जमशेदपुर: भारत आदिवासी पार्टी ने टाटा स्टील के खिलाफ बगावत का बिगुल फूंक दिया है। भारत आदिवासी पार्टी का कहना है कि टाटा स्टील को राज्य सरकार जमीन की लीज का नवीनीकरण और विस्तारीकरण नहीं करे। यह लीज इसी साल 31 दिसंबर साल 2024 को खत्म हो रहा है।
राज्य सरकार ने टाटा स्टील को जो जमीन दी थी, उसकी लीज साल 1995 में खत्म हो गई थी। इसके बाद साल 2005 में टाटा स्टील को तीस साल के लिए जमीन की लीज दी गई। यह लीज 1995 से लागू हुई। भारत आदिवासी पार्टी के महासचिव कृष्णा हांसदा का कहना है कि यह लीज इस साल 31 दिसंबर साल 2024 को खत्म हो रही है। अब टाटा स्टील इस लीज का विस्तार और नवीनीकरण कराना चाहेगी। उनका कहना है कि सरकार इस बार टाटा स्टील को लीज का नवीनीकरण नहीं करे। लीज का विस्तारीकरण नहीं किया जाए। कृष्णा हांसदा का कहना है कि टाटा स्टील प्लांट आदिवासी जमीन पर बना था। सरकार ने आदिवासियों की जमीन टाटा स्टील को लीज पर दी थी। मगर, आदिवासियों को इससे कोई लाभ नहीं मिला है। उनका कहना है कि जमशेदपुर में बिष्टुपुर, साकची, कदमा, सिदगोडा, बारीडीह आदि इलाके में बाजार में दुकान मिलनी चाहिए थी। मगर, टाटा स्टील ने आदिवासियों के लिए कुछ नहीं किया है।
बदली जा रही डेमोग्राफी
भारत आदिवासी पार्टी का कहना है कि टाटा स्टील की वजह से जमशेदपुर की डेमोग्राफी बदल गई है। पहले यहां सत्तर प्रतिशत आदिवासी थे। अब आदिवासियों की संख्या नाममात्र की रह गई है। उनका कहना है कि पिछली बार टाटा स्टील लीज नवीनीकरण कराने में सफल हो गई थी। मगर, इस बार वह ऐसा नहीं करने देगी। पार्टी के महासचिव कृष्णा हांसदा का कहना है कि कंपनी यहां एक सौ पंद्रह साल से है। यह इलाका पांचवीं अनुसूची में है। इसके बाद भी कंपनी संविधान और कानून का उल्लंघन कर रही है। बाहरी गैर आदिवासी पूंजीपतियों को यहां लाकर बसाने का काम कर रही है। टाटा स्टील के अधिकारी बाहरी लोगों को यहां की जमीन रेवड़ी की तरह बांट रहे हैं। उन्होंने सवाल किया कि टाटा स्टील को यह जमीन लीज पर दी गई है। वह खुद को इस जमीन का मालिक कैसे समझती है।
कोर्ट जाएगी पार्टी
भारत आदिवासी पार्टी के महासचिव कृष्णा हांसदा का कहना है कि अगर सरकार टाटा स्टील को दोबारा लीज देगी तो इसका विरोध होगा। पार्टी कोर्ट जाएगी। उन्होंने कहा कि यहां बत्तीस मौजा की जमीन उनके पुरखों ने टाटा स्टील को लोहा बनाने के लिए दी थी। जमीन का कारोबार करने के लिए नहीं। अब टाटा स्टील पूंजीपतियों को यह जमीन रेवडी की तरह बांट रही है। किसी को व्यवसायिक कांप्लेक्स बनाने के लिए जमीन दी जा रही है तो किसी को होटल बनाने के लिए। उन्होंने कहा कि उन्हें भी टाटा स्टील जमीन दे। वह भी पेट्रोल पंप खोलेंगे। उन्होंने कहा कि उन्हें टाटा स्टील जमीन नहीं देगी।
लाठी के बल पर कब्जा की थी जमीन
भारत आदिवासी पार्टी के जिलाध्यक्ष मदन मोहन सोरेन ने कहा कि 32 मौजा के लोगों को विस्थापित कर यह जमीन टाटा स्टील को दी गई थी। उन्होंने कहा कि कंपनी ने यहां के लोगों को मारपीट कर भगाया और जमीन पर कब्जा कर लिया था। उनका कहना है कि आदिवासियों की जमीन वापस कर दिया जाए। उन्होंने कहा कि पिछली बार लीज नवीनीकरण असंवैधानिक तरीके से किया था। डिमना बांध के विस्थापितों को कुछ नहीं मिला। कंपनी उनकी मांग नहीं मान रही है। इन विस्थापितों को कुछ नहीं मिला है। यह लोग लगातार आंदोलन कर रहे हैं। उनका कहना है कि जो जमीन खाली है। जहां टाटा स्टील कुछ नहीं कर रही है। उसे बाहरी लोगों ने कब्जा कर लिया है। टाटा स्टील यह जमीन वापस कर दो। उन्होंने सवाल उठाया कि सभी समाज का यहां स्कूल, सामुदायिक भवन और क्लब है। मगर, आदिवासी समुदायक को क्लब या स्कूल के लिए जमीन नहीं दी गई है।