रांची : कांग्रेस भले ही 33 सीटों पर दावा कर रही है, लेकिन सबसे ज्यादा फोकस 18 सीटों पर है. यह 18 विधानसभा सीट वे हैं, जहां से वर्तमान में कांग्रेस के विधायक हैं या दूसरे दल के सिटिंग विधायक पार्टी में शामिल हुए हैं। ऐसे में कांग्रेस पाकुड, जामताड़ा, पोडैयाहाट, महागामा, जरमुंडी, बरही, बेरमो, झरिया, बडकागांव, मांडू, मांडर, खिजरी, जमशेदपुर पश्चिमी, जगरनाथपुर, कोलेबिरा, सिमडेगा, मनिका और लोहरदगा विधानसभा सीट इस बार भी जीतना चाहती है।
सियासी जानकारों का मानना है कि कांग्रेस को 18 की बजाए 20 विधानसभा सीट पर फोकस करना चाहिए था, क्योंकि 2019 के विधानसभा चुनाव में रामगढ से कांग्रेस प्रत्याशी ममता देवी ने आजसू की सुनीता देवी को हराया था और विधायक बनी थीं. लेकिन एक मामले में कोर्ट से सजा मिलने के बाद उनकी विधायकी चली गई, जिसके बाद हुए उपचुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी बजरंगी महतो आजसू प्रत्याशी सुनीता चौधरी से हार गए। इसलिए इस सीट पर भी कांग्रेस को फोकस करना चाहिए था। इसके अलावा जमशेदपुर पूर्वी सीट पर रघुवर दास की हार के बाद भाजपा के पास कोई बडा चेहरा नहीं है। इस सीट पर अगर कांग्रेस बेहतर तरीके से फोकस करे, डॉक्टर अजय कुमार की लोकप्रियता का इस्तेमाल करे तो यह सीट कांग्रेस की झोली में आ सकती है।
फंस सकती है कांग्रेस विधायक दल के नेता की सीट
वैसे तो कांग्रेस ‘विनिंग ऑल सिटिंग सीट’ की बात कर रही है, लेकिन 2019 के विधानसभा चुनाव के नतीजों का विश्लेषण करें तो कई सीट फंसती नजर आ रही है। इसमें पहला नाम राज्य के वित्त मंत्री और कांग्रेस विधायक दल के नेता रामेश्वर उरांव का है, जिनकी विधानसभा सीट लोहरदगा मुश्किल में फंसती नजर आ रही है। 2019 में आजसू से गठबंधन न हो पाने का नुकसान भाजपा को उठाना पडा था। तब आजसू प्रत्याशी के तौर पर नीरू शांति भगत करीब 40 हजार वोट पाकर तीसरे स्थान पर रही थीं और भाजपा प्रत्याशी सुखदेव भगत 44 हजार 230 वोट पाकर दूसरे स्थान पर रहे थे। इस चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी रामेश्वर उरांव 74380 वोट पाकर करीब 30 हजार वोटों से विजयी हुए थे। साफ है कि भाजपा-आजसू के बीच वोटों के जबरदस्त बंटवारे के कारण कांग्रेस की जीत आसान हो गई थी। इस बार आजसू भाजपा के साथ है, जबकि बाबूलाल मरांडी की पार्टी झाविमो का भी भाजपा में विलय हो चुका है। इसका भी असर होगा।
पूर्व कृषि मंत्री की सीट जीतना कांग्रेस के लिए कठिन
