भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी के खिलाफ भी दल-बदल का मामला चला था। झारखंड विधानसभा न्यायाधिकरण ने इस मामले में अगस्त साल 2022 में फैसला सुरक्षित रख लिया था। फैसला सुरक्षित हुए पूरे दो साल होने को हैं मगर, अब तक इस मामले में कोई निर्णय नहीं आया है। मांडू के विधायक जेपी पटेल और बोरियो के विधायक लोबिन हेंब्रम की विधायकी समाप्त होने के बाद अब यह सवाल उठने लगे हैं कि दल-बदल प्रकरण में आखिर बाबू लाल मरांडी केस में फैसला कब तक आएगा। राजनीतिक हलके में अब यह सवाल तैरने लगा है। जनता भी इस सवाल का जवाब ढूंढ रही है।
सहानुभूति की लहर या प्रदीप यादव क्या है कारण
बाबूलाल मरांडी पर चले दल-बदल के केस में अब तक फैसला नहीं आने की वजह के बारे में लोग मंथन कर रहे हैं। लोग इस बात का कारण खोजने में लगे हैं कि आखिर विधानसभा अध्यक्ष ने जेपी पटेल और लोबिन हेंब्रम पर फास्ट ट्रैक कोर्ट की तरह दो दिन सुनवाई कर फैसला सुना दिया। मगर, बाबूलाल मरांडी पर दो साल में फैसला बाहर नहीं आ पाया। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि सरकार यह समझ रही है कि अगर बाबूलाल मरांडी की सदस्यता खत्म होती है तो भाजपा इसका फायदा विधानसभा चुनाव में उठा सकती है। भाजपा यह प्रचारित कर सकती है कि एक आदिवासी कद्दावर नेता का विरोध हुआ है और उसे विधानसभा से बाहर कर दिया गया है। यही नहीं, एक और पेच है कि अगर दल-बदल कानून के तहत बाबूलाल की सदस्यता जाती है तो विधानसभा अध्यक्ष को प्रदीप यादव की भी विधायकी समाप्त करनी पड़ सकती है। क्योंकि, उन पर भी इसी मामले में केस चल रहा है। उन पर दूसरा फैसला आने पर भाजपा नाइंसाफी का आरोप लगाएगी। इसलिए कहा जा रहा है कि विधानसभा का कार्यकाल खत्म होने से कुछ दिन पहले इन मामलों में फैसला आ सकता है।
जेवीएम का भाजपा में विलय के बाद हुआ था केस
साल 2019 के विधानसभा चुनाव में झारखंड विकास मोर्चा (प्रजातांत्रिक) ने तीन सीटें हासिल की थीं। इनमें झाविमो सुप्रीमो बाबूलाल मरांडी ने धनवार, प्रदीप यादव ने पोड़ैयाहाट और मांडर से बंधू तिर्की ने जीत दर्ज की थी। इसके बाद, राजनीतिक हालात बदले और बाबूलाल मरांडी ने 11 फरवरी साल 2020 को अपनी पार्टी जेवीएम का भाजपा में विलय का एलान कर दिया। यहीं से विवाद शुरू हो गया। जेवीएम के दो विधायकों प्रदीप यादव और बंधू तिर्की ने इसका विरोध किया। बाद में यह दोनों विधायक कांग्रेस में शामिल हो गए। बाबूलाल मरांडी के खिलाफ दल-बदल मामले में केस किया गया और कहा गया कि पार्टी में तीन विधायक थे और बाबूलाल मरांडी दल-बदल कानून के अनुसार अकेले भाजपा में जाने का फैसला कैसे ले सकते हैं। इसी को लेकर उनके खिलाफ झारखंड विधानसभा के न्यायाधिकरण में दल-बदल का केस चला। हालांकि, इस प्रकरण में विधानसभा अध्यक्ष रवींद्र नाथ महतो ने फैसला सुरक्षित रख लिया है।
बचाव में बाबूलाल ने सुनाई थी प्रदीप व बंधू के निष्कासन की बात
बाबूलाल मरांडी पर जब झारखंड न्यायाधिकरण में केस पर सुनवाई हुई तो उनसे इस प्रकरण में जवाब मांगा गया। इस पर बाबूलाल मरांडी ने जवाब दिया कि जेवीएम का भाजपा में विलय से पहले विधायक प्रदीप यादव और बंधू तिर्की को पार्टी ने निष्कासित कर दिया था। इस तरह, पार्टी में बाबूलाल मरांडी ही अकेले विधायक बचे थे। इसलिए, उन पर दल-बदल का कानून लागू नहीं होता। जबकि, प्रदीप यादव व बंधू तिर्की का कहना था कि ऐसा नहीं है। उन्हें निष्कासित करने की बात सही नहीं है। इसी वजह से बाबूलाल मरांडी का मामला पेचीदा हो गया।
चार लोगों ने बाबूलाल पर किया था केस
झारखंड विधानसभा न्यायाधिकरण में चार लोगों ने बाबूलाल मरांडी पर केस किया था। इस प्रकरण में राजकुमार यादव, भूषण तिर्की, दीपिका पांडे सिंह और प्रदीप यादव ने केस दर्ज कराया था। इस मामले में विधानसभा अध्यक्ष ने इन सभी मामले की सुनवाई की है। इन सभी मामलों में सुनवाई के बाद ही केस में निर्णय सुरक्षित रखा गया है।
पोड़ैयाहाट के विधायक प्रदीप यादव पर भी निर्णय नहीं
पोड़ैयाहाट के विधायक प्रदीप यादव जेवीएम के टिकट पर चुनाव लड़ कर विधानसभा पहुंचे थे। बाद में जब जेवीएम का भाजपा में विलय हुआ तो प्रदीप यादव व मांडर से जेवीएम के टिकट पर चुनाव लड़ने वाले बंधु तिर्की ने भाजपा में जाने से इंकार कर दिया। बाद में दोनों विधायक कांग्रेस में शामिल हो गए। इसके बाद भाजपा नेताओं ने विधानसभा अध्यक्ष से प्रदीप यादव और बंधू तिर्की के खिलाफ दल-बदल मामले की शिकायत की थी। बाद में बंधु तिर्की ने विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया था। प्रदीप यादव का मामला विधानसभा न्यायाधिकरण में लंबित है और इस पर फैसला आना बाकी है