पटना: बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और राष्ट्रीय जनता दल के नेता और बिहार के पूर्व डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव के बीच मंगलवार 3 सितंबर को सचिवालय में तक़रीबन आधे घंटे तक मुलाकात हुई। इस मुलाकात से बिहार और पूरे देश में राजनीतिक अटकलों की शुरुआत हो गई है। ऐसे में कई सवाल उभर कर बाहर आ रहे हैं। क्या बिहार के किसी बड़े नेता की फिर एक बार अंतरात्मा जाग रही है ? क्या बिहार में फिर से एक बार कोई बड़ा खेल होने वाला है ? पूरे देश का राजनीतिक केंद्र क्या एक बार फिर से बिहार बनने जा रहा है ? क्योंकि नितीश और तेजस्वी के बीच यह मुलाकात 8 महीनों के बाद हुई और यह मुलाकात तक़रीबन आधे घंटे तक चली।अभी तक मिली जानकारी के अनुसार दोनों की मुलाकात सूचना आयुक्त की नियुक्ति को लेकर हुई है। लेकिन सच में क्या बात सिर्फ इतनी है। या ऐसी संभावनाओं को जन्म बिहार में प्रशांत किशोर की सक्रियता और नीतीश कुमार की चुप्पी ने दिया है। इसके कारण इस मुलाकात में हुई खास बात को ख़ारिज किया जा सकता है।
सूचना आयुक्त के नियुक्ति को लेकर हुई मुलाकात
बिहार में सूचना आयुक्त की नियुक्ति के लिए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव के बीच हाल ही में एक महत्वपूर्ण बैठक हुई। आधिकारिक बयान के अनुसार, यह मुलाकात विशेष रूप से सूचना आयुक्त की नियुक्ति के सिलसिले में थी, क्योंकि यह प्रक्रिया एक समिति द्वारा संचालित की जाती है जिसमें मुख्यमंत्री, नेता प्रतिपक्ष और मंत्रिमंडल के सदस्य शामिल होते हैं। जल्द ही सरकार की ओर से नए सूचना आयुक्त की नियुक्ति की औपचारिक घोषणा की जाएगी।
हालांकि, बैठक में चर्चा का मुख्य विषय सूचना आयुक्त की नियुक्ति ही था, तेजस्वी यादव ने पत्रकारों से बातचीत के दौरान इस बैठक के दौरान की गई अन्य चर्चाओं का भी संकेत दिया, जो कि भविष्य में राजनीतिक चर्चा का विषय बन सकती हैं।
किस मुद्दे पर साथ थे नीतीश और तेजस्वी
बिहार में जातिगत जनगणना और आरक्षण के मुद्दे को लेकर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और आरजेडी नेता तेजस्वी यादव के बीच चर्चा जोरों पर है। दोनों नेताओं ने मिलकर बिहार में जातिगत जनगणना करवाई और आंकड़े जारी किए। इसके आधार पर नीतीश सरकार ने पिछड़े वर्ग के लिए आरक्षण की सीमा 50 फीसदी से बढ़ाकर 65 फीसदी कर दी। कैबिनेट के प्रस्ताव के अनुसार, पिछड़ा और अति पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षण 30 फीसदी से बढ़ाकर 43 फीसदी, अनुसूचित जातियों के लिए 16 फीसदी से बढ़ाकर 20 फीसदी, और अनुसूचित जनजातियों के लिए 1 फीसदी से बढ़ाकर 2 फीसदी कर दिया गया, जिससे कुल आरक्षण 65 फीसदी हो गया। इसके अलावा, 10 फीसदी ईडब्ल्यूएस आरक्षण को बरकरार रखा गया, जिससे कुल आरक्षण 75 फीसदी तक पहुंच गया।
हालांकि, इस फैसले के बाद पटना हाई कोर्ट ने 20 जून 2024 को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के आरक्षण संबंधी फैसले पर रोक लगा दी। 21 नवंबर 2023 को जारी गजट नोटिफिकेशन के खिलाफ अदालत का यह निर्णय अब राजनीतिक हलकों में गर्म बहस का विषय बना हुआ है।
