रांची: रांची विधानसभा सीट पर जेएमएम चुनाव लड़ेगी या यह सीट कांग्रेस के खाते में जाएगी, इसे लेकर इंडिया गठबंधन में रस्साकशी चल रही है। दोनों दल इस सीट को लेकर अपना अपना दावा पेश कर रहे हैं। जेएमएम का अपना तर्क है तो कांग्रेस अलग दलील दे रही है। यह सीट किसके पाले में जाएगी। कौन यहां से उम्मीदवार बनेगा। भाजपा का चौंतीस साल पुराना किला भेदने के लिए कौन तैयार होगा। इसे लेकर अभी संशय बरकरार है। इस बारे में हम आपको अपनी इस रिपोर्ट में जानकारी देंगे कि रांची सीट को लेकर इंडिया गठबंधन में क्या गहमा-गहमी चल रही है ।
रांची से महुआ माजी को उतारना चाहती है जेएमएम
जेएमएम रांची से महुआ माजी को उतारना चाहती है। साल 2022 में रज्यसभा सदस्य बनीं महुआ माजी पिछले 2019 और 2014 के चुनाव में भी रांची से चुनाव लड़ चुकी हैं। मगर, इन दोनों चुनाव में महुआ माजी हार गई थीं। 2014 के चुनाव में वह भाजपा के सीपी सिंह से 55 हजार 863 वोटों से हारी थीं। जबकि, साल 2019 के चुनाव में महुआ माजी भाजपा के सीपी सिंह से महज 5 हजार 904 वोटों से परास्त हुई थीं। साल 2014 की तुलना में साल 2019 के चुनाव में हार का अंतर कम होने की वजह से जेएमएम इस सीट पर चुनाव लड़ने के लिए लालायित है। रांची सीट वह सीट है जिस पर जेएमएम आज तक नहीं जीत पाई है। हम आपको बता दें कि साल 1952 और साल 1980 के चुनाव में रांची से कांग्रेस का उम्मीदवार जीता था। 1952 में राम रतन राम और 1980 में ज्ञान रंजन ने यहां कांग्रेस का परचम लहराया था। यही वजह है कि इस सीट को देख कर अब कांग्रेस की ललचा रही है। कांग्रेस चाहती है कि वह एक बार फिर यहां से जोर आजमाइश कर ले।
साल 2014 के चुनाव में जेएमएम से भी पिछड गई थी कांग्रेस
रांची सीट पर साल 2014 में कांग्रेस और जेएमएम दोनों दल अलग अलग चुनाव लड़े थे। तब दोनों दलों के बीच एलायंस नहीं हुआ था। इस चुनाव में भाजपा के सीपी सिंह ने बाजी मारी थी मगर, जेएमएम की महुआ माजी दूसरे नंबर पर रही थीं। कांग्रेस के सुरेंद्र सिंह न केवल तीसरे नंबर पर चले गए थे बल्कि उनका वोट भी काफी घट गया था। कांग्रेस को सिर्फ 7 हजार 953 वोट मिले थे। अब जेएमएम कह रही है कि वह धीरे-धीरे सुधार कर रही है। लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को रांची में भाजपा से कम वोट मिले थे। इस वजह से भी जेएमएम इस सीट पर अपना दावा दिखा रही है। जबकि, कांग्रेस का तर्क है कि भले ही साल 2014 के चुनाव में कांग्रेस पिछड़ गई हो मगर, साल 2009 के चुनाव में वह भाजपा के बाद दूसरे नंबर पर थी। तब कांग्रेस के प्रदीप तुलसियान को 39 हजार 50 वोट मिले थे। साल 2005 में भी कांग्रेस ने ही भाजपा का मुकाबला किया था।
कांग्रेस का भी बेहतर नहीं ट्रैक रिकार्ड
इस सीट पर कांग्रेस का भी ट्रैक रिकार्ड बेहतर नहीं है। रांची सीट पर अब तक 13 बार विधानासभा चुनाव हुए हैं। इनमें से सिर्फ 2 बार ही कांग्रेस जीत सकी है। 1980 के बाद से इस सीट पर अब तक कांग्रेस का खाता नहीं खुल सका है। लोकसभा चुनाव में भी वह भाजपा से पार नहीं पा रही है। इस सीट पर कभी कांग्रेस दूसरे नंबर पर रही है तो कभी तीसरे या चौथे नंबर पर खिसक गई है। अब देखना यह है कि इस रस्साकशी में किसकी जीत होती है। रांची पर जेएमएम का कब्जा होता है या कांग्रेस का। झारखंड की जनता का रांची सीट पर फोकस है। सबकी निगाहें रांची पर हैं। रांची की वजह से ही जेएमएम और कांग्रेस ने अपनी सभी सीटों पर उम्मीदवारों की सूची जारी नहीं की है। जेएमएम ने 41 में से 35 सीट पर उम्मीदवारों की सूची जारी कर दी है तो कांग्रेस ने 21 सीट पर प्रत्याशियों की घोषणा कर दी है। कांग्रेस के अंदर के सूत्र बताते हैं कि एक-दो दिन में सभी उम्मीदवारों की सूची जारी कर दी जाएगी। रांची पर जो जिच है खत्म करने की प्रक्रिया चल रही है।
