राज्यपाल के सहारे कुड़मी वोट साधने की जुगत, बीजेपी का एक तीर से दो निशाना
रांची : बरेली से आठ जीत का झंडा गाड़ चुके सियासतदान संतोष गंगवार को झारखंड लाकर भाजपा ने जो मास्टर स्ट्रोक खेला है उसकी हर जगह चर्चा हो रही है। ऐसा कर भाजपा एक तीर से दो निशाना साध रही है। मकसद है कुड़मी वोट को साधना। संतोष गंगवार को झारखंड का राज्यपाल बना कर भाजपा एक तरफ झारखंड में कुड़मी मतों को अपने पाले में करना चाहती है। तो दूसरी तरफ, बीजेपी की योजना उत्तर प्रदेश के रुहेलखंड इलाके में नाराज कुर्मियों (उत्तर प्रदेश में कुड़मी को कुर्मी कहते हैं ) को खुश करने की है। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि भाजपा संतोष गंगवार को राज्यपाल बना कर न केवल कुड़मी बल्कि प्रदेश के पिछड़ा वर्ग को साध सकती है।
चुनाव में अहम रोल अदा करती है कुड़मी बिरादरी
झारखंड की सियासत में कुड़मी बिरादरी की बड़ी अहमियत है। प्रदेश में कुड़मी मतों की संख्या 15 प्रतिशत है। सूबे की कम से कम 25 सीटें ऐसी हैं जहां यह बिरादरी कोई भी राजनीतिक समीकरण बना-बिगाड़ सकती है। यही वजह है कि सभी पार्टियां कुड़मियों को अपने पाले में करने के लिए कवायद में जुटी रहती हैं। कभी कुड़मी बिरादरी झामुमो का वोट बैंक मानी जाती थी। शहीद निर्मल महतो, सुधीर महतो, सुनील महतो आदि कुड़मी नेताओं की एक लंबी फेहरिस्त है जिन्होंने प्रदेश के लिए शहादत तक दे दी। इस महतो परिवार की सविता महतो अभी भी कोल्हान की ईचागढ़ विधानसभा सीट से विधायक हैं। मगर, अब कुड़मी बिरादरी का वोट झामुमो से छिटकने लगा है। पहले आजसू ने इसमें सेंध लगाई और बची-खुची कसर जेबीकेएसएस पूरा कर रही है। अब भाजपा ने भी इस बिरादरी के वोट बैंक में सेंधमारी का मास्टर प्लान तैयार किया है। माना जा रहा है कि कुर्मी बिरादरी से ताल्लुक रखने वाले संतोष गंगवार को प्रदेश के एक शीर्ष पद पर बैठा कर भाजपा इसकी शुरुआत कर चुकी है।
यूपी में रुहेलखंड की सियासत पर भी नजर
भाजपा की रुहेलखंड की सियासत पर भी नजर है। लोकसभा चुनाव 2024 में संतोष गंगवार को उनकी परंपरागत सीट बरेली से टिकट नहीं दिया गया। इसका असर पूरे रुहेलखंड की राजनीति पर पड़ा। बीजेपी रुहेलखंड की दो सीटें बदायूं और आंवला हार गई। आंवला से भाजपा के धर्मेंद्र कश्यप और बदायूं से भाजपा के दुर्विजय सिंह शाक्य चुनाव हार गए। भाजपा बरेली में बड़ी मुश्किल से इज्जत बचा पाई। यहां से भाजपा उम्मीदवार छत्रसाल सिंह महज 34 हजार 804 मतों से ही जीत हासिल कर सके। जबकि, बरेली सीट पर हमेशा भाजपा की जीत का अंतर डेढ़ लाख मतों के आसपास होता था। ऐसा कुर्मी बिरादरी की नाराजगी की वजह से हुआ।