जमशेदपुर : झरखंड में चुनावी शंखनाद बज चुका है. पार्टियों ने अपने प्रत्याशियों के नामों का ऐलान कर दिया है और पहले चरण के लिए नामांकन भी दाखिल किए जा चुके हैं. झारखंड अब पूरी तरह से चुनावी रंग में रंग गया है. सूबे की हर गली-मोहल्ले में नेताओं का जनसंपर्क चल रहा है. वहीं प्रशासन भी अपनी पैनी नजर गड़ाए हुए है. चाय की टपरी से लेकर बड़े-बड़े दफ्तरों तक सिर्फ लोगों के जबान पर यही चर्चा है कि ‘कौन जीतेगा भाई’ ? बहरहाल, ये तो चुनाव के जब परिणाम आएंगे तो पता चल ही जाएगा. लेकिन आज हम आपको सूबे के कुछ ऐसे विधानसभा सीटों के बारे में बताने जा रहे हैं जहां, भाजपा कभी नहीं हारी है, यानी इन सीटों को आप भाजपा का किला कह सकते हैं.
झारखंड की सियासत के अभेद्य किले
– BJP के मजबूत गढ़
झारखंड गठन के बाद से अब तक चार विधानसभा चुनाव हुए हैं, लेकिन इनमें कुछ सीटें ऐसी रहीं, जहां बीजेपी का दबदबा अटूट बना रहा. ये सीटें न केवल पार्टी की शक्ति का प्रतीक हैं, बल्कि विरोधियों के लिए चुनौती भी. रांची, कांके और खूंटी जैसी सीटों पर बीजेपी कभी हार का स्वाद नहीं चखी, जबकि जमुआ, सिंदरी और धनबाद जैसी सीटों पर भी पार्टी ने लगातार तीन चुनाव जीतकर अपनी पकड़ बरकरार रखी है. इन सीटों के दिलचस्प चुनावी सफर को जानना झारखंड की राजनीति का नब्ज समझने जैसा है.
– रांची: सियासत के बादशाह सीपी सिंह का किला
रांची विधानसभा सीट को भाजपा का अभेद्य किला कहना गलत नहीं होगा. इस सीट पर सीपी सिंह का जलवा ऐसा रहा कि झारखंड के गठन के बाद से उन्हें कोई हरा नहीं सका. वे इस सीट से लगातार छह बार विधायक चुने गए हैं. सीपी सिंह की छवि एक सशक्त और जमीन से जुड़े नेता की रही है. हर चुनाव में वे अपने सरल व्यक्तित्व और कार्यकर्ताओं के दम पर जीतते रहे. रांची में उनकी पकड़ सिर्फ चुनावी नतीजों तक सीमित नहीं, बल्कि जनता के बीच उनकी पैठ ने उन्हें अजेय बना दिया है. रांची विधानसभा के साल 2019 के चुनाव परिणाम बताते हैं कि इस सीट पर मुकाबला कड़ी टक्कर का हुआ था. इस साल के चुनाव में भाजपा प्रत्याशी सीपी सिंह को झारखंड मुक्ति मोर्चा की महुआ माजी के बीच दिलचस्प मुकाबला देखने को मिला. हालांकि भाजपा के सीपी सिंह ने 79646 वोट हासिल किया और वे विजयी रहे. वहीं सीपी सिंह की निकटतम प्रतिद्वंदी रहीं महुआ माजी को 73742 वोट मिले.
– खूंटी: नीलकंठ सिंह मुंडा का परचम
खूंटी विधानसभा सीट पर नीलकंठ सिंह मुंडा का दबदबा बरकरार है. 2005 से 2019 तक हुए सभी चुनावों में उन्होंने शानदार जीत दर्ज की. चार चुनाव, चार जीत—नीलकंठ मुंडा का ये रिकॉर्ड उन्हें बीजेपी का भरोसेमंद चेहरा बनाता है. खूंटी में आदिवासी जनसमुदाय पर उनकी पकड़ और विकास कार्यों की बदौलत वे हर बार जनता का विश्वास जीतते रहे हैं. पिछले विधानसभा चुनाव के परिणाम पर अगर नजर डालें तो खूंटी विधानसभा सीट से भाजपा प्रत्याशी नीलकंठ सिंह मुंडा को 58987 वोट मिले. वहीं जेएमएम प्रत्याशी सुशील पाहन 32665 वोट ला कर दूसरे स्थान पर रहे. लेकिन इस साल हुए लोकसभा चुनाव में खेल उल्टा पड गया. खूंटी लोकसभा में भाजपा का दांव उल्टा पड़ा और यह सीट झारखंड मुक्ति मोर्चा के खाते में चली गई. इस साल हुए लोकसभा चुनाव में जेएमएम के काली चरण मुंडा ने 96399 वोट लाकर एकतरफा जीत दर्ज कर ली. वहीं खूंटी से भाजपा के सांसद और केंद्रीय मंत्री रहे अर्जुन मुंडा 48804 वोट ही हासिल कर सके. इस बार खूंटी विधानसभा में जबरदस्त मुकाबला होने के आसार हैं. यह देखना दिलचस्प रहेगा कि भाजपा का यह किला अभेद्य बना रहता है। जेएमएम का तीर धनुष इस बार इसे भेद डालेगा.