इन नौ सीटों पर भी कांग्रेस की उम्मीदवारी का पेच
जिन 9 सीटों पर कांग्रेस ने अब तक उम्मीदवारों की घोषणा नहीं की है, उनमें पाकुड़, धनबाद, रांची, बोकारो, डाल्टनगंज, कांके, बरही, छतरपुर और पांकी की सीटें हैं। इनमें कांग्रेस अब तक उम्मीदवारों का चयन नहीं कर पाई है। इलाके से फीडबैक लिया जा रहा है। पाकुड़ विधानसभा सीट कांग्रेस के पूर्व मंत्री आलमगीर आलम की सीट है। यहां से उनके बेटे तनवीर आलम टिकट के मजबूत दावेदार हैं। आलमगीर आलम की पत्नी निशात आलम को भी लड़ाने पर मंथन हो रहा है। कांग्रेस का थिंक टैंक सोच रहा है कि यहां से किसे लड़ाया जाए ताकि सीट पार्टी की ही झोली में गिरे। उम्मीदवारी के लिए पूर्व विधायक अकील अख्तर का भी नाम आ रहा है। कांके में भी पिछला चुनाव लड़ने वाले सुरेश बैठा के अलावा कांग्रेस निरंजन पासवान, संजय पासवान, चंदन बैठा और केदार पासवान के बीच से उम्मीदवार की तलाश में जुटी है। वैसे चंदन बैठा का नाम सबसे ऊपर है। डाल्टनगंज में केएन त्रिपाठी कांग्रेस प्रत्याशी हो सकते हैं। पूर्व विधानसभा अध्यक्ष इंदर सिंह नामधारी भी अपने बेटे दिलीप नामधारी को टिकट दिलाने के लिए जोर लगा रहे हैं। कई अन्य दावेदार भी सामने हैं। छतरपुर से भी अभी उम्मीदवारी तय नहीं हो पाई है। चर्चा है कि यहां से पूर्व मंत्री राधा कृष्ण किशोर चुनाव लड़ेंगे। उन्होंने कांग्रेस ज्वाइन कर ली है। विमला देवी भी उम्मीदवार हो सकती हैं। बरही में उमाशंकर अकेला अपने बेटे रविशंकर अकेला को लड़ाने की बात कह रहे थे। मगर, उमाशंकर अकेला को ही यहां से चुनाव लड़ने को कहा जा रहा है।
धनबाद से अल्पसख्ंयक को मिल सकता है टिकट
कांग्रेस ने अभी धनबाद और बोकारो को भी होल्ड पर रखा है। इन दो सीटों में से एक पर कांग्रेस अल्पसंख्यक समुदाय के नेता को उम्मीदवार बनाना चाहती है। धनबाद के कांग्रेसी नेताओं ने दिल्ली जाकर इस संबंध में शिकायत की थी और धनबाद से मुस्लिम कैंडीडेट देने की बात कही थी। कहा जा रहा है कि इसके बाद दिल्ली में कांग्रेस के नेताओं की बड़ी मीटिंग हुई है। इस मीटिंग में तय किया गया है कि धनबाद या बोकारो से मुस्लिम उम्मीदवार उतारा जाए। इसके लिए दोनों विधानसभा सीटों पर पांच-पांच नाम मांगे गए हैं। इसी वजह से इन सीटों पर अब तक प्रत्याशियों का एलान नहीं किया गया है। धनबाद सीट पर मुस्लिम वोटरों की अच्छी खासी संख्या है। साल 2019 में कांग्रेस ने यहां से मुस्लिम कैंडीडेट मन्नान मल्लिक को उतारा था। मगर, वह दूसरे नंबर पर रहे थे। साल 2014 के चुनाव में भी मन्नान दूसरे नंबर पर रहे थे। साल 2009 के चुनाव में वह इस सीट से जीते थे। उन्होंने बीजेपी के राज सिन्हा को हराया था। बोकारो में मुस्लिम वोटरों की संख्या लगभग 50 हजार के आसपास है। यहां से साल 2005 में कांग्रेस के टिकट पर इजराइल अंसारी जीते थे। यहां से कांग्रेस ने साल 2014 के चुनाव में मंजूर अंसारी को उतारा था। मगर, वह नहीं जीत पाए थे। साल 2009 के चुनाव में कांग्रेस के इजराइल अंसारी दूसरे नंबर पर रहे थे। यहां से भी मुस्लिम को टिकट दिया जा सकता है।