पेश है एक-एक सीट का सियासी विश्लेषण
जेएमएम का रहेगा दबदबा या बीजेपी का खुलेगा खाता
जमशेदपुर: इस बार कोल्हान में बीजेपी की निगाहें लगी हुई हैं। भाजपा यहां उलटफेर कर खाता खोलने का प्लान तैयार कर रही है। मगर, इंडिया गठबंधन को मात देना पार्टी के लिए टेढी खीर साबित हो सकता है। राजनीतिक पंडितों का मानना है कि कोल्हान की 10 सीटों पर इंडिया गठबंधन भारी पड़ रहा है। 4 सीटों पर इंडिया गठबंधन और एनडीए में कांटे के मुकाबले की बात कही जा रही है। राजनीतिक जानकार अपने अपने तरीके से चुनाव के विश्लेषण में जुटे हुए हैं।
जमशेदपुर पश्चिम में बन्ना व सरयू में कांटे की टक्कर
जमशेदपुर पश्चिम विधानसभा सीट झारखंड की एक अहम सीट है। जदयू और भाजपा के बीच चल रहे सीटों के बंटवारे को लेकर यह सीट चर्चा का विषय रही। यहां से राजनीति के चाणक्य कहे जाने वाले सरयू राय चुनाव लड़ रहे हैं। मगर, कोल्हान के राजनीतिज्ञों ने सरयू राय के लिए एक जाल बुना है। अब देखना है कि सरयू राय इस जाल में फंस जाते हैं या फिर पिछले विधानसभा चुनाव में पूर्वी में हुए उलटफेर की कहानी दोहराते हैं। जमशेदपुर पश्चिम में सरयू राय और बन्ना गुप्ता के बीच तीन बार चुनावी मुकाबले हुए हैं। इनमें से साल 2014 और 2005 में हुए दो मुकाबलों में सरयू राय ने जीत हासिल की है। 2009 में हुआ एक मुकाबला बन्ना गुप्ता के पक्ष में रहा है।
इस सीट की बात करें तो यहां मुख्य मुकाबला कांग्रेस के बन्ना गुप्ता और जदयू के सरयू राय के बीच है। इस सीट पर बन्ना गुप्ता का अपना नेटवर्क है। बूथ कमेटी तक में उनके लोग हैं। बन्ना गुप्ता के हाल ही में शुरू किए गए कई प्रोजेक्ट चुनावी अभियान में अहम साबित हो रहे हैं। जबकि, भाजपा का एक बड़ा वर्ग सरयू से नाराज है। जदयू को यहां भितरघात का सामना होने की बात कही जा रही है। हालांकि, सरयू राय अपनी सियासी कारीगरी से पांसा पलटने की कोशिश में हैं। उनके जनसंपर्क अभियान में भी भीड़ देखी जा रही है। भाजपा के बागी उम्मीदवार विकास सिंह और एआइएमआइएम के प्रत्याशी बाबर खान भी एक फैक्टर हैं। जमशेदपुर पश्चिम सीट पर कुल 28 उम्मीदवार चुनाव मैदान में हैं।
जमशेदपुर पूर्वी विधानसभा सीट पर एनडीए भारी
जमशेदपुर पूर्वी विधानसभा सीट पर भी झारखंड की निगाहें लगी हैं। लोग इस बात पर टकटकी लगाए हुए हैं कि ओडिशा के राज्यपाल पूर्व सीएम रघुवर दास की राजनीतिक विरासत बच पाती है या इस पर कांग्रेस कब्जा कर लेती है। इस सीट पर साल 1995 से साल 2019 तक रघुवर दास का दबदबा रहा है। इस सीट पर भाजपा 7 बार चुनाव जीती है। यह सीट भाजपा का गढ है। इसी वजह से भाजपा ने इस सीट को जदयू को देने से इंकार कर दिया था। भाजपा इस सीट को