रांची: उम्मीदवारों का एलान किए जाने के बाद भाजपा में बगावत के हालात हैं। कई सीटें ऐसी हैं जहां भाजपा के कार्यकर्ताओं ने पांच साल मशक्कत की थी। रात दिन एक कर जनता तक पहुंच बनाई थी। मगर, यहां नेता पुत्र या उनके रिश्तेदारों को टिकट दे दिया गया। तो कहीं आयातित उम्मीदवार ने भाजपा का टिकट उड़ा लिया। इससे विधानसभा चुनाव की जमीन तैयार कर रहे भाजपा नेताओं ने बगावती रुख अख्तियार कर लिया है। इस खबर में हम आपको बताएंगे कि यह बागी नेता भाजपा का कितना नुकसान कर सकते हैं। क्या इस विद्रोही माहौल की बदौतल झारखंड में भाजपा की सरकार बनाने की मुहिम धराशायी हो जाएगी।
जमशेदपुर पूर्व में फंसती नजर आ रही भाजपा
कभी भाजपा का गढ़ मानी जाने वाली जमशेदपुर पूर्व विधानसभा सीट पर बीजेपी फंसती नजर आ रही है। यहां बीजेपी ने कार्यकर्ताओं की मेहतन को दरकिनार करते हुए ओडिशा के राज्यपाल पूर्व सीएम रघुवर दास की बहू पूर्णिमा दास साहू को टिकट दे दिया है। इस सीट पर भाजपा के शिवशंकर सिंह और अमरप्रीत सिंह काले भी टिकट पाने वालों की कतार में थे। शिवशंकर सिंह तो पांच साल से इलाके में मेहनत कर अपनी जीत की जमीन तैयार कर रहे थे। सूत्र बताते हैं कि शिवशंकर सिंह का नाम उम्मीदवारों के पैनल में भी था। मगर, कार्यकर्ताओं की मेहनत को दरकिनार करते हुए टिकट रघुवर दास की बहू को दे दिया गया। इससे जहां परिवारवाद को लेकर भाजपा की छीछालेदर हो रही है तो वहीं शिवशंकर सिंह ने बागी रुख अख्तियार कर लिया है। सूत्र बताते हैं कि शिवशंकर सिंह जमशेदपुर पूर्व विधानसभा सीट से निर्दलीय चुनाव लड़ने के लिए कमर कस चुके हैं। उन्होंने यहां से नामांकन भी खरीद लिया है। शिवशंकर सिंह चुनाव लड़ते हैं तो इस सीट पर भाजपा फंस जाएगी। यहां भाजपा का खेल बिगड सकता है।
हुसैनाबाद में तीन बागियों को झेलेगी बीजेपी
हुसैनाबाद में विनोद सिंह, प्रफुल्ल सिंह और कर्नल संजय सिंह भाजपा की तरफ से टिकट के दावेदारों में थे। इन तीनों नेताओं ने पांच साल तक इलाके की खाक छानी है। इन नेताओं को उम्मीद थी कि पार्टी कार्यकर्ताओं की मेहनत को देखते हुए कैडर के किसी नेता को उम्मीदवार बनाएगी। मगर, कार्यकर्ताओं को तब झटका लगा जब बीजेपी ने एनसीपी छोड़ कर भाजपा ज्वाइन करने वाले विधायक कमलेश सिंह को प्रत्याशी बना दिया। कमलेश सिंह को टिकट मिला तो भाजपा में बगावत हो गई। बगावत का सबसे अधिक असर हुसैनाबाद में देखने को मिल रहा है। यहां पार्टी के कई मंडल अध्यक्षों ने भी विद्रोह कर दिया है। उम्मीदवारों का एलान होने से दो दिन पहले हुसैनाबाद में मंडल अध्यक्षों और कार्यकर्ताओं ने एक विशाल मीटिंग की थी और पार्टी के शीर्ष नेतृत्व को चेतावनी दे दी थी कि अगर यहां से कमलेश सिंह को टिकट दिया गया तो सभी बगावत कर देंगे। मगर, कार्यकर्ताओं की इस चेतावनी का भी असर नहीं पड़ा। कमलेश सिंह को टिकट मिलने के बाद अब यहां भी भाजपा के बागी चुनाव मैदान में उतरने के लिए कमर कस रहे हैं। यहां बागी एकजुट हो रहे हैं। रणनीति बन रही है कि कोई एक उम्मीदवार तय हो और वह चुनाव लड़े। कर्नल संजय सिंह या विनोद सिंह में से कोई एक यहां से चुनाव लड़ सकते हैं। इसके अलावा, आजसू से कुशवाहा शिवपूजन भी प्रत्याशी बनने के कतार में थे। वह भी निर्दलीय चुनाव लडने के लिए कमर कस रहे हैं। कुशवाहा शिवपूजन के चुनाव मैदान में उतरने से भाजपा को काफी नुकसान हो जाएगा। क्योंकि, कुशवाहा शिवपूजन की आजसू के संगठन में काफी पकड़ है। आजसू वोट भी भाजपा से छिटक जाएंगे। ऐसा हुआ तो कमलेश सिंह की राह मुश्किल हो जाएगी। यह सीट भी भाजपा गंवा सकती है।
