रांची : राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) में सीटों की शेयरिंग को लेकर बवाल मच गया है। आजसू प्रमुख सुदेश महतो और जदयू के प्रदेश अध्यक्ष खीरू महतो नाराज नजर आ रहे हैं। सुदेश महतो टुंडी की सीट चाहते हैं और खीरू महतो मांडू की। बताया जा रहा है कि खीरू महतो ने इस संबंध में जदयू के शीर्ष नेतृत्व से बात की है। खीरू महतो को आश्वासन दिया गया है कि उनकी बात सुनी जाएगी। सुदेश महतो ने भी भाजपा के शीर्ष नेतृत्व से कहा है कि उन्हें हर हाल में टुंडी की सीट चाहिए। इन दोनों सीटों को लेकर एनडीए में जबर्दस्त खींचतान मची है। इस खींचतान पर एनडीए के नेता कुछ भी बोलने के लिए तैयार नहीं हैं।
मांडू से बेटे को लड़ाना चाहते हैं खीरू
जदयू के प्रदेश अध्यक्ष समझ रहे थे कि मांडू सीट उन्हें मिलनी ही मिलनी है। क्योंकि, वह साल 2005 में जनता दल यूनाइटेड के टिकट पर खुद यहां से विधायक रह चुके हैं। खीरू महतो इस सीट पर अपने बेटे दुष्यंत कुमार पटेल को उतारना चाहते हैं। यह सीट कुड़मी बहुल होने की वजह से खीरू महतो की गणित है कि अगर उन्हें भाजपा के कैडर का साथ मिल गया तो आसानी से सीट निकल जाएगी। मांडू में अभी भी खीरू महतो का प्रभाव है। मगर, यह सीट आजसू ने हथिया ली है। भाजपा से जीत हासिल करने वाले विधायक जयप्रकाश भाई पटेल के कांग्रेस में चले जाने से यह सीट खाली हो गई है। इस सीट पर भाजपा के पास अपना कोई कद्दावर उम्मीदवार नहीं था। वह यह सीट जदयू को दे सकती थी।
सीटों के बंटवारे में भाजपा की कारीगरी
खीरू महतो के बेटे दुष्यंत भी इस सीट से एनडीए के लिए मजबूत उम्मीदवार साबित होते। मगर, सीटों के बंटवारे में भाजपा ने चाालाकी दिखाई है। भाजपा आजसू को 10 सीट देना चाहती थी। उसने इसमें मांडू सीट को जोड़ कर अपने लिए एक ऐसी सीट बचा ली है, जहां उसके पास मजबूत प्रत्याशी है। मगर, इस चालाकी में जदयू का नुकसान हो गया है। जदयू के प्रदेश अध्यक्ष को भरोसा था कि केंद्र में जिस तरह उनकी पार्टी भाजपा के लिए सहारा बनी है उस परिस्थिति को देखते हुए भाजपा झारखंड में जदयू को चार-पांच सीट जरूर दे देगी। खीरू महतो प्रदेश में जदयू का बोझ कई साल से उठा रहे थे। इसलिए, उन्हें यह भी भरोसा था कि कम से कम मांडू की सीट उनकी झोली में आएगी। मगर, मांडू के हाथ से निकल जाने से वह मनमसोस रहे हैं।
क्या सुदेश को मिल पाएगी टुंडी
आजसू टुडी विधानसभा सीट चाहती है। दरअसल साल 2014 में आजसू इस सीट से चुनाव जीती थी। तब भाजप व आजसू का गठबंधन था। आजसू के राजकिशोर महतो इस सीट से 1126 वोट से चुनाव जीते थे। साल 2019 में यह गठबंधन टूट गया था। इसलिए भाजपा और आजसू अलग अलग चुनाव लड़े थे। इस चुनाव में भाजपा के मथुरा महतो जीते थे। जबकि, भाजपा के विक्रम पांडेय दूसरे स्थान पर रहे थे। जबकि, आजसू के प्रत्याशी राजकिशोर महतो चौथे स्थान पर खिसक गए थे। भाजपा के सूत्रों के अनुसार इसी वजह से पार्टी ने आजसू को यह सीट नहीं दी है। इस सीट पर आजसू पार्टी कमजोर है। साल 2019 के चुनाव ने दिखा दिया है कि अगर साल 2014 में आजसू को भाजपा का साथ नहीं मिला होता तो वह तब भी नहीं जीत पाती। भाजपा समझ रही है कि यहां आजसू के वोट उसके उम्मीदवार को मिलेंगे तो सीट भाजपा के हाथ में होगी। सूत्रों की मानें तो यह सीट आजसू को मिलने में काफी दिक्कत आएगी। सुदेश महतो भले ही इस सीट को लेकर अपनी नाराजगी दिखा रहे हैं मगर, उनका दावा बेहद कमजोर है। वह भाजपा के शीर्ष नेतृत्व को यह नहीं समझा सकेंगे कि इस सीट पर आजसू का उम्मीदवार क्यों होना चाहिए।
फीडबैक ले रही है एनडीए
राजनीति के जानकारों का कहना है कि सीटों का जो बंटवारा अभी जारी किया गया है वह आखिरी नहीं है। एनडीए सीटों का यह बंटवारा सियासी बाजार में उतार कर फीडबैक ले रहा है। पार्टी के शीर्ष नेता यह देख रहे हैं कि किस सीट पर विरोध है और इसका कितना असर होगा। जहां विरोध है वहां नेता ऐसे ही मान जाएंगे या फिर उस सीट पर फेरबदल करना पड़ेगा। राजनीतिक सूत्रों का कहना है कि फीडबैक देखने के बाद अंत में सूची पर मोहर लगा दी जाएगी।