नई दिल्ली: देश में 1967 तक एक देश एक चुनाव का ही फार्मूला लागू था। लोकसभा और देश की सभी विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराए जाते थे। इन्हें आम चुनाव कहा जाता था लेकिन संसद और विधानसभाओं के समय से पहले विघटन होने से चुनाव का चक्र बाधित हो गया और अब लोकसभा व विधानसभा के चुनाव अलग-अलग होने लगे। कभी किसी राज्य में चुनाव होता है, तो कभी किसी राज्य में। कहावत है कि भारत में कभी ना कभी कहीं ना कहीं चुनाव चलता ही रहता है। अभी जम्मू कश्मीर व हरियाणा में विधानसभा चुनाव हो रहे हैं। इसके बाद महाराष्ट्र और झारखंड में चुनाव का ऐलान होगा। कुछ महीने पहले ही लोकसभा चुनाव हुआ है। इसीलिए सरकार चाहती है कि देश में एक बार ही लोकसभा और विधानसभा के चुनाव हो जाएं। ताकि अलग-अलग चुनाव संपन्न कराने का खर्च भी बचे। समय और संसाधन की भी बचत होगी।
1968 में कुछ विधानसभा के विघटन से चक्र हुआ बाधित
लोकसभा और सभी राज्य की विधानसभा में पहला आम चुनाव 1951 में आयोजित किया गया था इसके बाद 1957, 1962 और 1967 में आम चुनाव में लोकसभा और सभी राज्यों की विधानसभा के चुनाव एक साथ हुए हैं। 1968 और 1969 में देश की कुछ विधानसभाओं का समय से पहले विघटन हो गया। विधानसभा भंग करनी पड़ी। इसकी वजह से आम चुनाव का चक्र बाधित हो गया और आम चुनाव के अलावा कुछ विधानसभाओं के अलग-अलग चुनाव होने शुरू हुए। बाद में कई अन्य विधानसभाओं का भी समय विघटन होने से चुनाव चक्र और भी बाधित होता गया।
1970 में समय से पहले भंग हो गई थी लोकसभा
1970 में लोकसभा को समय से पहले भंग कर दिया गया था। 1971 में नए चुनाव कराए गए। इस तरह लोकसभा और राज्य की विधानसभाओं के चुनाव अलग-अलग होने लगे। इस तरह लोकसभा का अगला चुनाव 1976 में हुआ। लेकिन जिन विधानसभाओं के कार्यकाल पूरे हो गए थे। उनके चुनाव समय पर करने पड़े।
इंदिरा गांधी ने भंग कर दी थी लोकसभा
प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने साल 1970 में लोकसभा भंग कर दी थी और निर्धारित समय से 15 महीने पहले 1971 में ही आम चुनाव कराया गया था। इंदिरा गांधी अल्पमत में सरकार चला रही थीं। वह चाहती थीं कि उन्हें पूर्ण बहुमत प्राप्त हो जाए। उनके इस फैसले ने राज्य विधानसभा चुनाव को आम चुनाव से अलग कर दिया। देश में एक देश एक चुनाव की मांग साल 1983 से ही शुरू हो गई थी। चुनाव आयोग ने 1983 में पहली बार इस पर विचार किया था और अब इसे अमली जामा पहनाने का प्रयास तेज हुआ है।