सरायकेला में गणेश महाली की बगावत से बढ़ी मुश्किल
सरायकेला में पहले से तय था कि भाजपा के कैडर को टिकट नहीं मिलेगा। इस वजह से यहां चुनाव की तैयारी कर रहे गणेश महाली समेत अन्य कार्यकर्ताओं में आक्रोश पनप रहा था। बीजेपी ने यहां से पूर्व सीएम चंपई सोरेन को टिकट थमा दिया है। इसके बाद गणेश महाली ने बगावत का एलान कर दिया है। गणेश महाली ने भाजपा से इस्तीफा दे दिया है। गणेश महाली चंपई सोरेन से खफा हैं। उनका कहना है कि भाजपा में उन्होंने 25 साल तन मन धन से मेहनत की। पांच साल से क्षेत्र में काम कर रहे हैं और जीत की जमीन तैयार की थी। गणेश महाली का कहना है कि उनके साथ धोखा हुआ है। गणेश महाली कहते हैं कि चंपई सोरेन जब भाजपा में शामिल हो गए थे तो सरायकेला सीट छोड़ने को तैयार हो गए थे। भाजपा के शीर्ष नेतृत्व के कहने पर वह खरसावां से तैयारी में जुट गए थे। मगर, जब टिकट बंटने लगा तो उन्होंने दिल्ली जा कर खेल कर दिया। सरायकेला पर खुद काबिज हो गए, खरसावां से अपने चहेते सोनाराम बोदरा को टिकट दिलवा दिया और घाटशिला से अपने बेटे बाबूलाल सोरेन को उम्मीदवार बनवाया। अब गणेश महाली जेएमएम के संपर्क में हैं। सूत्र बताते हैं कि गणेश महाली जल्द ही जेएमएम ज्वाइन करने वाले हैं। जेएमएम गणेश महाली को सरायकेला से उम्मीदवार बनाने जा रही है। बताते हैं कि गणेश महाली की भाजपा के सरायकेला जिले के संगठन में मजबूत पकड़ है। संगठन में अधिकतर लोग गणेश महाली के वफादार हैं। इसलिए, गणेश महाली की बगावत से भाजपा को काफी नुकसान पहुंचेगा। जबकि, झामुमो के जिला संगठन के पदाधिकारियों को सीएम हेमंत सोरेन ने साध लिया है।इसी तरह, भाजपा नेता बास्को बेसरा भी भाजपा से टिकट की चाहत में थे। उन्होंने भी पार्टी के सभी पदों से इस्तीफा दे दिया है। उनका रुख भी बागी है। इस तरह, सरायकेला में भी भाजपा की नैया डगमगा रही है।
खरसावां में भी डांवाडोल स्थिति में पहुंची बीजेपी
खरसावां में भी बीजेपी की स्थिति डांवाडोल हो गई है। यहां से भाजपा के टिकट पर साल 2019 में चुनाव लड़ने वाले जवाहर लाल बानरा के अलावा कद्दावर नेता मंगल सोय भी मेहनत कर रहे थे। इन दोनों को टिकट मिलने की उम्मीद थी। मगर, पूर्व सीएम चंपई सोरेन ने यहां से अपने चहेते सोनाराम बोदरा को भाजपा का टिकट दिलवा दिया है। इससे जवाहर लाल बानरा और मंगल सोय नाराज हैं। बताया जा रहा है कि यहां से भाजपा को इस नाराजगी का खमियाजा भुगतना पड़ सकता है।
पूर्व मंत्री लुइस मरांडी भी हुईं बागी
भाजपा की कद्दावर नेता पूर्व मंत्री लुइस मरांडी भी टिकट बंटवारे से खुश नहीं हैं। वह पार्टी के इस कदम से आहत हैं। लुइस मरांडी का कहना है कि जनसंघ के जमाने से वह पार्टी से जुडी हैं। भाजपा ने लुइस मरांडी का भी टिकट काट दिया है। लुइस मरांडी के बागी रुख को देखते हुए पार्टी के शीर्ष नेताओं ने उनसे फोन पर संपर्क साधा और बरहेट से चुनाव लड़ने का आफर दिया। मगर, लुइस मरांडी ने बरहेट से चुनाव लड़ने से इंकार कर दिया है। सूत्रों की मानें तो लुइस मरांडी ने सीएम हेमंत सोरेन से संपर्क साधा है और वह जल्द ही जेएमएम ज्वाइन करने जा रही हैं। जेएमएम लुइस मरांडी को जामा से लड़ा सकती है। अगर, ऐसा हुआ तो जामा से भाजपा के उम्मीदवार की राह मुश्किल हो जाएगी। क्योंकि, आदिवासी समाज में लुइस मरांडी की गहरी पैठ है। उन्हें धोखा दिए जाने से संथाल इलाके में भाजपा के खिलाफ माहौल बन रहा है। ऐसे में लुइस मरांडी जामा में भाजपा को झटका दे सकती हैं।