जीत कर पिछले विधानसभा चुनाव में हुए हार का दाग धोना चाहती है। मगर, भाजपा के बागी उम्मीदवार पार्टी की राह में रोड़ा बने हुए हैं। इस सीट पर कुल 24 उम्मीदवार चुनाव मैदान में हैं। जमशेदपुर पूर्वी विधानसभा सीट पर भाजपा और कांग्रेस के बीच मुख्य मुकाबले की बात कही जा रही है। भाजपा की पूर्णिमा दास साहू भाजपा के इस गढ़ को वापस पाने के लिए प्रयास में जुटी हुई हैं। उन्हें रघुवर दास की बहू होने का भी फायदा मिल रहा है। हालांकि, भाजपा के बागी उम्मीदवार शिवशंकर सिंह के खड़े होने से भाजपा को ही फायदा है। रघुवर से नाराज वोट डाक्टर अजय और शिवशंकर सिंह में बंट जाएंगे। निर्दलीय उम्मीदवार सौरभ विष्णु भी मुकाबले को रोचक बना रहे हैं। इसके अलावा, अन्य उम्मीदवार बहुजन समाज पार्टी के आनंद कुमार पत्रलेख, पीपुल्स पार्टी आफ इंडिया के इंदल कुमार सिंह, भारत आदिवासी पार्टी के कृष्णा हांसदा, जेएलकेएम के तरुण कुमार डे, एनसीपी के पवन कुमार पांडे, जेपीपी के माधवेंद्र मेहता, राइट टु रिकाल पार्टी के सुरजीत सिंह समेत अन्य पंद्रह निर्दलीय उम्मीदवार भी चुनाव मैदान में जोरशोर से डटे हुए हैं।
जुगसलाई विधानसभा सीट में आजसू व झामुमो आमने सामने
जुगसलाई विधानसभा सीट पर इस बार 12 उम्मीदवार चुनाव मैदान में हैं। यहां इस बार मुख्य मुकाबला जेएमएम के मंगल कालिंदी और आजसू के उम्मीदवार रामचंद्र सहिस के बीच बताया जा रहा है। पिछले चुनाव साल 2015 में इस सीट पर मंगल कालिंदी की जीत हुई थी। मगर, तब भाजपा और आजसू के बीच गठबंधन नहीं हुआ था। इस बार भाजपा और आजसू के बीच गठबंधन होने की वजह से हालात अलग हैं। इसके अलावा, निर्दलीय उम्मीदवार विप्लव भुइयां और विमल किशोर बैठा भी एक फैक्टर हैं। पूर्व मंत्री दुलाल भुइयां के बेटे विप्लव भुइयां एडवोकेट हैं। विमल किशोर बैठा भाजपा छोड़ कर निर्दलीय चुनाव लड़ रहे हैं।
पोटका विधानसभा सीट पर पूर्व सीएम अर्जुन मुंडा की प्रतीष्ठा दांव पर
पोटका विधानसभा सीट पर भूमिज उम्मीदवार हावी रहे हैं। यहां 1977 से अब तक सिर्फ भूमिज उम्मीदवारों की ही जीत हुई है। इस सीट की एक और खासियत है कि इस पर पार्टी रोटेट होती रही है। मतलब, साल 2000 के चुनाव में भाजपा जीती तो साल 2005 के चुनाव में जेएमएम ने बाजी मार ली। साल 2009 में भाजपा की मेनका सरकार जीती थीं। साल 2009 और 2014 में मेनका सरदार ने ही अपनी विधायकी रिपीट की थी। वह 2019 के चुनाव में हार गई थीं।