झारखंड में 2019 के मुकाबले 2024 की बदली राजनीतिक परिस्थितियों में जरमुंडी विधानसभा सीट भी कांग्रेस के लिए कांटे की टक्कर वाली सीटों में से एक नजर आ रही है। पिछले विधानसभा चुनाव के दौरान जेएमएम, कांग्रेस और आरजेडी के मजबूत महागठबंधन के बावजूद बादल पत्रलेख महज 3 हजार वोटों से जीत हासिल कर पाए थे। तब बीजेपी या कहें एनडीए पूरी तरह बिखरी हुई थी। ऐसे में पूर्व कृषि मंत्री बादल पत्रलेख के लिए इस बार विजय रथ पर सवार होना आसान नहीं लग रहा है। इसके अलावा उनके खिलाफ क्षेत्र में नाराजगी भी देखी जा रही है। 2019 में जरमुंडी विधानसभा सीट से बादल पत्रलेख को 52507 वोट मिले थे। जबकि भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार देवेंद्र कुमार को 49408 वोट मिले थे। यहां गौर करने वाली बात यह है कि बाबूलाल मरांडी की पार्टी तत्कालीन झारखंड विकास मोर्चा के उम्मीदवार संजय कुमार को 9242 वोट मिले थे जबकि निर्दलीय फूल कुमार को 17 हजार वोट मिले थे। आज की तारीख में झारखंड विकास मोर्चा का भारतीय जनता पार्टी में विलय हो चुका है और बाबूलाल मरांडी प्रदेश बीजेपी के अध्यक्ष हैं। आजसू भी भाजपा के साथ है, ऐसे में जरमुंडी विधानसभा सीट से बादल पत्रलेख की जीत इस बार आसान नहीं दिख रही है।
बन्ना गुप्ता को करनी पड़ेगी मेहनत
जमशेदपुर पश्चिमी विधानसभा सीट से कांग्रेस के विधायक और झारखंड सरकार के मंत्री बन्ना गुप्ता की भी राह आसान नहीं होगी। इस सीट पर उन्हें घेरने की पूरी तैयारी है। मजबूत किलाबंदी में बन्ना गुप्ता को फंसाया जा रहा है। संभावना है कि इस सीट पर जनता दल यूनाइटेड के टिकट पर सरयू राय उनके सामने ताल ठोकते नजर आएंगे। सरयू राय के साथ उनकी पुरानी अदावत रही है। इसके अलावा मुस्लिम वोट बैंक में उनकी पकड कमजोर हुई है। उनके अपने भी धीरे-धीरे उनसे दूर हो रहे हैं। इस डैमेज को अगर कंट्रोल नहीं किया गया तो बन्ना गुप्ता अपने क्षेत्र में ही घिर जाएंगे।
अंबा प्रसाद को अपने ही दे रहे हैं टक्कर
बडकागांव विधानसभा के पिछले तीन बार के चुनावी इतिहास पर नजर डालें तो नजर आएगा कि यह सीट कांग्रेस की सुरक्षित विधानसभा सीटों में से एक है। क्योंकि पिछले तीन विधानसभा चुनाव/उपचुनाव में एक ही परिवार ने जीत दर्ज की है। बडकागांव विधानसभा सीट पर पहले योगेंद्र साव, फिर निर्मला देवी और फिर अंबा प्रसाद ने कांग्रेस का परचम लहराया है। हालांकि, 2019 के विधानसभा चुनाव के नतीजे बताते हैं कि भाजपा और आजसू के बीच दरार और गठबंधन टूटने की वजह से अंबा प्रसाद की जीत बेहद आसान हो गई। तब कांग्रेस उम्मीदवार के तौर पर अंबा प्रसाद ने 98862 वोट हासिल किए थे और आजसू पार्टी के उम्मीदवार रोशनलाल चौधरी को उन्होंने को 31514 वोटों से हराया था। इस सीट पर तब भाजपा उम्मीदवार के तौर पर लोकनाथ महतो को 31761 और जेवीएम उम्मीदवार दुर्गाचरण प्रसाद को 3347 वोट मिले थे।
जगरनाथपुर सीट पर मुश्किल में कांग्रेस
