बीजेपी में कहां है लोकतंत्र, जानें कैसे निर्विरोध चुना जाता है पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष
नई दिल्ली : अपने अंदर अंदरूनी डेमोक्रेसी का दावा करने वाली बीजेपी में लोकतंत्र कहां है। पार्टी में राष्ट्रीय अध्यक्ष को चुनाव से चुने जाने का प्रावधान तो है मगर, अब तक जितने भी राष्ट्रीय अध्यक्ष हुए हैं वह बिना चुनाव के ही हुए हैं। पार्टी के वरिष्ठ नेता जिसे चुन लेते हैं वह अकेला राष्ट्रीय अध्यक्ष पद के लिए नामांकन दाखिल करता है और राष्ट्रीय अध्यक्ष बन जाता है। अपने गठन के वर्ष 1980 से लेकर जेपी नड्डा के अध्यक्ष बनने तक यही होता आया है। इससे पार्टी के अंदर डेमोक्रेसी के दावे पर सवाल खड़े होने लगे हैं। एक बार अध्यक्ष पद के चुनाव के दौरान एक कद्दावर नेता ने वरिष्ठ नेताओं की बात को अनसुना करते हुए नामांकन भर दिया था। बाद में उसे ऐसा दरकिनार किया गया कि नेता को पार्टी तक छोड़नी पड़ गई। अपनी इस रिपोर्ट में उस नेता का नाम जानेंगे और वह पूरा मामला भी बताएंगे कि उस साल बीजेपी में अध्यक्ष पद के चुनाव में कैसे कैसे नाटकीय घटनाक्रम हुए थे।
अध्यक्ष पद के चुनाव को बना है निर्वाचन मंडल
यूं तो बीजेपी में राष्ट्रीय अध्यक्ष पद के चुनाव का बाकायदा जो खाका तैयार किया गया है उसमें एक निर्वाचन मंडल बनाया गया है। राष्ट्रीय अध्यक्ष पद के एक से अधिक उम्मीदवार होने पर यह निर्वाचक मंडल चुनाव कराता है। मगर, साल 1980 के बाद से अब तक यह नौबत ही नहीं आई कि राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव कराना पड़े। आज तक निर्वाचन मंडल के सामने अध्यक्ष पद के लिए एक ही नेता ने नामांकन किया, और उसे निर्विरोध चुन लिया गया। दरअसल, होता यह है कि कभी आरएसएस तो कभी प्रधानमंत्री और उनके विश्वस्त लोग बैठ कर किसी को राष्ट्रीय अध्यक्ष चुन लेते हैं। बाद में चुना गया यही नेता राष्ट्रीय अध्यक्ष पद पर अकेले ही नामांकन करता है। किसी दूसरे को नामांकन करने की अनुमति नहीं होती। सूत्र बताते हैं कि जब बीजेपी लोकसभा में मजबूत होती है तो प्रधानमंत्री अध्यक्ष का चुनाव करते हैं और जब बीजेपी कमजोर होती है तो आरएसएस पार्टी का अध्यक्ष तैनात करता है। साल 2009 में जब लोकसभा में बीजेपी के सांसदों की संख्या 116 पर सिमट गई थी तो आरएसएस ने नितिन गडकरी को महाराष्ट्र से लाकर दिल्ली में पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया गया था।
कांग्रेस में होता है मतदान
कहा जा रहा है कि बीजेपी में अध्यक्ष पद के लिए कभी ऐसा चुनाव नहीं हुआ जैसे कांग्रेस में साल 2022 में मल्लिकार्जुन खड़गे और शशि थरूर के बीच हुआ था। कांग्रेस में भी अध्यक्ष पद के लिए चुनाव में इतना घमासान शायद ही कभी हुआ हो। साल 2000 में भी कांग्रेस में अध्यक्ष पद के लिए सोनिया गांधी और जितेंद्र सिंह के बीच चुनावी घमासान हुआ था।
साल 2013 में यशवंत सिन्हा ने भर दिया था पर्चा
साल 2013 तक नितिन गडकरी भाजपा के अध्यक्ष रहे। इसके बाद 2013 में अध्यक्ष पद के लिए चुनाव की प्रक्रिया शुरू हुई। पार्टी के वरिष्ठ नेताओं ने राजनाथ सिंह को इस पद के लिए नामांकन करने को कहा। राजनाथ सिंह ने नामांकन किया भी। मगर, नेताओं की अनुमति के बिना ही यशवंत सिन्हा ने भी पर्चा भर दिया। इससे भाजपा का शीर्ष नेतृत्व यशवंत सिन्हा से नाराज हो गया। हालांकि, दबाव के बाद यशवंत सिन्हा पीछे हट गए और राजनाथ सिंह ही अध्यक्ष बने थे। तभी से भाजपा के शीर्ष नेतृत्व और यशवंत सिन्हा के संबंधों में खटास आ गई। इसके बाद यशवंत सिन्हा भाजपा में दरकिनार कर दिए। उनके साथ शत्रुघ्न सिन्हा को भी हाशिए पर डाल दिया गया। बाद में हालात इतने खराब हुए कि इन दोनों नेताओं को पार्टी छोड़नी पड़ गई।