इस सीट पर इस बार 16 उम्मीदवार हैं। इनमें 8 उम्मीदवार विभिन्न पार्टियों से हैं। जबकि, बाकी 8 उम्मीदवार निर्दलीय हैं। इस सीट पर भाजपा की उम्मीदवार मीरा मुंडा और जेएमएम के प्रत्याशी संजीव सरदार मुकाबले में हैं। इसके अलावा, निर्दलीय उम्मीदवार सुबोध सिंह सरदार और लवकुमार सरदार भी अपना असर दिखा रहे हैं। मीरा मुंडा के लिए उनके पति पूर्व केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा एड़ी चोटी का जोर लगाए हुए हैं। मगर, यहां भाजपा में इस बात को लेकर नाराजगी है कि स्थानीय नेता मुंह ताकते रह गए और टिकट अर्जुन मुंडा की पत्नी को मिल गया। भाजपा कार्यकर्ताओं के बीच परिवार वाद का मुद्दा जोर-शोर से चल रहा है। इस सीट पर भूमिज मतदाताओं की संख्या अच्छी खासी है। भूमिज मतदाता इस बात से नाराज हैं कि भाजपा में उनकी जाति का कैंडीडेट नहीं है।
बहरागोड़ा विधानसभा सीट पर झामुमो व बीजेपी आमने सामने
बहरागोड़ा विधानसभा सीट पर सात उम्मीदवार चुनाव मैदान में हैं। यहां जेएमएम के समीर मोहंती और भाजपा के दिनेशानंद गोस्वामी आमने सामने हैं। पूर्व भाजपा नेता कुणाल षाडंगी के जेएमएम ज्वाइन करने और समीर मोहंती का सपोर्ट करने के बाद यहां की सियासी स्थिति में बदलाव हुआ है। साल 2000 और 2005 के चुनाव को छोड़ दें तो साल 2009 से यहां जेएमएम का कब्जा है। साल 2009 में बिद्युत वरण महतो, 2014 में कुणाल षाडंगी और 2019 में समीर मोहंती यहां से जीते हैं। कुणाल और दिनेश चिरप्रतिद्वंद्वी हैं। कुणाल दिनेश की राह रोकने की रणनीति तैयार कर रहे हैं। जेएमएम को इसका फायदा मिलेगा या नहीं यह समय बताएगा।
घाटशिला विधानसभा सीट पर चंपई सक्रिय
घाटशिला विधानसभा सीट पर जेएमएम के रामदास सोरेन और भाजपा के बाबूलाल सोरेन के बीच मुकाबला है। बाबूलाल सोरेन पूर्व सीएम चंपई सोरेन के बेटे हैं। चंपई सोरेन भी बाबूलाल सोरेन के लिए क्षेत्र में पसीना बहा रहे हैं। इस सीट पर बाबूलाल सोरेन पिछले दो साल से मेहनत कर रहे थे। इस सीट की जो सियासी स्थिति है। उसकी पटकथा दो साल पहले ही लिखी जा चुकी थी। तभी तो बाबूलाल सोरेन इलाके में अपनी पैठ जमाने में लगे थे। हालांकि, तब राजनीतिक पंडितों को इस बात का एहसास नहीं था कि इस सीट पर क्या होने जा रहा है। इस सीट पर कुल 12 उम्मीदवार चुनाव मैदान में हैं। मगर, भाजपा और जेएमएम के बीच कांटे के मुकाबले की बात कही जा रही है। ऊंट किस करवट बैठेगा इसका कयास लगाया जा रहा है। इस सीट पर साल 2000 और 2005 में चुनाव में कांग्रेस के प्रदीप बलमुचू जीते थे। 2009 में जेएमएम के रामदास सोरेन जीते थे। इसके बाद साल 2014 में बीजेपी के लक्ष्मण टुडू ने बाजी मारी थी। साल 2019 में बाजी रामदास के हाथ लगी थी। इस बार बीजेपी के लक्षमण टुडू बागी बन गए हैं। वह जेएमएम के साथ हैं और भाजपा के लिए कितने नुकसानदेह साबित होंगे यह मतगणना वाले दिन पता चलेगा।
सरायकेला विधानसभा सीट पर चंपई की प्रतिष्ठा दांव पर
