खूंटी में हार के बाद सेफ सीट की तलाश में अर्जुन मुंडा, जानिए अब किस सीट से चुनाव लड़ेंगे मुंडा
रांची : 27 साल की उम्र में विधायक बन गए. महज 36 साल की उम्र में झारखंड के मुख्यमंत्री बन गए. प्रदेश में भाजपा के सबसे बड़े आदिवासी चेहरे के रूप में अर्जुन मुंडा की पहचान पूरे देश में हुई. लेकिन आज एक अदद सीट के लिए उन्हें पसीना बहाना पड़ रहा है. एक हार ने ना सिर्फ उनका बल्कि झारखंड में भाजपा के सभी आदिवासी नेताओं के आत्मविश्वास को कमजोर कर दिया है. हालांकि, झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री सह भाजपा के दिग्गज नेता अर्जुन मुंडा अब झारखंड प्रदेश की राजनीति में सक्रिय हो गए हैं। वह चुनाव लड़ कर अब विधानसभा जाना चाहते हैं। इसके लिए उन्हें एक ऐसी सेफ सीट की तलाश है जहां से वह चुनाव जीत कर विधानसभा पहुंच सकें। इस सीट की तलाश शुरू हो चुकी है। इसके लिए लगातार मंथन जारी है। उनके कई सिपहसालार भी सीट की खोज और वहां के जातिय समीकरण के गुणा-गणित में में लगे हुए हैं। आइए जानते हैं कि भाजपा का यह दिग्गज नेता किस सीट से चुनाव लड़ने जा रहा है।
खरसावां से नहीं लड़ना चाहते चुनाव
खरसावां सीट अर्जुन मुंडा की परंपरागत सीट रही है। साल 2014 में जब नरेंद्र मोदी और खुद अर्जुन मुंडा की राजनीति उरूज पर थी, तब खरसावां ने उन्हें दगा दे दिया। यह वह दौर था जब अर्जुन मुंडा ने हैलीकॉप्टर से पूरे प्रदेश की एक-एक सीट पर जाकर मेहनत किया था. उस मेहनत का नजीता भी निकला. 2014 में भाजपा 72 सीटों पर चुनाव लड़ी थी और उसे अप्रत्याशित रूप से 37 सीटें मिली थी. झारखंड में अब तक भाजपा का अकेले अपने दम पर सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन था. लेकिन, अर्जुन मुंडा खरसांवा से अपनी परंपरागत सीट से चुनाव हार गये. इस हार के बाद भाजपा ने पहली बार गैर आदिवासी मुख्यमंत्री का प्रयोग किया और रघुवर दास को झारखंड का मुख्यमंत्री बनाया. इधर, अर्जुन मुंडा ने लोकसभा का रुख कर लिया. खूंटी लोकसभा सीट से चुनाव लड़ कर लोकसभा में पहुंचे थे. खरसावां सीट से एक बार हारने के बाद अब अर्जुन मुंडा दोबारा खरसावां से लड़ने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे हैं। यहां झामुमो का संगठन पहले की तुलना में काफी मजबूत हो गया है। उनके राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी पूर्व मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन का भी खरासावां में खासा प्रभाव है। इसलिए, अर्जुन मुंडा ने इस सीट से दोबारा चुनाव नहीं लड़ने का फैसला किया है। हालांकि, खरसावां के कई भाजपा नेता उन्हें इसी सीट से अगला विधानसभा चुनाव लड़ने की सलाह दे रहे हैं। उन्हें भरोसा दिलाया जा रहा है कि इस बार उनके विरोधी साल 2014 वाली कहानी नहीं दोहरा पाएंगे। मगर, कहावत है कि दूध का जला छाछ भी फूंक कर पीता है। अर्जुन मुंडा इस बार रिस्क नहीं लेना चाहते। इसकी एक खास वजह यह भी है कि खरसावां विधानसभा क्षेत्र खूंटी लोकसभा सीट के तहत आता है। इस बार हुए लोकसभा चुनाव में खूंटी से अर्जुन मुंडा की करारी हार हुई है। यही नहीं, वह इस विधानसभा क्षेत्र में भी वोटों की गिनती में पीछे थे। खरसावां से कांग्रेस के कालीचरण मुंडा को 89 हजार 910 वोट मिले थे जबकि, अर्जुन मुंडा 74 हजार 960 मतों पर ही सिमट गई थी।
खरसावां से कब कब जीते अर्जुन
– साल 1995 में झामुमो के टिकट पर जीते।
– साल 2000 में भाजपा के टिकट पर जीते ।
– साल 2005 में भाजपा के टिकट पर जीते ।
– साल 2010 में भाजपा के टिकट पर जीते।
– साल 2014 में झामुमो के दशरथ गागराई से हार गए।
पोटका में बढ़ी हैं अर्जुन मुंडा की गतिविधि