– कांके: उम्मीदवार बदले, पर जीत हमेशा BJP की
कांके विधानसभा सीट भी भाजपा का मजबूत गढ़ रही है. यहां पार्टी ने हर बार चुनाव जीता, चाहे प्रत्याशी कोई भी हो. 2005 और 2009 में रामचंद्र बैठा ने जीत दर्ज की, तो 2014 में जीतू चरण राम और 2019 में समरी लाल ने पार्टी का परचम लहराया. कांके में भाजपा के लिए यह सीट प्रतिष्ठा की तरह रही है, जहां हर चुनाव में पार्टी ने अपनी जीत की लय बरकरार रखी. समरी लाल ने 2019 के विधानसभा चुनाव में 111616 हासिल किए. वहीं कांग्रेस प्रत्याशी सुरेश बैठा को 89131 वोट मिले.
– राजमहल: आदिवासी क्षेत्र में भाजपा की मजबूत दस्तक
राजमहल सीट, जो पहले कांग्रेस का गढ़ मानी जाती थी, अब भाजपा का प्रभावी किला बन चुकी है. 2005 में कांग्रेस के थॉमस हांसदा ने यहां जीत हासिल की थी, लेकिन इसके बाद भाजपा ने यहां लगातार तीन बार जीत दर्ज की. 2009 में अर्जुन मुंडा ने सीट अपने नाम की, 2014 और 2019 में अनंत कुमार ओझा यहां से विधायक बने. भाजपा की इस जीत ने राजमहल में पार्टी की स्थिति को मजबूत कर दिया है. साल 2019 के चुनावी आंकड़ों पर नजर डालें तो इस साल के चुनाव में भाजपा के अनंत ओझा ने 88904 वोट हासिल किए थे. वहीं आजसू के मोहम्मद ताजुद्दीन को 76532 वोट मिले थे. यह मुकाबला बेहद ही करीबी रहा.
– जमुआ: BJP की जीत का कारवां
जमुआ सीट पर भाजपा ने पिछले चार चुनावों में तीन बार जीत दर्ज की है. 2005 और 2014 में केदार हाजरा ने जीत हासिल की, जबकि 2009 में जेवीएम के चंद्रिका महथा ने उन्हें हराया. लेकिन 2019 में एक बार फिर केदार हाजरा ने सीट वापस भाजपा के पाले में ला दी. साल 2019 के आंकड़ों पर अगर नजर डालें तो भाजपा प्रत्याशी केदार हाजरा को 58400 वोट मिले. वहीं कांग्रेस प्रत्याशी मंजू कुमारी ने 40153 वोट हासिल की. अब इस चुनाव में यह देखना है कि जमुआ विधानसभा सीट किसके खाते में जाती है. बहरहाल, यह तो तय है कि इस बार इस सीट पर जबरदस्त मुकाबला देखने को मिलेगा.
– सिंदरी: जहां हर बार पलटी किस्मत
सिंदरी सीट पर भाजपा ने 2005 में राजकिशोर महतो के दम पर जीत दर्ज की थी. हालांकि, 2009 में जेवीएम के फूलचंद मंडल ने बीजेपी को मात दी. दिलचस्प बात यह है कि 2014 के चुनाव में फूलचंद मंडल खुद बीजेपी के टिकट पर लड़े और जीत गए. 2019 में इंद्रजीत महतो ने इस सीट पर भाजपा की जीत की लय को बरकरार रखा. साल 2019 के चुनाव परिणाम को देखे तो इस साल के चुनाव में भाजपा प्रत्याशी इन्द्रजीत महतो और मासस प्रत्याशी आनंद महतो के बीच जबरदस्त मुकाबला देखने को मिला था. इस चुनाव में इन्द्रजीत महतो 80759 वोट ला कर विजयी रहे. वहीं आनंद महतो को 72326 वोट मिले. चूंकि इन्द्रनाथ महतो पिछले चार साल से आईसीयु में हैं और पार्टी ने इस बार इन्द्रनाथ महतो की जगह उनकी पत्नी तारा देवी को उम्मीदवार बनाया है. अब यह देखना है कि क्या तारा देवी अपने पति की विरासत को आगे बढ़ा पाती हैं या नहीं.