सरायकेला विधानसभा सीट इस बार झारखंड की हाट सीटों में से एक बन गई है। इस सीट पर कुल तक्ष13 उम्मीदवार चुनाव मैदान में हैं। यहां भी भाजपा और जेएमएम के बीच कांटे का मुकाबला होने की बात कही जा रही है। यहां से भाजपा के टिकट पर पूर्व सीएम चंपई सोरेन चुनाव लड़ रहे हैं। चंपई सोरेन इस सीट से कई बार विधायक रह चुके हैं। जेएमएम के टिकट पर गणेश महाली चुनाव लड़ रहे हैं। इस सीट पर चंपई सोरेन को घेरने के लिए जेएमएम ने एक जाल बिछाया है। भाजपा के कई नेता भी चंपई सोरेन से अंदरखाने नाराज चल रहे हैं। इनमें से कुछ वह नेता हैं जो चंपई के भाजपा में आने से खुश नहीं हैं। तो वहीं कुछ ऐसे नेता भी उनसे नाराज हैं जो सरायकेला से भाजपा के टिकट के दावेदार थे। इस सीट पर पूरे झारखंड की निगाह लगी हुई हैं। साल 2005 को छोड़ दें तो यह सीट 1991 से लगातार जेएमएम के पास है। इस आंकडे का दूसरा पहलू भी है। यानि, भाजपा के उम्मीदवार चंपई सोरेन 2005 को छोड़ कर लगातार इस सीट से जीतते रहे हैं। भाजपा उम्मीदवार गणेश महाली को इस बार भाजपा के बागी नेताओं की भी हमदर्दी मिल रही है।
खरसावां विधानसभा सीट पर हो सकता है भितरघात
खरसावां विधानसभा सीट पर 10 उम्मीदवार चुनाव मैदान में हैं। यहां जेएमएम के दशरथ गागराई और बीजेपी के सोनाराम बोदरा के बीच मुख्य मुकाबला है। सोनाराम बोदरा पूर्व सीएम चंपई सोरेन के खासमखास माने जाते हैं। कहा जा रहा है कि खरसावां से सोनाराम बोदरा को चंपई सोरेन ने ही टिकट दिलाया है। इस सीट पर छह निर्दलीय प्रत्याशी चुनाव लड़ रहे हैं। जेएलकेएम के पांडूराम हाईबुरु और झारखंड पार्टी के सिद्धार्थ होनहागा भी चुनावी मैदान में डटे हुए हैं। भाजपा ने यह सीट जेएमएम से छीनने का खाका तैयार किया है। मगर, जेएमएम ने भी इस सीट पर अपना कब्जा बरकरार रखने की पटकथा लिख ली है। इस सीट पर 2014 और 2019 में जेएमएम के दशरथ गागराई जीते हैं। इसके पहले 1995 से 2010 तक सीट भाजपा के पास रही थी। इस बार भाजपा इस सीट पर वापसी के लिए पूरा जोर लगा रही है।
ईचागढ़ विधानसभा सीट पर जेएमएम व आजसू में टक्कर
ईचागढ विधानसभा सीट से कुल 23 उम्मीदवार चुनाव मैदान में हैं। यहां जेएमएम की प्रत्याशी सविता महतो और आजसू के हरेलाल महतो के बीच मुकाबला है। इन दोनों के बीच कांटे का मुकाबला होने की बात कही जा रही है। क्योंकि, हरेलाल महतो इस बार एड़ी चोटी का जोर लगाए हुए हैं। हालांकि भाजपा के बागी उम्मीदवार अरविंद कुमार सिंह हरेलाल महतो की राह रोकने के लिए रात दिन एक कर रहे हैं। जेएमएम अपने कैडर वोट के भरोसे ही इस सीट पर चुनावी नैया पार लगाने की जुगत में है। इस सीट पर 2000 से भाजपा और जेएमएम के उम्मीदवार जीतते रहे हैं। 2000 के चुनाव में भाजपा के अरविंद सिंह जीते थे तो 2005 में जेएमएम के सुधीर महतो। 2009 में झाविमो से अरविंद सिंह जीते तो 2014 में भाजपा के साधु चरण महतो जीते थे। 2019 में फिर यह सीट जेएमएम के पास है। यहां से सविता महतो जीती थीं। अब इस सीट को हथियाने के लिए आजसू के हरेलाल को सीट देकर एनडीए ने पासा फेंका है।
