झारखंड में बीजेपी का दांव उल्टा पड गया है। बीजेपी ने नई सीटें जीतने के चक्कर में अपनी पुरानी पंद्रह सीटें गंवा दीं जहां विधानसभा चुनाव दो हजार उन्नीस में उसने जीत दर्ज की थी। यही वजह रही कि बीजेपी की सीटें कम हो गईं। अपनी इस गलत रणनीति के चलते बीजेपी ने ग्यारह नई सीटें तो जीतीं मगर पुरानी सीटें हार जाने की वजह से उसका समीकरण गड़बड़ हो गया।
झारखंड चुनाव में प्वाइंट निर्णायक रहा कि किसी पार्टी ने नई सीटें कितनी जीतीं और पुरानी कितनी सीटों पर काबिज रही। इस मामले में जेएमएम ने बाजी मार ली। हेमंत सोरेन की सटीक रणनीति की वजह से जेएमएम ने अपनी पुरानी तीस सीटों में से छब्बीस सीटों पर कब्जा बरकरार रखा। साथ ही जेएमएम ने आठ नई सीटों पर बाजी मार ली। कांग्रेस की भी रणनीति ठीक रही। कांग्रेस ने भी अपनी पुरानी सोलह सीटों में से ग्यारह सीटें बरकरार रखीं। पुरानी सीटों में से कांग्रेस पांच सीटों पर हार गई मगर, पार्टी ने पांच नई सीटें जीत लीं जिससे उसका प्रदर्शन ठीक-ठाक कहा जा रहा है। मगर, बीजेपी पिछड गई। बीजेपी पुरानी सीटों पर कब्जा बरकरार नहीं रख सकी। जेएमएम संथाल और कोल्हान में मजबूत है। पार्टी ने अपने इन दोनों गढ पर ध्यान दिया और यहां बीजेपी को कामयाब नहीं होने दिया। जेएमएम ने छोटा नागपुर इलाके में छह नई सीटें जीत कर अपना स्कोर बढिया कर लिया। कांग्रेस ने उत्तरी छोटा नागपुर में तीन पुरानी सीटें गंवा दी है। कांग्रेस ने इसकी भरपाई दक्षिणी छोटा नागपुर से कर ली है। इस इलाके में कांग्रेस ने दो नई सीटें जीत ली हैं।
संथाल परगना में बीजेपी का सूपडा साफ
संथाल परगना में छह जिले हैं। यहां बीजेपी का सूपडा साफ हो गया। संथाल परगना के लिए ही बीजेपी बांग्लादेशी घुसपैठ का मुद्दा लेकर आई थी। मगर, संथाल के लोगों ने बता दिया कि यहां घुसपैठ का मुद्दा नहीं चलने वाला। कई आदिवासी नेताओं का कहना है कि बीजेपी जिस तरह आदिवासियों की बेटी के बारे में बात कर रही थी वह जनता को बुरा लगा। इसीलिए जनता ने संथाल में बीजेपी को सबक सिखा दिया। मांडर की विधायक शिल्पी नेहा तिर्की ने बीजेपी के इस पर एतराज भी जताया था। संथाल में अठ्ठारह सीटें हैं। इनमें से बीजेपी को एक नई सीट मिल सकी। बीजेपी ने इस इलाके में विधानसभा चुनाव दो हजार उन्नीस में जो चार सीटें जीती थीं। वह गंवा दीं। उत्तरी छोटा नागपुर में सात जिले हैं। यहां पचीस सीटें हैं। इस प्रमंडल में बीजेपी ने इस चुनाव में बारह सीटें जीती हैं। इनमें से छह सीटें नई हैं। पांच पुरानी सीटें बीजेपी नहीं जीत सकी है।
कोल्हान प्रमंडल में चौदह सीटें हैं। यहां बीजेपी ने दो सीटें जीती हैं। यह दोनों नई सीटें हैं। विधानसभा चुनाव दो हजार उन्नीस में भाजपा ने यहां एक भी सीट नहीं जीती थी। यहां भाजपा का खाता तक नहीं खुला था। मगर, इस बार दो सीटें जीत कर कोल्हान में अपने प्रदर्शन को कुछ हद तक ठीक कर लिया है। यहां बीजेपी ने एक भी पुरानी सीट नहीं गंवाई। दक्षिणी छोटा नागपुर में तीन जिले हैं। यहां कुल पंद्रह सीटें हैं। यहां बीजेपी ने इस चुनाव में दो सीटें जीती हैं। यह दोनों सीटें पुरानी हैं। इस बार इस प्रमंडल में बीजेपी ने कोई नई सीट नहीं जीती है। तीन पुरानी सीटें बीजेपी ने हार गई है। इस तरह, दक्षिणी छोटा नागपुर में बीजेपी इस बार तीन सीटों के घाटे में है। साल दो हजार उन्नीस के चुनाव में बीजेपी ने यहां से पांच सीटें जीती थीं। पलामू प्रमंडल नौ सीटों का है। यहां इस चुनाव में बीजेपी ने जो चार सीटें जीती हैं उनमें दो सीटें नई हैं। यहां बीजेपी ने चार सीटें जीती हैं। इस बार यहां से पार्टी ने दो नई सीटें जीती हैं। जबकि, तीन पुरानी सीटें वह हार गई है।
बीजेपी की हार के कारण
अब हम आपको बताएंगे कि बीजेपी के हार क्या कारण था। क्यों इंडिया गठबंधन से मतदाता इतने खुश थे कि भर भर कर वोट दिए। इसमें मइयां सम्मान योजना का बडा योगदान है। मइयां सम्मान योजना ने खेल पलट दिया। इसके तहत, इंडिया गठबंधन सरकार महिलाओं को एक हजार रुपये प्रति माह दे रही थी। भाजपा ने वादा किया कि वह सरकार बनने पर इक्कीस सौ रुपये देगी। इसके बाद हेमंत सोरेन ने इस रकम को बढा कर पचीस सौ रुपये कर दिए। इससे वोटर इंडिया गठबंधन के पक्ष में चला गया।