कोल्हान क्षेत्र की वीआईपी सीटों में से एक जगन्नाथपुर सीट पर 2019 में महागठबंधन के प्रत्याशी के रूप में सोनाराम सिंकू ने जेवीएम के मंगल सिंह बोबोंगा को हराया था। तब कांग्रेस प्रत्याशी सोना राम सिंकू को 32 हजार 499 वोट मिले थे। इस सीट से जेवीएम प्रत्याशी बोबोंगा कुल 20 हजार 893 पाकर 11 हजार 600 वोट वोट से चुनाव हार गए थे। भाजपा उम्मीदवार सुधीर कुमार 16 हजार 450 वोट पाकर तीसरे जबकि आजसू प्रत्याशी मंगल सिंह सुरीन 14 हजार 223 वोट पाकर चौथे स्थान पर रहे थे। यह नतीजा तब का है जब कोड़ा दंपती यानी गीता कोड़ा और मधु कोड़ा कांग्रेस के साथ थे। आज यहां की राजनीतिक परिस्थितियां एकदम बदली हुई है। गीता कोड़ा और मधु कोड़ा भाजपा में हैं, तो जेवीएम का भाजपा में विलय हो गया है। आजसू भी इस बार भाजपा के साथ है। यही कारण है कि इस सीट से भाजपा 2019 के परिणाम को बदलने की सोच रही है।
खिजरी सीट का भी बदल सकता है नतीजा
जिन 7 विजयी सीटों पर कांग्रेस को मिशन 18 पूरा करने में दिक्कत आ सकती है, उनमें रांची की खिजरी विधानसभा सीट भी शामिल है। 2019 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने यह सीट भाजपा से छीनी थी। तब सत्ता विरोधी लहर, आजसू से गठबंधन न हो पाने और बाबूलाल मरांडी की पार्टी झाविमो प्रजातांत्रिक के उम्मीदवार के कारण भाजपा के मौजूदा विधायक रामकुमार पाहन को कांग्रेस उम्मीदवार राजेश कच्छप के हाथों 5469 वोटों से हार का सामना करना पडा था। तब राजेश कच्छप को 83829 वोट मिले थे। जबकि रामकुमार पाहन को 78 हजार 360 वोट मिले थे। यहां आजसू उम्मीदवार रामधन बेदिया 29 हजार वोट पाने में सफल रहे थे जबकि बाबूलाल की पार्टी झाविमो उम्मीदवार अंतु तिर्की को भी 6000 से अधिक वोट मिले थे। इस सीट पर कांग्रेस के लिए राहत की बात सिर्फ इतनी है कि पिछले लोकसभा चुनाव में इस विधानसभा सीट पर कांग्रेस उम्मीदवार यशस्विनी सहाय को बढ़त मिली थी। सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार इस बार भाजपा इस सीट से अपने हेवी वेट उम्मीदवार अर्जुन मुंडा को उतार सकती है। कांग्रेस का खेल खराब करने की तैयारी है।
बेहद कम वोटों से सिमडेगा जीती थी कांग्रेस
कांग्रेस की सिटिंग सीटों में सिमडेगा सीट भी ऐसी सीट है जहां इस बार कांग्रेस की जीत आसान नहीं दिख रही है। 2019 के विधानसभा चुनाव में इस सीट से त्रिकोणीय मुकाबले में कांग्रेस उम्मीदवार भूषण बाडा महज 285 वोटों से जीत पाए थे। तब भूषण बाडा को 60 हजार 651 वोट मिले थे। उनके निकटतम प्रतिद्वंदी बीजेपी के श्रद्धानंद बेसरा को 60 हजार 366 वोट मिले थे और झारखंड पार्टी के रेजी डुंगडुंग को 10 हजार 753 वोट मिले थे। यहां से तब बाबूलाल मरांडी ने जेवीएम का सिंबल मोहन बडाइक को दिया था और उन्हें 21729 वोट मिले थे। कांग्रेस की यह रणनीति है कि वह अपने सीटिंग सीटों पर फोकस कर उसे सुरक्षित करे. इसके अलावा अन्य सीटों पर पूरी ताकत के साथ चुनाव मैदान में लडे, ताकि झारखंड में कांग्रेस एक बार फिर सरकार में शामिल हो सके।