रांची : कोल्हान टाइगर के झामुमो से बगावत के बाद झारखंड की राजनीति में उथल-पुथल मची हुई है। ऐसे में उन नेताओं की याद ताजा हो गई जिन्होंने झामुमो छोड़ कर दूसरी पार्टी में आशियाना तलाशा। कहा जा रहा है कि झामुमो में सियासत सीखने के बाद इससे जितने भी नेता अलग हुए सब का सियासी समंदर में बेड़ा गर्क ही हो गया। झामुमो छोड़ने के बाद जनता ने इन्हें नकार दिया। इक्का-दुक्का नेता ही ऐसे निकले जो दूसरे दल में जाकर अपनी राजनीति चमका पाए और एक सियासी मुकाम हासिल किया।
1992 में झामुमो छोड़ने वाले कृष्णा मार्डी का हाल
इन नेताओं में पहला नाम आता है कृष्णा मार्डी का। ये साल 1981 में झामुमो से जुड़े थे। साल 1985 और 1990 में दो बार सरायकेला से विधायक रहे। साल 1991 में सिंहभूम से सांसद भी बने। झामुमो की सियासी पाठशाला में राजनीति की एबीसीडी जानने के बाद कोल्हान के इस कद्दावर नेता ने 1992 में पार्टी को अलविदा कह दिया। कृष्णा मार्डी ने झामुमो सुप्रीमो शिबू सोरेन से खटपट होने के बाद पार्टी छोड़ी थी। कृष्णा मार्डी ने नई पार्टी झामुमो (माडर्डी) नया दल बना कर कृष्णा मार्डी अपने साथ झामुमो के नौ विधायक भी ले गए थे। तब लगा कि झामुमो राजनीतिक झंझावात में फंस गई है। मगर, ऐसा नहीं हुआ। कृष्णा मार्डी का सितारा गर्दिश में आ गया और झामुमो ने पहले से भी अधिक सियासी तरक्की कर ली। सफलता की तलाश में कृष्णा मार्डी साल 2006 में भाजपा में चले गए। यहां भी भला नहीं हुआ तो 2008 में आजसू ज्वाइन कर ली। 2013 में कांग्रेस में चले गए। 2014 में उन्हें कांग्रेस से भी निकलना पड़ा।
जेएमएम को अलविदा कहने के बाद सीन से गायब हो गए दुलाल भुइंया
जुगसलाई विधानसभा सीट से तीन बार विधायक रह चुके झामुमो के दुलाल भुइंया का भी यही हश्र हुआ। वह साल 1995, 2000 और 2005 में जुगसलाई से झामुमो के टिकट पर विधायक बने थे। साल 2005 में विधायक बनने के बाद झामुमो ने उन्हें मंत्री भी बनाया। मगर, साल 2009 के विधानसभा चुनाव में वह आजसू के रामचंद्र सहिस से चुनाव हार गए। इसके बाद, वह दुलाल अपनी पार्टी झारखंड मुक्ति मोर्चा छोड़ कर झारखंड विकास मोर्चा में शामिल हो गए। यहीं से दुलाल भुइयां का पतन शुरू हो गया। इसके बाद, साल 2014 में चुनाव से पहले वह भाजपा में आ गए। दुलाल ने सोचा था कि उन्हें यहां से भाजपा से टिकट मिल जाएगा। मगर, झारखंड में भाजपा का आजसू से गठबंधन हो गया। यह सीट आजसू के खाते में चली गई। इसके बाद विधायक बनने के लिए आतुर दुलाल भुइयां ने कांग्रेस ज्वाइन कर ली। कांग्रेस के टिकट पर साल 2014 में जुगसलाई विधानसभा से चुनाव लड़ गए। मगर, 42 हजार 101 वोट पाकर तीसरे स्थान पर रहे। अब साल 2014 में उनकी कोई राजनीतिक गतिविधि नहीं नजर आ रही है। अब वह अपने बेटे विप्लव भुइयां को सेट करने के जुगाड़ में लगे हैं और उसके लिए जुगसलाई विधानसभा सीट से टिकट चाहते हैं।
शिबू सोरेन से अनबन के बाद अस्त हो गया सूरज