पोटका में भी फंसी बीजेपी
भाजपा पोटका में भी फंसती नजर आ रही है। यहां से पार्टी ने पूर्व केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा की पत्नी मीरा मुंडा को टिकट दिया है। इससे क्षेत्र के भाजपा कार्यकर्ता नाराज हो गए हैं। यहां कई बार विधायक रह चुकी भाजपा की हैवीवेट लीडर मेनका सरदार को टिकट मिलने की उम्मीद थी। वह पांच साल से क्षेत्र में दौड रही थीं। इसके अलावा, भाजपा नेता उपेंद्र नाथ सरदार भी टिकट के दावेदार थे। मीरा मुंडा को टिकट मिलने के बाद मेनका सरदार ने पार्टी भाजपा छोड़ दी है। वह बागी हो गई हैं। जाहिर सी बात है कि अब वह भाजपा का नुकसान कर सकती हैं। उपेंद्र नाथ सरदार ने भी मीरा मुंडा को टिकट देने का विरोध किया है। उनका कहना है कि पोटका में बाहरी उम्मीदवार नहीं दिया जाना चाहिए। यहां पोटका का स्थानीय कार्यकर्ता को ही टिकट दिया जाए। पोटका में भाजपाइयों ने धरना प्रदर्शन तक करना शुरू कर दिया है। इससे साफ है कि पोटका में भाजपा भितरघात का शिकार हो सकती है।
जमशेदपुर पश्चिम में भाजपा का नुकसान करेंगे विकास सिंह
जमशेदपुर पश्चिम की सीट जदयू के खाते में गई है। इस वजह से यहां से भाजपा के विकास सिंह बागी हो गए हैं। विकास सिंह ने नामांकन खरीद लिया है। उन्होंने एलान कर दिया है कि चाहे कुछ भी हो जाए वह चुनाव जरूर लड़ेंगे। अगर विकास सिंह चुनाव लड़ते हैं तो यह सीट जदयू नहीं जीत पाएगी। जदयू के सरयू राय की हालत काफी पतली बताई जा रही है। अगर, यहां सीट जदयू के हाथ से निकल गई तो सरकार बनाने के भाजपा के अभियान को तगड़ा झटका लगेगा। विकास सिंह के अलावा कई अन्य भाजपा नेता इस सीट से चुनाव लड़ने के लिए कमर कस रहे थे। बताते हैं कि यह लोग भी बागी रुख अख्तियार कर रहे हैं। यहां से जदयू का उम्मीदवार होने की वजह से भाजपा कार्यकर्ता भी हतोत्साहित हैं। कार्यकर्ताओं का कहना है कि यह सीट जदयू को क्यों दी गई। कार्यकर्ताओं का तर्क है कि जमशेदपुर पश्चिम में जदयू का कोई संगठन नहीं है। भाजपा के कार्यकर्ता खटेंगे और फायदा जदयू को होगा। राजनीतिक जानकारों का कहना है कि इस सीट पर भाजपा कार्यकर्ताओं के ढीले पड़ने से यह सीट कांग्रेस के हाथ में चली जाएगी।
ईचागढ़ में भी हो सकता है नुकसान
ईचागढ़ की सीट भाजपा ने आजसू को दे दी है। इससे यहां से चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे मलखान सिंह नाराज हैं। इससे ईचागढ़ में एनडीए को नुकसान हो सकता है। इसी तरह, घाटशिला से पूर्व सीएम चंपई सोरेन के बेटे बाबूलाल सोरेन को टिकट दिए जाने से कई नेता नाराज हैं। रांची से संदीप वर्मा नाराज चल रहे हैं। वह भी रांची से टिकट चाहते थे। उन्हें उम्मीद थी कि सीपी सिंह की उम्र को देखते हुए पार्टी इस बार उन्हें टिकट नहीं देगी। संदीप वर्मा टिकट के लिए लाबिंग कर रहे थे। मगर, उन्हें कामयाबी नहीं मिली। यही हाल, बड़कागांव का है।