मुंबई : महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव की तारीखें नजदीक आने के साथ ही सियासी मुकाबला तेज हो गया है. सत्ता के लिए निर्णायक जंग की चौसर बिछ चुकी है और सत्तारूढ़ गठबंधन ‘महायुति’ और विपक्षी ‘महा विकास अघाड़ी’ दोनों ही खेमों में चुनावी जोश चरम पर है. इस बार चुनाव में बगावत भी बड़े पैमाने पर सामने आई है, जिससे कई निर्दलीय उम्मीदवार मैदान में उतरे हैं. इनमें कई ऐसे प्रमुख नेता हैं जिनका अपने क्षेत्रों में खासा राजनीतिक प्रभाव है, जिससे चुनावी मुकाबला एकतरफा नहीं, बल्कि कांटे की टक्कर में तब्दील हो गया है. विपक्ष की अगुवाई कर रही कांग्रेस को विदर्भ क्षेत्र में मजबूत समर्थन की उम्मीद है, जबकि महायुति में शामिल भाजपा को उत्तर महाराष्ट्र में अच्छी बढ़त की संभावना है. 2019 के चुनाव परिणामों के आधार पर इन क्षेत्रों में सियासी गणित का आकलन किया जा रहा है.
महाराष्ट्र में किसका पलड़ा है भारी ?
हालांकि 23 नवंबर को होने वाले चुनाव परिणामों के बाद ही असल तस्वीर साफ हो पाएगी, लेकिन 2019 के नतीजों के विश्लेषण से राज्य के मूड का कुछ अंदाजा लगाया जा सकता है. पिछले चुनाव में विदर्भ में कांग्रेस और उत्तर महाराष्ट्र में भाजपा को बेहतरीन समर्थन मिला था, और इस बार भी वही रुझान कायम रहने की उम्मीद की जा रही है.
उत्तर महाराष्ट्र: भाजपा का गढ़
उत्तर महाराष्ट्र की 35 विधानसभा सीटों में भाजपा का दबदबा साफ नजर आता है. 2019 के चुनाव में यहां से 20 विधायक भाजपा के टिकट पर चुने गए थे. कांग्रेस के पास यहां सिर्फ 5 सीटें थीं, जबकि शिवसेना (यूबीटी) और एनसीपी (शरद पवार गुट) के 4-4 विधायक थे. शिवसेना (शिंदे गुट) के पास यहां 2 सीटें थीं और एनसीपी (अजित पवार गुट) का इस क्षेत्र में कोई विधायक नहीं था. हालांकि इस बार शिवसेना और एनसीपी में विभाजन के बाद समीकरण बदल चुके हैं. एकनाथ शिंदे और अजित पवार के महायुति में शामिल होने से भाजपा को मजबूत सहयोगियों की बढ़त मिली है, लेकिन यह देखना दिलचस्प होगा कि कांग्रेस और महाविकास अघाड़ी इस चुनौती का किस तरह सामना करती है.
विदर्भ: कांग्रेस का गढ़
महाराष्ट्र विधानसभा की 288 सीटों में से 68 सीटें विदर्भ क्षेत्र में हैं, जहां कांग्रेस का प्रभाव स्पष्ट रूप से दिखाई देता है. 2019 के चुनाव में कांग्रेस ने यहां शानदार प्रदर्शन करते हुए 29 सीटें अपने नाम की थीं, जबकि भाजपा को 15 सीटें ही मिल पाई थीं. शिवसेना (यूबीटी) के पास 8 और एनसीपी (शरद पवार गुट) के पास 5 विधायक थे. इस क्षेत्र में अजित पवार गुट का कोई विधायक नहीं था. विदर्भ में कांग्रेस की पकड़ मजबूत है, जो कि महाविकास अघाड़ी को समर्थन का आधार देती है. हालांकि महायुति में शामिल भाजपा और शिंदे गुट इस क्षेत्र में अपनी पकड़ मजबूत करने की कोशिश करेंगे.
पश्चिम महाराष्ट्र: शरद पवार का गढ़
पश्चिम महाराष्ट्र की 70 विधानसभा सीटों में सबसे अधिक प्रभाव एनसीपी (शरद पवार गुट) का माना जाता है. 2019 के चुनाव में यहां एनसीपी (शरद पवार) के 19 विधायक चुने गए थे, जबकि भाजपा के पास 17 सीटें थीं. शिंदे गुट के पास 11 और कांग्रेस के 10 विधायक थे, जबकि शिवसेना (यूबीटी) को 6 सीटें मिली थीं. क्षेत्र में 5 निर्दलीय और एनसीपी (अजित पवार) के 2 विधायक भी थे. यहां मराठा प्रभावी समुदाय होने के कारण शरद पवार का खासा दबदबा है. एनसीपी में विभाजन के बावजूद इस बार भी यहां का जनादेश एनसीपी (शरद पवार) के पक्ष में जा सकता है.
मराठवाड़ा: मराठा आरक्षण आंदोलन का असर
मराठवाड़ा क्षेत्र में इस बार चुनावी मुकाबला अत्यंत रोचक है. कुल 46 सीटों वाले इस क्षेत्र में शिवसेना (यूबीटी) के पास सबसे अधिक 15 विधायक हैं, जबकि कांग्रेस के पास 14 और भाजपा के पास 8 विधायक हैं. शिंदे गुट के पास 4 और एनसीपी (शरद पवार गुट) के पास 3 विधायक हैं. इसके अलावा, यहां 2 निर्दलीय विधायक भी हैं. 2019 के नतीजों में मराठवाड़ा में अजित पवार गुट का कोई विधायक नहीं था. इस बार मराठा आरक्षण आंदोलन के नायक मनोज जरांगे पाटील की वजह से इस क्षेत्र का चुनावी समीकरण भी बदला हुआ है. जरांगे पाटील के समर्थन से कई मराठा समर्थित निर्दलीय उम्मीदवार मैदान में हैं, जिनका ओबीसी और मराठा वोट बैंक पर प्रभाव पड़ सकता है.
जरांगे पाटील का समर्थन मराठा मुस्लिम दलित वोटों को एकजुट करने की कोशिश कर रहा है. ऐसे में महाविकास अघाड़ी को नुकसान पहुंच सकता है, जबकि भाजपा को ओबीसी वोट का फायदा मिलने की संभावना है. जरांगे पाटील के कारण मराठवाड़ा में महायुति और महाविकास अघाड़ी के बीच सीधा मुकाबला देखने को मिल सकता है.
महाराष्ट्र चुनाव में बगावत और निर्दलीयों की बढ़ती संख्या
इस बार महाराष्ट्र चुनाव में निर्दलीय उम्मीदवारों की संख्या में भी इजाफा देखने को मिल रहा है. प्रमुख नेताओं द्वारा बगावत के कारण कई प्रभावी नेता निर्दलीय के तौर पर मैदान में उतरे हैं. इस स्थिति से दोनों प्रमुख गठबंधन—महायुति और महाविकास अघाड़ी—चुनौतीपूर्ण स्थितियों का सामना कर रहे हैं. इस बगावत से जहां दोनों खेमों को नुकसान हो सकता है, वहीं जनता के बीच सियासी धार तेज होती जा रही है.
23 नवंबर को चुनाव परिणाम आने के बाद ही राज्य के सत्ता समीकरण का स्पष्टता से अंदाजा लगाया जा सकेगा, लेकिन तब तक 2019 के नतीजों के आधार पर क्षेत्रवार आंकड़ों से यह आकलन किया जा सकता है कि महाराष्ट्र में इस बार का चुनावी संघर्ष तीव्र और अप्रत्याशित होगा.