देवघर: झारखंड में देवनगरी देवघर प्रदेश की सांस्कृतिक राजधानी है। देश भर से शिव भक्त यहां मंदिर के दर्शन करने आते हैं। देश भर में देवघर की पहचान देव भूमि के तौर पर है। इसलिए अयोध्या की तरह देवघर विधानसभा चुनाव के नतीजों पर पूरे देश की नजर रहेगी। यहां भाजपा और राजद के बीच कांटे की टक्कर रहती है। पिछले दो चुनाव 2014 और 2019 में यहां से भाजपा ने जीत का परचम लहराया था। उसके पहले 2005 और 2009 में जनता दल यूनाइटेड के कामेश्वर दास और राजद के सुरेश पासवान जीते थे। इस बार कौन जीतेगा इसके कयास अभी से लगाए जा रहे हैं।
2000 के विधानसभा चुनाव में राजद व जदयू में हुई थी टक्कर
साल 2000 के विधानसभा चुनाव में राजद और जदयू में टक्कर हुई थी। राजद के सुरेश पासवान 48 हजार 216 मत पाकर जीते थे। जबकि, जदयू के उम्मीदवार शंकर पासवान को 27 हजार 398 मत मिले थे।
देवघर पर 2014 से भाजपा का कब्जा
देवघर विधानसभा सीट पर साल 2014 से भाजपा का कब्जा है। भाजपा के नारायण दास ने साल 2014 के चुनाव में राजद के सुरेश पासवान को हराया था। नारायण दास को 92022 वोट मिले थे। जबकि सुरेश पासवान को 46870 वोट मिले थे। 2019 में भी भाजपा की जीत का सफर जारी रहा। यहां से भाजपा को 95491 मत मिले थे। बीजेपी के उम्मीदवार नारायण दास ने चुनाव जीता था। राजद के सुरेश पासवान को 92867 वोट मिले थे
लोकसभा चुनाव में भी भाजपा की रही बढ़त
देवघर विधानसभा सीट गोड्डा संसदीय क्षेत्र के तहत आती है। गोड्डा से भाजपा के निशिकांत दुबे और कांग्रेस के प्रदीप यादव ने चुनाव लड़ा था। देवघर विधानसभा क्षेत्र का आंकड़ा देखा जाए तो बीजेपी कांग्रेस से आगे रही। भाजपा के उम्मीदवार निशिकांत दुबे को देवघर विधानसभा क्षेत्र में 1 लाख 53 हजार 449 वोट मिले थे। जबकि, कांग्रेस के प्रदीप यादव को एक लाख 11711 वोट मिले थे। लोकसभा चुनाव में भाजपा की बढ़त की वजह से विधानसभा चुनाव में भी भाजपा आश्वस्त नजर आ रही है कि विधानसभा चुनाव में भी देवघर से उसकी जीत आसान होगी।
नारायण दास और सुरेश पासवान में होगा मुकाबला
राजनीतिक गलियारे में यह चर्चा चल रही है कि भाजपा के वर्तमान विधायक नारायण दास और इंडिया गठबंधन में शामिल राजद के सुरेश पासवान को पार्टी का टिकट मिलेगा। जदयू इस बार एनडीए में शामिल है। जदयू के उम्मीदवार भी एड़ी चोटी का जोर लगाए हुए हैं कि यह सीट जदयू को मिल जाए। लेकिन, इसकी संभावना कम है। क्योंकि, भाजपा के सिटिंग विधायक नारायण दास यहां से हैं। एक और आकलन लगाया जा रहा है कि नारायण दास की निशिकांत दुबे से थोड़ी नाराजगी है। इसलिए निशिकांत दुबे इस बार देवघर से किसी अपने करीबी को टिकट दिलाएंगे। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि ऐसा कम ही होगा क्योंकि भाजपा सिटिंग विधायक का टिकट काटने की हिम्मत नहीं जुटा पाएगी।
देवघर में पिछड़ी जाति के वोट निर्णायक
देवघर विधानसभा क्षेत्र में पिछड़ी जाति की आबादी सबसे अधिक है। यहां पिछड़ी जाति की आबादी लगभग 25 प्रतिशत है। इसके अलावा, ब्राह्मण समुदाय की भी खासी आबादी है। ब्राह्मण समुदाय 10%, मुस्लिम समुदाय 10% और आदिवासी मतदाता 5 प्रतिशत हैं। पांच प्रतिशत यादव, तीन प्रतिशत भूमिहार और वैश्य व अन्य जातियां हैं। इस तरह यहां पिछड़ी जाति के मतदाताओं की अधिकता है। माना जा रहा है कि इस बार भाजपा और आजसू पार्टी एक साथ चुनावी मैदान में उतरेगी। महा गठबंधन में शामिल दल भी एक मंच पर जुटेंगे। इससे भाजपा की स्थिति मजबूत होगी। जनता दल यूनाइटेड का भी यहां खासा वोट बैंक है। जो इस बार भाजपा के साथ होगा। भाजपा में उम्मीदवारी को लेकर वर्तमान विधायक नारायण दास का नाम सबसे ऊपर चल रहा है। भाजपा का टिकट पाने के लिए कई अन्य नेता भी चक्कर लगा रहे हैं।