मनोहरपुर विधानसभा सीट पर लड़ रहे जोबा मांझी के पुत्र
मनोहरपुर विधानसभा सीट पर 12 प्रत्याशी चुनाव मैदान में हैं। यहां जेएमएम के उम्मीदवार जगत मांझी और आजसू के दिनेश चंद्र बोईपाई के बीच मुकाबला है। भारत आदिवासी पार्टी के सुशील बारला और झारखंड पार्टी के महेंद्र जामुदा जेएमएम के वोट में सेंधमारी कर सकते हैं। निर्दलीय उम्मीदवार जदयू नेता विश्रााम मुंडा और आजसू के बागी नेता दिलबर खाखा आदि भी एक फैक्टर हैं। दिलबर खाखा झारखंड क्रांतिकारी लोकतांत्रिक मोर्चा से उम्मीदवार हैं। झामुमो प्रत्याशी जगत मांझी के लिए उनकी मां जेएमएम की सांसद जोबा मांझी ने मोर्चा संभाल लिया है। मनोहरपुर विधाानसभा सीट जोबा मांझी का गढ मानी जाती है। जोबा मांझी यहां से 2000 और 2005 में यूनाइटेड गोन्स डेमोक्रेटिक पार्टी की उम्मीदवार रही हैं। 2009 में भाजपा के गुरुचरण नायक जीते थे। इसके बाद 2014 और 2019 में जेएमएम के टिकट पर जोबा मांझी ने जीत दर्ज की। अब वह अपनी विरासत बेटे जगत मांझी को सौंप पाती हैं या नहीं। सियासी हलके में यह चर्चा का विषय है।
जगन्नाथपुर विधानसभा सीट पर लगी टकटकी
जगन्नाथपुर में 8 उम्मीदवार हैं। यहां भाजपा की गीता कोड़ा और कांग्रेस के सोनाराम सिंकू के बीच मुकाबला है। जेएलकेएम के प्रत्याशी लक्ष्मी नारायण लागुरी भी एक फैक्टर हैं। गीता कोड़ा सिंहभूम संसदीय सीट से कुछ महीने पहले लोकसभा का चुनाव हारी हैं। इस वजह से इलाके में उनके लिए विकट चुनौतियां हैं। यहां चुनावी हालात कांग्रेस के उम्मीदवार सोनाराम सिंकू के चुनावी दमखम पर है। जगन्नाथपुर सीट एक घोटाले में सजायाफ्ता नेता मधु कोड़ा का इलाका है। साल 2000 से 2014 तक यहां कोड़ा दंपति का दबदबा रहा। 2000 और 2005 में यहां से मधु कोड़ा विधायक रहे। इसके बाद 2009 और 2014 में मधु कोड़ा की पार्टी जय भारत समानता पार्टी से उनकी पत्नी गीता कोड़ा विधायक बनी थीं। गीता कोड़ा के सांसद बनने के बाद मधु कोड़ा के ही करीबी सोनाराम सिंकू यहां कांग्रेस के टिकट पर जीते थे। इस बार फिर सोनाराम सिंकू चुनाव मैदान में हैं। मगर, वह कोड़ा दंपति की ताकत के सामने कितने कामयाब होते हैं यह मतगणना के बाद पता चलेगा। हालांकि, यहां भाजपा उम्मीदवार गीता कोड़ा को भितरघात का भी सामना है।
चाईबासा विधानसभा सीट पर दमखम झोंक रही जेएमएम