सूरज मंडल झामुमो में एक बड़ा नाम था। संथाल परगना के सीताकट्ठा के रहने वाले सूरज 1980 से 1991 तक बिहार विधानसभा के सदस्य रहे। उन्होंने साल 1991 में हुए आम चुनाव में गोड्डा से सांसद बने थे। उन्होंने भाजपा के दिग्गज नेता जनार्दन यादव को शिकस्त दी थी। बताते हैं कि दिशोम गुरु के बाद सूरज मंडल का नाम आता था। मगर, बाद में 1993 में पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव के कार्यकाल में अविश्वास प्रस्ताव के दौरान कैश फार वोट मामले में सूरज मंडल का नाम आया था। इसी के बाद उनकी गुरु जी से अनबन हो गई। इसके बाद सूरज मंडल को निकाल दिया गया। झामुमो से निकाले जाने के बाद सूरज मंडल का सितारा गर्दिश में आ गया। इसके बाद वह सफलता को तरस गए। अब सूरज मंडल ने राजनीतिक सफलता के लिए काफी हाथ पैर मार रहे हैं। मगर, कहीं कोई फायदा नहीं हो रहा है। सूरज मंडल ने इसके लिए भाजपा भी ज्वाइन कर ली।
झामुमो त्यागने के बाद डूब गया सीता का सितारा
शिबू सोरेन की बहु सीता सोरेन जामा से झामुमो के टिकट पर विधायक थीं। वह शिबू सोरेन के दिवंगत पुत्र दुर्गा सोरेन की पत्नी हैं। वह झामुमो की राष्ट्रीय महासचिव भी रहीं। उन्होंने जमा से साल 2019 में तीसरी बार चुनाव जीता था। लोकसभा चुनाव 2024 में उन्होंने झामुमो छोड़ दी और भाजपा ज्वाइन कर ली। मगर, उनका झामुमो छोड़ना रास नहीं आया। इस लोकसभा चुनाव में उन्होंने दुमका से भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ा मगर वह हार गईं। अब उनका राजनीतिक कॅरियर दांव पर है।
झामुमो छोड़ने के बाद नहीं जीत पाए कुणाल षाड़ंगी
बहरागोडा के पूर्व विधायक कुणाल षाडंगी ने झामुमो से अपने राजनीतिक सफर की शुरुआत की थी। उन्होंने साल 2014 में बहरागोड़ा से झामुमो के टिकट पर चुनाव लड़ा और 15 हजार 355 वोट पाकर भाजपा के दिनेशानंद गोस्वामी को पटखनी दे दी थी। हालांकि, साल 2019 के विधानसभा चुनाव के दौरान उन्होंने पाला बदल दिया और भाजपा में चले गए। उन्होंने यह चुनाव बहरागोडा से भाजपा के टिकट पर लड़ा मगर, झामुमो नेता समीर मोहंती से मात खा गए। अब कुणाल षाड़ंगी बहरागोड़ा विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ना चाहते हैं। सूत्र बताते हैं कि वह झामुमो में वापसी करने के जुगाड़ में हैं।
अर्जुन मुंडा और विद्युत वरण रहे अपवाद
झारखंड के सीएम रह चुके अर्जुन मुंडा भी झामुमो छोड़ कर भाजपा में आए थे। मगर, अर्जुन मुंडा ने भाजपा में खूब तरक्की हासिल की। वह सीएम के पद तक पहुंचे। कई बार केंद्रीय मंत्री भी रहे। अलबत्ता, अभी उनके भी सितारे ठीक नहीं चल रहे हैं। खरसावां से विधानसभा चुनाव हारने के बाद खूंटी को आसरा बनाया था। खूंटी से जीत कर वह लोकसभा पहुंचे थे। मगर, इस बार के आम चुनाव में जनता ने उन्हें वहां से भी पटखनी दे दी। अब अर्जुन मुंडा अपने के लिए एक जिताऊ सीट का इंतजाम करने में जुटे हैं। जमशेदपुर से सांसद विद्युत वरण महतो ने भी झामुमो से ही अपनी राजनीति की शुरुआत की थी। झामुमो के टिकट पर वह बहरागोड़ा से विधायक बने थे। बाद में साल 2014 के लोकसभा चुनाव में विद्युत ने पाल बदल लिया और भाजपा में चले गए। भाजपा उन्हें जमशेदपुर में लोकसभा चुनाव का उम्मीदवार बनाने के लिए लाई थी। विद्युत वरण महतो ने भाजपा के टिकट पर सांसदी हासिल की। इस बार के लोकसभा चुनाव में उन्होंने हैट्रिक लगाई है।