फारवर्ड ब्लाक के भुवनेश्वर पांडे बने थे पहले विधायक
विधानसभा चुनाव देवघर विधानसभा चुनाव क्षेत्र 1952 में अस्तित्व में आया। यहां चुनाव हुए और नेताजी सुभाष चंद्र बोस के नेतृत्व में स्थापित फारवर्ड ब्लाक के भुवनेश्वर पांडे ने बाजी मारी। भुवनेश्वर पांडे ने कांग्रेस के दिग्गज नेता पंडित विनोदानंद झा को करारी शिकायत दी थी। वामपंथी विचारधारा वाले फारवर्ड ब्लाक के टिकट पर भुवनेश्वर पांडे जीते थे।
बिहार के मुख्यमंत्री बने पंडित विनोदानंद झा
पंडित विनोदानंद झा को देवघर से हार का सामना करना पड़ा था। इसके बाद उन्होंने विधानसभा पहुंचने के लिए संथाल परगना के दूसरे विधानसभा क्षेत्र का रुख किया। बाद में राजमहल विधानसभा से पंडित विनोद आनंद झा विधायक चुने गए और 1961 में बिहार के मुख्यमंत्री भी बने। लेकिन कुछ ही महीने में कामराज योजना के तहत 1963 में उन्हें मुख्यमंत्री की कुर्सी से हटना पड़ा था।
1957 में दोनों सीट पर जीती थी कांग्रेस
1957 में देवघर दो सदस्यीय क्षेत्र बना था और इस अनुसूचित जनजाति के लिए सुरक्षित कर दिया गया। इसके बाद चुनाव में दोनों सीट पर कांग्रेस के टिकट पर शैल बाला राय और मंगू रामदास विधायक चुने गए थे। बाद में 1962 में इस क्षेत्र को एक सदस्यीय कर दिया गया। इसके बाद यहां से एक विधायक चुने जाने का प्रावधान हुआ और 1962 के चुनाव में कांग्रेस से शैलबाला राय ने जीत दर्ज की थी।
1967 के चुनाव में जीती थी जनसंघ
1967 के चुनाव में जनसंघ के उम्मीदवार ने बाजी मारी थी। कांग्रेस को यहां से परास्त होना पड़ा था। जनसंघ के उम्मीदवार बालेश्वर दास ने कांग्रेस के उम्मीदवार को हराकर देवघर में जनसंघ का दीप जलाया था। बाद में 1969 के चुनाव में कांग्रेस के बैद्यनाथ दास जीत गए थे और उन्होंने अपनी सीट पर कब्जा जमाया। 1972 में कांग्रेस के टिकट पर बैद्यनाथ दास दूसरी बार यहां से विधायक बन गए थे।
1977 के जप लहर में जीती थी वीना रानी
1977 के लोकनायक जयप्रकाश के नेतृत्व में छात्र आंदोलन के सिपाही के रूप में पहचान बनाने वाली वीना रानी ने जनता पार्टी के टिकट पर जीत दर्ज की थी। उन्होंने कांग्रेस के बैद्यनाथ दास को हराया था और विधायक बन गई थीं। मगर 3 साल के अंदर 1980 में फिर विधानसभा चुनाव हुए और बैद्यनाथ दास ने इस सीट पर अपना कब्जा जमा लिया था। 1985 के चुनाव में बैद्यनाथ दास फिर विधायक चुने गए। 1990 में भी उन्होंने जीत दर्ज की। इस तरह बैद्यनाथ दास ने कांग्रेस के टिकट पर पांच बार देवनगर से विधायक बनने का रिकॉर्ड अपने नाम किया है। 1995 में लालू प्रसाद के सामाजिक न्याय की लहर में जनता दल के टिकट पर सुरेश पासवान विधायक बने थे।
कब कौन बना विधायक
1952 में फॉरवर्ड ब्लॉक के भुवनेश्वर पांडे
1957 में कांग्रेस की शैलबाला राय
1997 में कांग्रेस के मांगू लाल दास
1962 में कांग्रेस की शैल बाला राय
1967 में जनसंघ के बालेश्वर दास
1972 में कांग्रेस के बैद्यनाथ दास
1977 में जनता पार्टी की वीना रानी
1980 में कांग्रेस के बैद्यनाथ दास
1985 में कांग्रेस के बैद्यनाथ दास
1990 में कांग्रेस के बैद्यनाथ दास
1995 जनता दल यूनाइटेड के सुरेश पासवानसन
2000 में राजद के सुरेश पासवान
2005 में जदयू के कामेश्वर नाथ दास
2009 में राजद के सुरेश पासवान
2014 में भाजपा के नारायण दास
2019 में भाजपा के नारायण दास