जमशेदपुर : एनडीए में सीटों के फार्मूले को लेकर संशय बरकरार है। हालांकि, गठबंधन के शीर्ष नेताओं के बीच सीटों के बंटवारे को लेकर कई राउंड की वार्ता हो चुकी है। मगर, अब भी कई सीटें ऐसी हैं जिन पर दलों के बीच दुविधा का माहौल है। इनमें से एक है अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित जुगसलाई विधानसभा सीट। यूं तो यह सीट आजसू की परंपरागत सीट मानी जाती है। रामचंद्र सहिस आजसू के टिकट पर दो बार यहां से विधायक बन चुके हैं। मगर, सीटों के फार्मूले के अनुसार यह सीट फंस गई है। इस सीट पर आजसू का दावा सैद्धांतिक तौर से कमजोर पड़ गया है। जिन सीटों को लेकर भाजपा और आजसू में जिच है उनमें जुगसलाई की विधानसभा सीट भी शामिल हो गई है। हालांकि, आजसू इस सीट को अपनी ही झोली में रखने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगाए हुए है।
दांव पर लग गया रामचंद्र सहिस का कॅरियर
बताते हैं कि जुगसलाई विधानसभा सीट के फंस जाने की वजह से आजसू के नेता पूर्व मंत्री रामचंद्र सहिस का कॅरियर दांव पर लग गया है। राजनीतिक जानकारों का कहना है कि अगर आजसू को जुगसलाई सीट नहीं मिलती और इसके बदले कोई दूसरी सीट दे दी जाती है तो राम चंद्र सहिस के अरमानों पर पानी फिर सकता है। दूसरी सीट से जीतने के लिए रामचंद्र सहिस को काफी मशक्कत करनी पड़ेगी। यही नहीं, दूसरी सीट पर जीत की कोई गारंटी भी नहीं है। इसलिए, आजसू हर हाल में जुगसलाई विधानसभा सीट को अपने पाले में करने की कवायद में जुटी हुई है। कहा जा रहा है कि इसी वजह से आजसू सुप्रीमो सुप्रीमो भाग भाग कर दिल्ली जा रहे हैं कि किसी तरह जुगसलाई विधानसभा सीट को बचा लिया जाए।
पांच साल से मेहनत कर रहे हैं रामचंद्र सहिस
पूर्व मंत्री रामचंद्र सहिस जुगसलाई विधाानसभा सीट पर पिछला चुनाव हारने के बाद से ही लगातार मेहनत करते आ रहे हैं। वह पटमदा और बोड़ाम के सभी कार्यक्रम में हिस्सा लेते हैं। लोगों से मुलाकात कर उनकी समस्या सुनते हैं और उसे हल कराते हैं। जुगसलाई और गोविंदपुर एरिया में भी रामचंद्र सहिस सक्रिय रहते हैं। रामचंद्र सहिस ने पांच साल मशक्कत कर जो राजनीतिक जमीन तैयार की है उसके छिनने की आशंका है।
फार्मूला बना कर बांटी जाती हैं सीटें
राजनीति के जानकारों का कहना है कि जब दो दलों में गठबंधन होता है तो उनके बीच सीटों का एक फार्मूला तय होता है। पिछले चुनाव का प्रदर्शन देखा जाता है। पिछले चुनाव के प्रदर्शन को भी जेहन में रखते हैं मगर, पिछले चुनाव के आंकड़े बड़ा रोल निभाते हैं। जिस सीट पर जिस दल का विधायक है वह सीट उसके खाते में जानी ही जानी है। इसके अलावा, कभी कभी तय होता है कि पिछले लैटेस्ट चुनाव के आंकड़े भी अहम भूमिका निभाते हैं। मसलन झारखंड में हाल ही में लोकसभा चुनाव हुए हैं। राजनीतिक दल यह भी देखते हैं कि विधानसभा सीट पर अपने किस घटक दल को बढ़त मिली थी।
पिछले चुनाव में तीसरे नंबर पर रहने से गड़बड़ हुआ मामला
जुगसलाई विधानसभा सीट पर विधानसभा चुनाव 2019 में भाजपा और आजसू का गठबंधन टूट गया था। इस सीट से 2019 में आजसू के टिकट पर चुनाव लड़ रहे रामचंद्र सहिस तीसरे नंबर पर चले गए थे। 2009 और 2014 में जुगसलाई से विधायक बनने वाले रामचंद्र सहिस पिछले विधानसभा चुनाव में 46 हजार 779 वोट ही हासिल कर सके थे। जबकि, भाजपा के उम्मीदवार मुचीराम बाउरी 66 हजार 647 वोट पाकर दूसरे नंबर पर रहे थे। जीत झामुमो के मंगल कालिंदी की हुई थी। रामचंद्र सहिस के तीसरे नंबर पर चले जाने और हाल ही में हुए लोकसभा चुनाव में जुगसलाई से भाजपा को बढ़त मिलने से इस सीट के लिए भाजपा की महत्वाकांक्षा जाग उठी है। कहा जा रहा है इस सीट पर भाजपा की मजबूत स्थिति देखने के बाद भाजपा भी इस सीट पर दावेदारी कर रही है। कहा जा रहा है कि कोल्हान में भाजपा आजसू को जुगसलाई की जगह घाटशिला देने के लिए तैयार है। क्योंकि, घाटशिला से भाजपा को ज्यादातर चुनावों में हार का ही मुंह देखना पड़ा है। हालांकि, सुदेश महतो इस सीट को लेकर सक्रिय हो गए हैं। उन्होंने भाजपा के शीर्ष नेतृत्व को जुगसलाई की सीट के लिए समझा दिया है। उन्हें बताया गया है कि यह सीट आजसू पार्टी का गढ़ है। इसलिए इस सीट को आजसू की झोली में ही रखा जाए। राजनीतिक जानकारों का कहना है कि भाजपा जुगसलाई को लेकर नर्मी दिखा सकती है। मगर, यह सीट छोड़ने के एवज में वह दूसरी सीट पर दावा मजबूत करेगी। जबकि, रामचंद्र सहिस का कहना है कि सीटों के बंटवारे पर आजसू और भाजपा का शीर्ष नेतृत्व के बीच बात चल रही है। इस पर वहीं से कुछ भी तय होगा कि यह सीट किस पार्टी को मिलेगी।