चाईबासा सीट से 14 उम्मीदवार चुनावी मैदान में हैं। यहां जेएमएम के उम्मीदवार दीपक बिरुवा चुनावी संघर्ष में एक बड़ा नाम है। भाजपा की तरफ से गीता बलमुचू चुनाव लड़ रही हैं। यहां एनसीपी की कोमल नीमा सोरेन, झापा के कोलंबस हांसदा और अंबेकराइट पार्टी के मंगल सिंह सुंडी भी एक बड़ा फैक्टर हैं। भाजपा और जेएमएम ने इस सीट पर पूरा दमखम झोंक दिया है। इस सीट पर साल 2009 से जेएमएम का कब्जा है। यहां से दीपक बिरुआ ने पिछले चुनाव में ही हैट्रिक लगा दी थी। इस साल अगर वह जीतते हैं तो यह उनकी चौथी जीत होगी। भाजपा इस सीट पर 19 साल से जीत को तरस रही है। पिछले विधानसभा चुनाव में जेएमएम के दीपक बिरुआ ने भाजपा के जेबी तुबिद को एक बड़े अंतर 29 हजार 159 वोट से हराया था।
मझगांव विधानसभा सीट पर 12 उम्मीदवार मैदान में
मझगांव विधानसभा सीट पर कुल 12 उम्मीदवार चुनाव मैदान में हैं। यहां जेएमएम के निरल पूर्ति और भाजपा के बड़कुंवर गागराई के बीच मुकाबला है। भारत आदिवासी पार्टी के बहालेन चांपिया, अबेडकराइट पार्टी के योगेश कालुंडिया, राइट टु रिकाल पार्टी के सुखदेव बिरूली भी एक बड़ा फैक्टर हैं। यह लोग मुख्य मुकाबले में मौजूद उम्मीदवारों के वोटों में सेंधमारी करेंगे। इस सीट पर साल 2000 के बाद से अब तक एक बार भाजपा चुनाव जीतती है तो दूसरी बार जेएमएम। साल 2000 के चुनाव में भाजपा के बड़कुंवार गागराई जीते थे तो अगले साल 2005 के चुनाव में जेएमएम के निरल पूर्ति ने मैदान मारा था। साल 2009 में भाजपा के बड़कुंवर गागराई जीत गए थे तो अगले चुनाव 2014 में जेएमएम के निरल पूर्ति जीते थे। 2019 में जेएमएम के निरल पूर्ति ही चुनाव जीते थे। अब देखना है कि इस सीट पर जेएमएम अपना विजय रथ इस बार भी दौड़ाती है या फिर भाजपा यह रथ रोकने में कामयाब हो जाती है।
चक्रधरपुर विधानसभा सीट
चक्रधरपुर विधानसभा सीट पर कुल 12 उम्मीदवार चुनाव लड़ रहे हैं। यहां जेएमएम के सुखराम उरांव और भाजपा के शशिभूषण सामड के बीच मुख्य मुकाबला है। इसके अलावा, अंबेडकराइट पार्टी के सुखलाल सामड, झारखंड पार्टी के मंगल सरदार और जेकेएलएम की बसंती पूर्ति भी वोटों में सेंधमारी करेंगे। इस सीट के लिए भी भाजपा और जेएमएम ने एड़ी चोटी का जोर लगाया है। इस सीट पर भी मझगांव जैसी ही सियासी स्थिति है। साल 2000 में भाजपा के चुमनू उरांव जीते थे तो 2005 में जेएमएम के सुखराम उरांव जीते थे। 2009 में भाजपा के लक्ष्मण गिलुवा जीते थे तो 2014 और 2019 में झामुमो ही जीती थी। यहां से 2014 में जेएमएम के शशिभूषण सामद जीते थे तो 2019 में जेएमएम के सुखराम उरांव। इस बार फिर सुखराम उरांव जेएमएम में हैं और शशिभूष सामद भाजपा से मैदान में हैं।