झारखंड में एसटी के लिए रिजर्व सीटों पर लगी भाजपा की निगाह, आदिवासी नेताओं को चुनाव लड़ाने की बन रही रणनीति
रांची: हाल ही में संपन्न हुए लोकसभा चुनाव में झारखंड की अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित सीटों पर भाजपा का प्रदर्शन अच्छा नहीं रहा है। पार्टी के वरिष्ठ नेता इस बात को लेकर मंथन में जुड़ गए हैं कि आखिर झारखंड की अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित पांचो सीटों पर पार्टी क्यों परास्त हो गई। इसे लेकर असम के मुख्यमंत्री और भाजपा के झारखंड के चुनाव सह प्रभारी हेमंत विश्व शर्मा भी मंथन में जुटे हुए हैं। माना जा रहा है कि लोकसभा चुनाव में जहां भी कमी मिली है। विधानसभा चुनाव में पार्टी उसको दूर करना चाहती है। इसे लेकर सभी नेताओं का फोकस झारखंड की अनुसूचित जनजाति आरक्षित सीटें हो गई हैं। राजनीतिक जानकारों का कहना है कि पार्टी में राष्ट्रीय स्तर पर इस बात को लेकर मंथन किया जा रहा है कि विधानसभा चुनाव में अनुसूचित जनजाति आरक्षित सीटों पर किस तरह सफलता प्राप्त की जाए। इसे लेकर रांची में भी पार्टी के वरिष्ठ नेता मंथन में जुट गए हैं। पार्टी के जितने भी अनुसूचित जनजाति वर्ग के बड़े नेता हैं इनसे संपर्क साधा जा रहा है। पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी, पूर्व केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा, पूर्व केंद्रीय मंत्री सुदर्शन भगत, पूर्व सांसद गीता कोड़ा, भाजपा एसटी मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष समीर उरांव, पूर्व आईपीएस अधिकारी अरुण उरांव, पूर्व विधायक सीता सोरेन, पूर्व सांसद सुनील सोरेन, पूर्व प्रदेश अध्यक्ष ताला मरांडी आदि से भी मंथन किया जा रहा है। माना जा रहा है कि पार्टी ने रणनीति बनाई है कि इन सभी बड़े दिग्गज आदिवासी नेताओं को विधानसभा चुनाव के टिकट दिए जाएं और सभी को चुनाव लड़ाया जाए ताकि आदिवासियों के मन में जगह बनाई जा सके और ज्यादा से ज्यादा सीटें निकाली जा सकें।
आदिवासी नेताओं का लिया गया फीडबैक
असम के मुख्यमंत्री हेमंत बिस्वा शर्मा ने आदिवासी नेताओं से फीडबैक लिया है। उनसे कारण जानना चाहा है की आखिर एसटी सीटों पर भाजपा क्यों पिछड़ गई। लोकसभा चुनाव में उसकी क्या चूक थी। ताकि, इस गलती को सुधारा जा सके और विधानसभा चुनाव में अच्छे परिणाम लाए जा सकें। झारखंड में कुल विधानसभा सीटों की संख्या 81 है। इनमअनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित सीटों की संख्या 28