नई दिल्ली : लोक जनशक्ति पार्टी (आर) के राष्ट्रीय अध्यक्ष और केंद्र में नरेंद्र मोदी सरकार में मंत्री चिराग पासवान इन दिनों खासा चर्चा में हैं। चर्चा इस बार नीतीश कुमार के खिलाफ उनके किसी आचरण को लेकर नहीं है। चर्चा उनके चाचा पशुपति कुमार पारस के साथ रिश्ते को लेकर भी नहीं है। चर्चा इस बात की हो रही है कि पानी में रह कर वे मगरमच्छ की भूमिका क्यों निभा रहे हैं ? यह उनके पिता के राजनीतिक ज्ञान का असर है या फिर कोई और वजह, लोग लगातार समझने की कोशिश कर रहे हैं। लेकिन समझ नहीं पा रहे। चिराग पासवान ने एक माह के भीतर केंद्र सरकार को चार बार आंखें दिखाई है। उन्हें लैटरल इंट्री पर एतराज है। आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट का निर्णय नामंजूर है। उन्हें वक्फ संशोधन बिल भी पसंद नहीं आया और तो और अब उन्होंने झारखंड में विधानसभा चुनाव में सीटें नहीं मिलने पर चालीस सीटों पर चुनाव लडने का ऐलान कर दिया है। इससे एनडीए में हडकंप मच गया है। उनके इस एक्शन से राजनीतिक जानकार यह कहने लगे हैं कि एनडीए में सब कुछ ऑल इज वेल नहीं है। कभी भी कोई बडा राजनीतिक घटनाक्रम हो सकता है।
मोदी के हनुमान के सुर बदले
चिराग पासवान मोदी मंत्रिमंडल का सदस्य होकर भी केंद्र सरकार के फैसले का विरोध करने लगे हैं। वह भी उस मोदी का, जिनका वह खुद को हनुमान बताते थकते नहीं थे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस अत्यंत प्रेम का दान भी उन्हें दिया। चार सांसदों के समर्थन वाले उनके चाचा को भाजपा ने एनडीए में कोई तवज्जो नहीं दी। चिराग के नेतृत्व वाले धडे को लोकसभा की पांच सीटें दे दीं।
कहां से मिल रही है चिराग को विटामिन
जबकि पशुपति पारस से किनारा कर लिया। पशुपति पारस कभी लालू तो कभी नीतीश के दरबार में हाजिरी लगाते रहे। लेकिन लोकसभा चुनाव में किसी ने भाव नहीं दिया। लेकिन, जिसके लिए नरेंद्र मोदी ने इतना कुछ किया, उस चिराग पासवान के सुर इन दिनों बदल गए हैं। वे नरेंद्र मोदी की सरकार के फैसलों की मुखालफत कर रहे हैं। अब सवाल यह है कि आखिर मोदी के फैसलों को चुनौती देने की ताकत उनमें कैसे और कहां से आ गई है ? यह विटामिन उन्हें कहां से मिल रही है।
कई मुद्दों पर जताया है विरोध
यूपीएससी में लेटरल एंट्री के मुद्दे पर सरकार के फैसले का चिराग ने विपक्षी दलों के नेताओं की तरह ही विरोध किया। वक्फ बोर्ड संशोधन बिल पर उनकी आपत्ति आई। एससी-एसटी कोटे में वर्गीकृत कोटा तय करने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ भी उन्होंने बयान दिया। इतना ही नहीं इस मुद्दे पर इंडिया गठबंधन के भारत बंद का भी चिराग पासवान की पार्टी का समर्थन रहा। और तो और पिछले दिनों झारखंड के रांची में लोक जनशक्ति पार्टी ( रामविलास ) के राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया गया। इसमें उन्हें राष्ट्रीय अध्यक्ष चुना गया। अपने मनोनयन के बाद उन्होंने कहा कि उनकी पार्टी एनडीए गठबंधन का हिस्सा है।
भाजपा से गठबंधन नहीं हुआ तो अकेले दम पर लड़ेगी लोकजनशक्ति
लेकिन झारखंड के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने उनकी पार्टी को सीट दिया तो ठीक, वरना उनकी पार्टी अकेले विधानसभा चुनाव लड़ेगी। इशारों में उन्होंने कहा कि उनकी पार्टी की स्थिति राज्य की चालीस विधानसभा सीटों पर मजबूत है। उन्होंने चालीस विधानसभा सीटों पर प्रत्याशी उतारने के संकेत दिए हैं। इतना ही नहीं लगे हाथों यह भी कह दिया, 2014 के चुनाव में उन्हें एकमात्र सीट शिकारी पाड़ा सीट मिली थी। उस समय झारखंड में एनडीए की सरकार बनी। लेकिन 2019 में गठबंधन नहीं हुआ तो पार्टी अकेले चुनाव लड़ी। इसके बाद भाजपा भी सरकार से बाहर हो गई। चिराग ने कहा कि वे चाहते हैं कि 2024 में भाजपा के साथ गठबंधन हो, अगर नहीं होता है तो पार्टी प्रत्याशी उतारने के लिए स्वतंत्र है। चिराग पासवान राजनीति में अलग लकीर खींच रहे हैं, जो अब तक किसी की समझ में नहीं आ रहा. राजनीतिक जानकार इस सोच में हैं कि कहीं वे अपने पिता रामविलास पासवान की तरह मौसम का मिजाज तो नहीं भांप रहे.
भाजपा ने शुरू किया प्लान बी, पारस से बढ़ाई नजदीकियां
चिराग पासवान में आए इस बदलाव से भाजपा असहज महसूस कर रही है। राजनीतिक हलके में चर्चा है कि चिराग के खिलाफ भाजपा ने अपना एक्शन भी शुरू कर दिया है। इसे इस बात से भी बल मिला कि भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष दिलीप जायसवाल चिराग के चाचा पशुपति कुमार पारस से अचानक मिलने उनके पार्टी दफ्तर पहुंच गए। जानकारी है कि भाजपा की ओर से पारस को दिल्ली दरबार से बुलावा भी आया है। चिराग के खिलाफ भाजपा ने अपना अभियान शुरू कर दिया है। बिहार विधानसभा चुनाव से पहले कोई बड़ा खेल हो सकता है। इसके पहले भाजपा ने जातीय समीकरणों को साधने के लिए चिराग के चाचा पारस से नजदीकियां बढानी शुरू कर दी हैं। आने वाले दिनों में एनडीए में कई चौंकाने वाले निर्णय सामने आ सकते हैं।