चर्चा है कि अर्जुन मुंडा पोटका विधानसभा से चुनाव लड़ सकते हैं। पोटका का राजनीतिक माहौल उनके पक्ष में है। बागबेड़ा का इलाका पोटका विधानसभा क्षेत्र में ही आता है। बागबेड़ा भाजपा का गढ़ माना जाता है क्योंकि, यह शहरी इलाका है। अर्जुन मुंडा को पोटका के ग्रामीण इलाके में आदिवासी वोट हासिल करने के लिए मशक्कत करनी पड़ेगी। पोटका में भाजपा का संगठन भी मजबूत हैं। मगर, यहां उनके सामने पूर्व विधायक मेनका सरदार हैं। मेनका सरदार पोटका से कई बार विधायक रह चुकी हैं। मेनका ने यहां से साल 2000, साल 2009, साल 2014 के चुनावों में मैदान मारा है। पिछले साल 2019 के विधानसभा चुनाव में वह झामुमो के संजीव सरदार से परास्त हो गई थीं। मगर, इस बार वह भी जीत की उम्मीद लगाए बैठी हैं। उन्हें भनक लग चुकी है कि पोटका से अर्जुन मुंडा के विधानसभा चुनाव लड़ने की संभावना बन सकती है। इसके बाद मेनका सरदार हरकत में आ गई हैं। वह लगातार भाजपा के उच्च पदाधिकारियों के संपर्क में हैं कि यहां से उन्हें ही टिकट मिले। वैसे, पोटका में मेनका सरदार की पैठ देखते हुए माना जा रहा है कि शीर्ष नेतृत्व उन्हीं के हक में फैसला कर सकता है। मगर, अर्जुन मुंडा के सीटों की तलाश के मंथन में पोटका विधानसभा भी शामिल है।
भाजपा के पास घाटशिला में नहीं है जिताऊ उम्मीदवार
भाजपा के पास घाटशिला में अभी कोई जिताऊ उम्मीदवार नहीं है। इस सीट से कांग्रेस और सीपीआई के उम्मीदवार जीतते रहे हैं। मगर, साल 2009 के चुनाव में झामुमो के रामदास सोरेन के हाथ में चली गई। मगर, साल 2014 के चुनाव में अर्जुन मुंडा के करीबी माने जाने वाले लक्ष्मण टुडू ने यहां से जीत का परचम बुलंद किया था। बताते हैं कि साल 2014 के चुनाव में प्रदेश में भाजपा का चेहरा अर्जुन मुंडा ही थे। बाद में जब वह खरसावां से चुनाव हार गए तो उन्हें हथियार डालना पड़ा। साल 2019 के चुनाव में पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास की चली और लक्ष्मण टुडू का टिकट काट दिया गया। यहां से भाजपा ने एक नए चेहरे लखन चंद्र मार्डी को मैदान में उतारा था जो कामयाब नहीं हो सके। इसलिए, भाजपा की सियासत के एतबार से घाटशिला की सीट खाली चल रही है। यहां से वह साल 2014 में लक्ष्मण टुडू को चुनाव जिता भी चुके हैं। पिछले साल 2019 के चुनाव में लखन चंद्र मार्डी जैसे नए चेहरे को 56 हजार 807 वोट मिले थे। इसलिए, माना जा रहा है कि अर्जुन मुंडा अगर यहां से लड़ेंगे तो चुनाव जीत सकते हैं। यही वजह है कि अर्जुन मुंडा इस सीट से भी चुनाव लड़ने को लेकर दिमागी कसरत कर रहे हैं।
खूंटी लोकसभा क्षेत्र में आने वाली विधानसभा सीटों पर नजर
अर्जुन मुंडा ने खूंटी लोकसभा क्षेत्र में आने वाली सीटों पर भी नजर दौड़ाई है। उन्हें सलाह दी गई है कि वह खूंटी लोकसभा क्षेत्र में आने वाली किसी सीट से चुनाव लड़ें। ऐसी सीट तलाश कर लें जहां भाजपा का संगठन मजबूत हो। मगर, अर्जुन मुंडा खूंटी की किसी सीट से चुनाव नहीं लड़ना चाहते। क्योंकि, इस लोकसभा चुनाव में उन्हें खूंटी लोकसभा क्षेत्र में आने वाली खरसावां, तमाड़, तोरपा, खूंटी, सिमडेगा और कोलेबीरा सभी सीट पर कांग्रेस से बेहद कम मत मिले हैं। राजनीति के जानकारों का कहना है कि पूरे खूंटी लोकसभा क्षेत्र में अर्जुन मुंडा के खिलाफ एक लहर थी। इसलिए, अर्जुन मुंडा यहां की किसी भी विधानसभा सीट से चुनाव नहीं लड़ने का मन बना चुके हैं।
खिजरी विधानसभा सीट से लड़ सकते हैं चुनाव
फिफ्थ पिलर को जानकारी मिली है कि अर्जुन मुंडा खिजरी विधानसभा सीट से चुनाव लड़ने को लेकर मंथन कर रहे हैं। उन्होंने अपने सभी सिपाहसालारों से इस बात से अवगत करा दिया है और वह खिजरी में सक्रिय भी हो गए हैं। इस सीट की यह प्रकृति रही है कि एक बार यह सीट भाजपा के खाते में गई है तो दूसरी बार कांग्रेस के खाते में। अभी खिजरी से कांग्रेस के राजेश कच्छप विधायक हैं। उन्होंने भाजपा के रामकुमार पाहन को हराया था। लेकिन, साल 2014 के चुनाव में राजेश पाहन भी यहां से चुनाव जीत चुके हैं। इस सीट पर मतदाता भाजपा और कांग्रेस दोनों दलों के उम्मीदवारों को मौका देता रहा है। इसलिए, मतदाता इस बार भाजपा को मौका दे सकते हैं। इसके अलावा, खिजरी विधानसभा सीट में रांची लोकसभा क्षेत्र में है। यहां भाजपा का मजबूत संगठन है। रांची लोकसभा सीट से भाजपा के संजय सेठ लगातार जीत रहे हैं। पिछले विधानसभा चुनाव में राजेश कच्छप बेहद कम अंतर 5 हजार 469 वोटों से चुनाव जीते थे। जबकि, साल 2014 में यहां से भाजपा 29 हजार 669 मतों से जीती थी।