झारखंड में बिना सीएम चेहरे के चुनाव लड़ेगी भाजपा
रांची : झारखंड में भाजपा बिना सीएम के चेहरे के चुनाव लड़ने जा रही है। बताया जा रहा है कि केंद्रीय कार्यसमिति ने भाजपा के वरिष्ठ नेताओं के इस फैसले पर अपनी मोहर लगा दी है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने भी अपने पिछले रांची दौरे के दौरान इसी बात के संकेत दिए हैं। यह तय किया गया है कि विधानसभा चुनाव में प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी, पूर्व केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा या किसी अन्य बड़े नेता पर कोई दांव नहीं लगाया जाएगा। ऐसा कर भाजपा एक तो चुनाव पर गुटबाजी का असर रोकना चाहती है। दूसरे, वह नहीं चाहती कि किसी खास नेता के प्रति जनता की नापसंद का प्रभाव राजनीतिक माहौल पर पड़े।
भाजपा के पास कोई करिश्माई नेता नहीं
अभी भाजपा के पास कोई ऐसा करिश्माई नेता नहीं है, जिसको सीएम के चेहरे के तौर पर आगे कर विधानसभा चुनाव लड़ा जा सके। पार्टी ने बाबूलाल मरांडी को प्रदेश अध्यक्ष बनाया है। मगर, पार्टी उन्हें भी सीएम के चेहरे के तौर पर आगे नहीं करना चाहती। हालांकि, बाबूलाल मरांडी झारखंड के पहले मुख्यमंत्री रह चुके हैं। तब भाजपा ने ही उन्हें मुख्यमंत्री बनाया था। मगर, वह सफल नहीं हो सके थे। डोमीसाइल विवाद के बाद उन्हें हटा दिया गया था। बाद में उनकी जगह अर्जुन मुंडा ने प्रदेश की कमान संभाली थी। भाजपा के वरिष्ठ नेता यह जान रहे हैं कि अगर बाबूलाल मरांडी को आगे किया तो उनका बिहारी वोट बैंक खफा हो सकता है। अर्जुन मुंडा भी खूंटी का चुनाव हारने के बाद प्रदेश की सियासत में अभी उतने कारगर नजर नहीं आ रहे हैं।
भाजपा अप्लाई करेगी राजस्थान का फार्मूला
भाजपा ने राजस्थान में बिना सीएम का चेहरा आगे किए विधानसभा चुनाव लड़ा था। यहां पार्टी को खासी सफलता मिली थी। भाजपा ने 115 सीटें जीत ली थीं। जबकि, कांग्रेस 69 सीटों पर सिमट गई थी। भाजपा ने इस तरह राजस्थान की सत्ता कांग्रेस से छीन ली थी। यही, छत्तीसगढ़ में भी हुआ था। छत्तीसगढ़ में भी पार्टी ने बिना किसी को सीएम पद के लिए आगे किए चुनाव लड़ा था और सफलता हासिल की थी। अब भाजपा की टॉप लीडरशिप यही फार्मूला झारखंड में भी अपनाना चाहती है। पार्टी ने जो रणनीति बनाई है उसके अनुसार विधानसभा चुनाव में सफलता हासिल करने के बाद किसी भी विधायक को उठा कर प्रदेश का सीएम बना दिया जाएगा।
पिछले विधानसभा चुनाव में रघुवर दास थे चेहरा
पार्टी ने पिछला विधानसभा चुनाव रघुवर दास को आगे कर लड़ा था। मगर, रघुवर दास को जनता ने नकार दिया था। रघुवर दास के नेतृत्व में हुए चुनाव में भाजपा को मुंह की खानी पड़ी थी। इसी के बाद प्रदेश में झामुमो की सरकार बनी थी। कहा जा राहा है कि रघुवर दास को किनारे करने के लिए केंद्र ने उन्हें ओडिशा का राज्यपाल बना कर भेजा था। लेकिन, एक तथ्य यह भी है कि पार्टी ने उन्हें एक खास मकसद के तहत ओडिशा भेजा गया था। ओडिशा में भाजपा की सरकार बनने के बाद यह मकसद लोगों की समझ में आ भी रहा है।
प्रदेश की सियासत में लौटना चाहते हैं रघुवर
अब कहा जा रहा है कि रघुवर दास झारखंड की राजनीति में लौटने का मन बना रहे हैं। सूत्रों का कहना है कि झारखंड में विधानसभा चुनाव का एलान होते ही रघुवर दास ओडिशा में राज्यपाल के पद से इस्तीफा देकर वापस आ जाएंगे। लेकिन, अगर भाजपा का शीर्ष नेतृत्व चाहेगा तभी वह ऐसा कर सकेंगे। वैसे, सूत्र बताते हैं कि भाजपा का शीर्ष नेतृत्व इसके लिए अभी तैयार नहीं है। मगर, रघुवर दास खुद को झारखंड की सियासत में वापस लाने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगाए हुए हैं। इसके लिए वह शीर्ष नेतृत्व को राजी करने की कवायद में जुटे हैं।
कभी बहुमत का आंकड़ा नहीं जुटा सके थे अर्जुन मुंडा
भाजपा ने पहले कई बार अर्जुन मुंडा के नेतृत्व में चुनाव लड़ा है। मगर, भाजपा कभी विधानसभा चुनाव में बहुमत का आंकड़ा नहीं जुटा पाए थे। पहले जब भी भाजपा की सरकार बनी थी जोड़तोड़ से ही ऐसा हो पाया था। यही वजह थी कि साल 2014 में बनी रघुवर सरकार से पहले कोई भी सरकार ऐसी नहीं थी जिसने पांच साल का अपना कार्यकाल पूरा किया हो।