पार्टी सुप्रीमो का पद बचाने को कुछ दिन के सीएम बनने वालों की कतार में शामिल हुए चंपई, राबड़ी व जीतन राम पहले ही कर चुके हैं ऐसा
रांची : झारखंड और बिहार में सियासी परिवर्तन खूब होते रहते हैं। सत्ता के लिए गठबंधन की यहां खूब मिसाल मिलती हैं। इसी तरह, जब कभी पार्टी सुप्रीमो की गद्दी खतरे में दिखी तो वह अपने किसी करीबी को सीएम बना देते हैं और बाद में संकट खत्म होते ही उसे हुकूमत के तख्त से उतार कर खुद बैठ जाते हैं। ऐसा झारखंड में पहली बार नहीं हुआ कि जेल जाने से पहले हेमंत सोरेन ने अपनी गद्दी महफूज रखने के लिए चंपई सोरेन को उस पर बैठा दिया हो और जेल से वापस आने पर फिर गद्दी हथिया ली हो। ऐसा बिहार में पहले हो चुका है। लालू यादव जब जेल जा रहे थे तो अपनी गद्दी अपनी ही पत्नी राबड़ी देवी को सौंप कर गए थे। इसी तरह, बिहार के सीएम नीतिश कुमार ने अपनी जगह तब अपने भरोसेमंद नेता माने जाने वाले जीतन राम मांझी को बिहार की गद्दी पर बैठा दिया था।
कैसे सीएम बनी थीं राबड़ी देवी
बिहार में चारा घोटाले में नाम आने के बाद बिहार के सीएम लालू प्रसाद यादव के खिलाफ 25 जुलाई 1997 को गिरफ्तारी वारंट जारी हो गया था। इसके बाद लालू प्रसाद यादव पर गिरफ्तारी की तलवार लटक रही थी। लालू प्रसाद यादव जानते थे कि अगर वह जेल चले गए तो उनकी सरकार डांवाडोल हो सकती है। कोई भी सीएम के पद पर कब्जा जमा लेगा तो वापस गद्दी पाना मुश्किल हो जाएगा। इसीलिए उन्होंने जेल जाने से पहले अपनी पत्नी राबड़ी देवी को मुख्यमंत्री बना दिया। मुख्यमंत्री बनने से पहले राबड़ी देवी का कोई सियासी अनुभव नहीं था। वह राजनीति का ककहरा तक नहीं जानती थीं। बाद में बिहार में 1999 में राष्ट्रपति शासन लगाया गया। तब तक राबड़ी देवी ने बिहार की सरकार चलाई। इसी बीच लालू प्रसाद यादव जेल से रिहा हो गए थे। मगर, लालू प्रसाद यादव ने राबड़ी को गद्दी पर बने रहने दिया। यही नहीं, अगले विधानसभा चुनाव के बाद उनकी पार्टी की सरकार बनी और राबड़ी देवी मुख्यमंत्री बनी रहीं। वह साल 2005 तक सीएम बनी रहीं। बाद में नीतिश कुमार ने बिहार की सत्ता संभाली।
जीतन राम मांझी की कैसे खुली किस्मत
जीतन राम मांझी पहले जदयू में हुआ करते थे। वह मुख्यमंत्री नीतिश कुमार के काफी करीबी माने जाते थे। साल 2014 के लोकसभा चुनाव में जदयू का खराब प्रदर्शन हुआ था। इसके बाद बिहार में उथल-पुथल शुरू हो गई थी। नीतिश कुमार को लगा कि केंद्र सरकार बिहार को अस्थिर करना चाहती है। इसे देखते हुए नीतिश कुमार बिहार की गद्दी से उतर गए और जीतन राम मांझी को सीएम बना दिया। उन्होंने सीएम के रूप में महादलित नेता को चुना ताकि साजिश करने वालों की नाक में नकेल डाली जा सके। जदयू एनडीए से बाहर हो गई थी। इस हालात में जीतन राम मांझी के लिए विश्वास मत हासिल करना मुश्किल था। मगर, मुसीबत की इस घड़ी में राजद और कांग्रेस ने नीतिश कुमार को सहारा दिया। विधानसभा में जीतन राम मांझी की सरकार राजद और कांग्रेस के समर्थन से बच गई थी।
जीतन राम मांझी ने इस्तीफा देने से कर दिया था मना
बाद में हालात में सुधार होने पर नीतिश कुमार ने जीतन राम मांझी से कहा कि वह उनके लिए गद्दी छोड़ दें। मगर, जीतन राम मांझी के मन में लालच आ गई और उन्होंने इस्तीफा देने से मना कर दिया। इसके बाद नीतिश कुमार ने जीतन राम मांझी को पार्टी से निकाल दिया। इस तरह, विधानसभा में जीतन राम मांझी की सरकार अल्पमत में आ गई। इसके बाद राज्यपाल ने जीतन राम मांझी से विश्वास मत हासिल करने को कहा। बाद में जीतन राम मांझी जोड़ तोड़ कर अपनी सरकार बचाने में लग गए। लेकिन, वह जादुई आंकड़ा नहीं छू पा रहे थे। इसलिए जीतन राम मांझी को इस्तीफा देना पड़ा।
चंपई सोरेन के हाथ भी लगी बाजी
इस साल 31 जनवरी को ईडी जब मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को गिरफ्तार करने पहुंची तो झारखंड का सियासी संकट गहरा गया। पहले तो यह चर्चा चली थी कि हेमंत सोरेन अपनी पत्नी कल्पना सोरेन को सीएम बनाएंगे। इसके लिए विधायकों की मीटिंग भी हुई। इस मीटिंग में कल्पना सोरेन भी शामिल हुईं। मगर, तब झामुमो में ही मौजूद हेमंत सोरेन की भाभी सीता सोरेन ने इसका विरोध कर दिया। इसके बाद चंपई सोरेन को सीएम बनाया गया। चंपई सोरेन झामुमो के सुप्रीमो शिबू सोरेन के विश्वास पात्र माने जाते हैं। इसलिए उन्हीं को गद्दी पर बैठाया गया ताकि जब हेमंत सोरेन जेल से बाहर आएं तो चंपई उन्हें आसानी से गद्दी सौंप दें। यही हुआ। जेल से छूटने के बाद हेमंत सोरेन ने बाहर आते ही अपनी सीएम की गद्दी संभाल ली है।