकट पर नलिन सोरेन से हारे थे। इस सीट पर जेएमएम पूरे दमखम के साथ चुनाव लड रही है।
रामगढ में चंद्रप्रकाश चौधरी की सियासी विरासत
रामगढ से सांसद चंद्रप्रकाश चौधरी की राजनीतिक वारिस बन कर उनकी पत्नी सुनीता चौधरी आजसू के टिकट पर चुनाव लड़ रही हैं। यहां त्रिकोणीय मुकाबले की बात कही जा रही है। इस सीट पर सुनीता चौधरी के सामने कांग्रेस की ममता देवी और जेएलकेएम के परमेश्वर कुमार हैं। रामगढ आजसू का गढ है। यहां से आजसू के चंद्र प्रकाश चौधरी साल 2005, साल 2009 में साल 2014 में लगातार जीते थे। साल 2019 में चंद्रप्रकाश चौधरी की पत्नी सुनीता चौधरी यहां से चुनाव लडी थीं। मगर, कांग्रेस की ममता देवी से हार गई थीं। ममता देवी रामगढ से विधायक बनी थीं। मगर, गोला गोलीकांड में दोषी पाए जाने के बाद ममता देवी की विधायकी चली गई थी। साल 2023 में चुनाव हुआ था। इसमें सुनीता चौधरी के सामने ममता देवी के पति बजरंग महतो चुनाव लडे थे। मगर, हार गए थे। इस बार यहां जेएलकेएम भी एक मजबूत फैक्टर है। इस बार कांग्रेस ने यहां से फिर पूर्व विधायक ममता देवी को ही टिकट दिया है। इस बार ममता देवी क्या करिश्मा दिखा पाती हैं, यह वक्त बताएगा।
झरिया में कौन बनेगा सूर्य देव सिंह की विरासत का वारिस
झरिया में पूर्व विधायक सूर्य देव सिंह की विरासत को लेकर लड़ाई है। यहां उनकी दो बहू पूर्णिमा नीरज सिंह और रागिनी सिंह के बीच मुकाबला है। पूर्णिमा नीरज सिंह कांग्रेस से हैं और रागिनी सिंह भाजपा से चुनाव लड रही हैं। इस सीट पर कांग्रेस और भाजपा में सीधी लडाई है। यह सीट देवरानी-जेठानी के बीच चुनावी जंग के तौर पर जानी जाती है। 1977 में जनता पार्टी के टिकट पर पहली बार सूर्यदेव सिंह इस झरिया के विधायक बने थे। तभी उनकी कोठी सिंह मेंशन राजनीति के केंद्र के तौर पर उभरी थी। इसके बाद 1980 में जनता पार्टी, पचासी में जनता पार्टी और 1990 में जनता दल के टिकट पर चुनाव लड़ कर विधानसभा पहुंचे थे। सूर्य देव सिंह का 1991 में विधायक रहते ही निधन हो गया। इसके बाद 1991 के उप चुनाव और 1995 के चुनाव में समाजवादी जनता पार्टी के टिकट पर चुनावी मैदान में उतरे सूर्य देव सिंह के भाई बच्चा सिंह जनता दल की आबो देवी से हार गईं। मगर, 2000 के चुनाव में समता पार्टी के टिकट पर चुनाव लड रहे बच्चा सिंह जीत गए। साल 2005 के चुनाव में झरिया से दिवंगत सूर्य देव सिंह की पत्नी कुंती सिंह भाजपा के टिकट पर मैदान में उतरीं और जीत गईं। 2009 में भी कुंती सिंह ही विधायक बनीं। 2014 के चुनाव में इस परिवार में दुश्मनी शुरू हुई। कुंती सिंह के बेटे संजीव सिंह और उनके चचेरे भाई नीरज सिंह के बीच मुकाबला हुआ। इस जंग में संजीव सिंह जीते। इसी के बाद साल 2017 में नीरज सिंह की हत्या कर दी गई। आरोप संजीव पर लगा। 2019 के चुनाव में नीरज सिंह की पत्नी पूर्णिमा नीरज सिंह संजीव सिंह की पत्नी रागिनी सिंह को हरा दिया था। इस बार फिर पूर्णिमा नीरज सिंह कांग्रेस के टिकट पर और रागिनी सिंह भाजपा के टिकट पर चुनाव मैदान में हैं। देखते हैं कि इस बार झरिया में क्या होता है।