फ्री बिजली जैसी योजनाओं का कमाल
इंडिया गठबंधन के पक्ष में माहौल बनाने में फ्री बिजली योजना का भी रोल अहम रहा। इंडिया गठबंधन की सरकार ने दो सौ यूनिट तक बिजली फ्री कर दी। जब बिजली विभाग ने यह कहा कि जिनका बिजली का बिल बकाया है उन्हें यह लाभ नहीं मिलेगा। इस पर सरकार ने सारा बकाया खुद अदा करने का एलान कर दिया। यही नहीं, बिजली विभाग को यह रकम मिल गई और उसने बकाएदारों का बिजली का बकाया खत्म कर सबको इस योजना का लाभ देना शुरू कर दिया। इससे जनता खुश हो गई। अभी झारखंड में पैंतालीस लाख सतत्तर हजार छह सौ सोलह लोगों को फ्री बिजली मिल रही है। सरकार ने एक लाख सत्तर हजार किसानों का लोन माफ कर दिया। झारखंड में ओल्ड पेंशन स्कीम लागू होने से एक लाख सोलह हजार कर्मचारियों को फायदा हुआ।
हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी से फायदा
केंद्र सरकार ने जब सीएम रहते हुए हेमंत सोरेन को गिरफ्तार कर लिया तो जनता को लगा कि भाजपा एक आदिवासी सीएम को बर्दाश्त नहीं कर पा रही है। इस वजह से आदिवासी एकजुट हो गए। हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी आदिवासी अस्मिता का सवाल बन गई। वोटरों के बीच हेमंत सोरेन की छवि भी मजबूत हो गई। जेएमएम लोगों को यह समझाने में कामयाब हो गई कि भाजपा इस राज्य को लूटने के लिए गैर आदिवासी सीएम चाहती है और इसीलिए हेमंत सोरेन की सरकार को पहले दिन से ही खत्म करने की साजिश कर रही है।
सरकार ने पूरी की आदिवासियों की हर मांग
हेमंत सरकार में आदिवासियों की हर मांग पूरी की गई। नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज का विरोध शुरू हुआ तो सरकार ने इसे बंद करा दिया। सरना धर्म को जनसंख्या में शामिल करने का प्रस्ताव पास कर केंद्र को भेज दिया। इससे आदिवासियों को लगा कि वह उनकी सरकार है। उनके लिए काम करती है। जबकि, भाजपा सरकार में खूंटी समेत कई इलाकों में आदिवासियों की जमीन छीनी गई। इसके खिलाफ आंदोलन हुए थे। तत्कालीन सरकार ने इस आंदोलन को डंडे के जोर पर कुचल दिया था।
उल्टा पडा दांव, भडक गए आदिवासी
भाजपा के बाहर से आने वाले नेता अपने भाषणों में आदिवासियों को भडकाने के लिए उल्टे सीधे बयान देने लगे थे। कहा गया कि घुसपैठ के साथ लव जिहाद जोड दिया गया। यह आदिवासियों को खराब लगा। इसका विरोध मांडर की विधायक डाक्टर शिल्पी नेहा तिर्की ने भी किया था। उन्होंने कहा था कि भाजपा आदिवासी की बेटी के बारे में अपशब्द कह रही है। लेकिन, भाजपा इससे भी नहीं संभली। नतीजा यह हुआ कि आदिवासियों को लगा कि भाजपा उनकी बेटियों के बारे में अफवाह फैला रही है।
स्टार बन कर उभरीं कल्पना, मोदी-योगी नाकाम
प्रचार के मामले में भी भाजपा फेल हो गई। कल्पना सोरेन स्टार प्रचारक के रूप में उभरीं। उनकी आवाज में तेज नजर आया। कल्पना को सुनने के लिए लोगों की भीड उमड रही थी। वह जनता को नए झारखंड के विजन से अवगत करा रही थीं। हेमंत और कल्पना ने 100 से अधिक सभाएं कीं। वह जनता को बता रही थीं कि किस तरह बेहतर सरकार देंगी। यह सरकार जनता की सरकार होगी। इसके उलट, पीएम नरेंद्र मोदी और अमित शाह अपनी पुराने जमाने वाली घिसी पिटी कैसेट ही चलाते रहे। वह जनता की नब्ज को पकड ही नहीं पाए। वह नहीं समझ पाए कि अब जनता बंटोगे तो कटोगे। बांग्लादेश आदि के मुद्दे की गहराई को समझ गई है।
फेल हो गई चंपई
कोल्हान में बीजेपी आस लगाए बैठी थी कि उसे इस बार चौदह में से आठ-नौ सीटें मिल जाएंगी। वह यह समझ रही थी कि चंपई सोरेन कोल्हान टाइगर हैं। पूरा कोल्हान उनके ही कब्जे में है। वह चंपई सोरेन की जमीनी हकीकत भांपने में नाकाम रही। वह नहीं समझ पाई कि चंपई सोरेन को कोल्हान टाइगर उनके वर्तमान राजनीतिक हैसियत को देख कर नहीं बल्कि, झारखंड आंदोलन में उनकी महती भूमिका को लेकर कहा जाता है। बाहरी आयातित नेताओं की वजह से भाजपा झारखंड के स्थानीय हालात को नहीं समझ पाई। इसके चलते उसे झारखंड में नाकामी का मुंह देखना पडा।