– धनबाद: कोयला नगरी में BJP का दबदबा
धनबाद सीट पर बीजेपी का वर्चस्व लंबे समय से कायम है. 2005 में पीएन सिंह ने यहां जीत हासिल की, हालांकि 2009 में कांग्रेस के मन्नान मलिक ने उन्हें मात दी. इसके बाद 2014 और 2019 में बीजेपी ने वापसी की, और राज सिन्हा ने लगातार दो बार जीत दर्ज की. धनबाद में बीजेपी की पकड़ को कमजोर करना अब कांग्रेस के लिए बड़ी चुनौती बन चुका है. साल 2019 के चुनावी आंकड़ों पर नजर डालें तो भाजपा प्रत्याशी राज सिन्हा को 120001 वोट मिले. वहीं कांग्रेस के मन्नान मल्लिक को नवासी हजार पांच सौ अट्ठावन वोट मिले. यह मुकाबला बेहद ही दिलचस्प और करीबी था जिसमें भाजपा विजयी रही.
– झरिया: BJP की पकड़ और संघर्ष
झरिया विधानसभा सीट पर भी भाजपा की पकड़ मजबूत रही है. 2005 और 2019 में कुंती देवी ने जीत दर्ज की, जबकि 2014 में संजीव सिंह ने कमान संभाली. हालांकि, 2019 के चुनाव में कांग्रेस की पूर्णिमा नीरज सिंह ने बीजेपी को मात दी, जिससे झरिया में सत्ता का संतुलन थोड़ा डगमगाया. अब इस सीट पर भाजपा की नजर दोबारा अपना किला फतह करने पर है. साल 2019 के चुनावी आंकड़ों पर नजर डालें तो कांग्रेस प्रत्याशी पूर्णिमा नीरज सिंह ने 79512 वोट ला कर जीत दर्ज की थी. वहीं भाजपा प्रत्याशी रागिनी सिंह को 67546 वोट ही मिल सके थे. इस बार भी चुनाव में उलटफेर होने की पूरी संभावना नजर आ रही है. अब देखना ये है कि झरिया किसकी झोली में जाती है.
– जमशेदपुर पूर्वी: रघुवर दास की सियासी जमीन
जमशेदपुर पूर्वी सीट पर लंबे समय तक रघुवर दास का दबदबा रहा. उन्होंने 2005, 2009 और 2014 में लगातार तीन चुनाव जीते. लेकिन 2019 में सरयू राय ने बागी तेवर अपनाकर उन्हें हरा दिया, जिससे भाजपा को बडा झटका लगा. अब जब सरयू राय फिर से एनडीए गठबंधन में हैं और इस बार जमशेदपुर पूर्वी के बजाए जमशेदपुर पश्चिम से चुनाव लड़ रहे हैं, इससे पार्टी को उम्मीद है कि पूर्वी सीट पर उनका परचम दोबारा लहराएगा. अब साल 2019 के चुनावी आंकड़ों पर भी एक नजर डाल लेते हैं. साल दो हजार उन्नीस में निर्दलीय प्रत्याशी सरयू राय ने 73945 वोट हासिल कर जीत दर्ज की थी. वहीं भाजपा प्रत्याशी रघुवर दास ने 57112 वोट हासिल कर दूसरे नंबर पर रहे. इस बार चुनाव मैदान में जमशेदपुर पूर्वी से भाजपा ने रघुवर दास की बहु पूर्णिमा दास साहू को मैदान में उतारा है. वहीं कांग्रेस से पूर्व सांसद डॉक्टर अजय कुमार मैदान में है. अब यह देखना दिलचस्प होगा कि चेहरा बदलने के बाद क्या भाजपा आपनी सीट जमशेदपुर पूर्वी बचा पाती है या पूर्व सांसद अजय कुमार पूर्वी के विधायक बनते हैं.