जामताडा में फुरकान अंसारी की विरासत
जामताड़ा में पूर्व सांसद फुरकान अंसारी के बेटे इरफान अंसारी उनकी सियासत विरासत संभाल रहे हैं। उनका सीधा मुकाबला भाजपा की सीता सोरेन से है। सीता सोरेन शिबू सोरेन की बहू हैं। शिबू सोरेन भी जामताड़ा से एक बार विधायक बन चुके हैं। इस चुनाव में दो बडे़ नेताओं के वारिस चुनाव मैदान में हैं। अब देखना है कि इरफान अंसारी कामयाब होते हैं या सीता सोरेन सफल होती हैं। साल दो हजार में यहां से कांग्रेस के टिकट पर फुरकान अंसारी चुनाव जीते थे। साल 2005 में जामताडा से भाजपा भी चुनाव जीत चुकी है। साल 2009 में जेएमएम ने यहां से बाजी मारी थी। इसी साल उपचुनाव हुआ और शिबू सोरेन जीत कर विधायक बने थे। साल 2014 और साल 2019 में यहां से फुरकान अंसारी के बेटे इरफान अंसारी चुनाव जीतते रहे हैं। इस बार उनके सामने शिबू सोरेन की बहू सीता सोरेन हैं। इस बार यहां की लडाई इरफान अंसारी के लिए थोडा मुश्किल लग रही है।
महागामा में अवध बिहारी सिंह की सियासी विरासत
महागामा सीट पर पूर्व मंत्री अवध बिहारी सिंह की राजनीतिक विरासत है। उनकी यह विरासत संभाली है उनकी बहू दीपिका पांडेय सिंह ने। इस बार फिर वह कांग्रेस के टिकट पर मैदान में हैं। उनके सामने हैं भाजपा के अशोक भगत। साल 2019 में दीपिका पांडेय सिंह ने भाजपा के तत्कालीन विधायक अशोक कुमार को हराया था। साल 2014 में यहां से जेवीएम के शाहिद इकबाल को हरा कर भाजपा के अशोक कुमार विधायक बने थे। 2009 में यहां से कांग्रेस के राजेश रंजन जीते थे। उन्होंने भाजपा के अशोक कुमार को हराया था। 2005 में यहां से भाजपा के अशोक कुमार जीत कर विधायक बने थे। साल 2000 में भी यह सीट भाजपा के अशोक कुमार ने ही जीती थी। इस बार यहां से कांग्रेस जीतती है या फिर भाजपा बाजी पलटने में कामयाब रहती है। 23 नवंबर को पता चलेगा।
बोकारो में समरेश सिंह की विरासत
बोकारो में पूर्व मंत्री समरेश सिंह की विरासत उनकी बहू श्वेता सिंह संभाल रही हैं। बोकारो में वह कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड रही हैं। उनका मुकाबला भाजपा के विधायक बिरंची नारायण से है। साल 2019 में बिरंची नारायण ने श्वेता सिंह को हरा दिया था। साल 2014 में बिरंची नारायण से समरेश सिंह खुद चुनाव हार गए थे। 2009 में इस सीट से जेवीएम के टिकट पर समरेश सिंह चुनाव जीते थे। साल 2005 के चुनाव में समरेश सिंह तीसरे नंबर पर थे। जबकि, 2000 के चुनाव में निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर मैदान में उतरे समरेश सिंह चुनाव जीत गए थे। इस बार उनकी बहू श्वेता सिंह पर समरेश सिंह की राजनीतिक विरासत बचाने का दारोमदार है।