कहीं बढ़ न जाए नितीश तेजस्वी के बीच बात
बिहार में जातिगत जनगणना और आरक्षण पर बढ़ते विवाद के बीच मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और आरजेडी नेता तेजस्वी यादव के बीच हालिया बातचीत ने राजनीतिक हलकों में हलचल मचा दी है। बिहार सरकार अब इस मुद्दे को संविधान की 9वीं अनुसूची में डालने की कोशिश कर रही है, जिससे अदालत की न्यायिक समीक्षा से बचा जा सके। तेजस्वी यादव ने इस प्रस्ताव पर चिंता जताई है, जबकि नीतीश कुमार की सरकार इसे लागू करने की दिशा में आगे बढ़ रही है। यह वही विवाद है जिसने पहले नीतीश कुमार और बीजेपी के बीच गठबंधन तोड़ा था, जिसके बाद नीतीश महागठबंधन के मुख्यमंत्री बने थे।
अब जब एक बार फिर इस मुद्दे पर नीतीश और तेजस्वी के बीच बातचीत हुई है, तो सवाल उठ रहा है कि कहीं यह विवाद और गहराई न पकड़ ले। इस स्थिति को लेकर राजनीतिक विश्लेषक और जनता दोनों ही चिंतित हैं।
पीके के टारगेट में तेजस्वी
बिहार विधानसभा चुनाव में एक साल से भी कम समय बचा है, और इस बीच राजनीतिक रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने अपनी नजरें तेजस्वी यादव पर केंद्रित कर दी हैं। किशोर ने स्पष्ट रूप से तेजस्वी यादव पर निशाना साधा है, जबकि नीतीश कुमार भी उनकी आलोचना से अछूते नहीं रहे हैं।
प्रशांत किशोर, जो कभी नीतीश कुमार के करीबी सहयोगी रह चुके हैं, ने हाल ही में कहा कि नीतीश कुमार की राजनीति अब समाप्त हो चुकी है। जब-जब नीतीश कुमार की स्थिति संकट में आई है, प्रशांत किशोर ने उनकी आलोचना की है। इसके बावजूद, नीतीश कुमार ने बार-बार अपने आलोचकों को गलत साबित किया है, यह साबित करते हुए कि बिहार की राजनीति में उनकी भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है।
प्रशांत किशोर के हालिया हमलों के बाद, राजनीतिक विशेषज्ञ और जनता यह जानने के लिए उत्सुक हैं कि क्या यह विवाद चुनावी रणनीतियों को प्रभावित करेगा और बिहार की राजनीतिक परिदृश्य को नया मोड़ देगा।
JDU को मजबूत करना चाहते हैं नीतीश
बिहार में लोकसभा चुनाव में सबसे बड़ी पार्टी बन चुके मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अब विधानसभा चुनाव में भी अपनी पार्टी को मजबूत स्थिति में लाना चाहते हैं। उनका उद्देश्य है कि जेडीयू को इतनी ताकतवर स्थिति में लाया जाए कि न तो बीजेपी और न ही आरजेडी उन्हें दबा सकें।
नीतीश कुमार इस समय यह तय करने में लगे हैं कि किस गठजोड़ के माध्यम से उनकी पार्टी 80 सीटों तक पहुंच सकती है। जैसे ही नीतीश कुमार इस रणनीति पर निर्णय लेंगे, सियासी चर्चा में नया मोड़ आ जाएगा। हालांकि, नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव ने एक-दूसरे के खिलाफ तीखे हमले करने से परहेज किया है, जिससे बिहार की राजनीति में नई संभावनाओं के द्वार खुले हैं। यह स्थिति इस बात का संकेत है कि राजनीति में संभावनाओं का खेल निरंतर बदलता रहता है और स्थायी दोस्त या दुश्मन नहीं होते।