रांची : कहते हैं कि इतिहास अपने को दोहराता है। ऐसा अब सूबे की सियासत में देखने को मिल रहा है। झारखंड की राजनीति भी बिहार के नक्श-ए-कदम पर चल पड़ी है। फरवरी 2015 में जो कुछ बिहार में हुआ था वही अब झारखंड में दोहराया जा रहा है। चंपई सोरेन की वर्तमान हालत बिहार के जीतनराम मांझी की तरह ही है। कोल्हान टाइगर चंपई सोरेन बिहार के जीतन राम मांझी की राह पर हैं। शायद यही वजह रही कि जीतन राम मांझी इस प्रकरण से इतना गदगद हुए कि सबसे पहले उन्हीं ने चंपई सोरेन को बगावत की बधाई दे डाली। आइए जानते हैं कि जीतन राम मांझी किस तरह जदयू से अलग हुए थे और अब चंपई सोरेन राजनीति में कौन से नए गुल खिलाने जा रहे हैं।
जीतन ने भी कुर्सी से हटने के बाद की थी बगावत
बिहार के सियासतदान जीतन राम मांझी भी कुर्सी छिनने के बाद बगावत करने के मामले में खूब चर्चित हुए थे। आज से नौ साल पहले झारखंड वाली राजनीति बिहार में घटित हो चुकी है। तब जीतन राम मांझी ने नीतिश कुमार से अलग होकर अपनी नई पार्टी बना ली थी। साल 2014 में लोकसभा चुनाव में जदयू को कम सीटें मिली थीं। इसके साथ ही भाजपा अंदरखाने ऐसी सियासी खिचड़ी पका रही थी कि नीतिश कुमार को अपनी कुर्सी खतरे में दिखी। तभी नीतिश कुमार ने मई 2014 में जीतन राम मांझी को सीएम की कुर्सी पर बैठा दिया था। मगर, नौ महीने के अंदर ही नीतिश कुमार को लगा कि जीतन राम मांझी भाजपा के साथ सियासी पेंग बढ़ा रहे हैं। इसके बाद फरवरी 2015 में नीतिश कुमार ने अपनी स्थिति मजबूत की और फिर जीतन राम मांझी को हटा दिया। मुख्यमंत्री की कुर्सी से हटते ही जीतन राम मांझी आगबबूला हो गए थे। उन्होंने अपनी पार्टी हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा बनाई और फिर भाजपा के साथ गठबंधन कर लिया। अभी झारखंड में यही तस्वीर है। जनवरी में ईडी ने सीएम हेमंत सोरेन को अरेस्ट किया तो उन्होंने कोल्हान टाइगर चंपई सोरेन की ताजपोशी कर दी। मगर, जब हेमंत सोरेन जेल से छूट कर आए तो उन्हें कई तथ्य पता चले। इंडिया गठबंधन के नेताओं ने भी उन्हें बताया कि अंदरखाने क्या राजनीति चल रही है। किस पार्टी के इशारे पर अधिकारियों की ट्रांसफर-पोस्टिंग कराई जा रही है। छह महीने में ही सीएम की कुर्सी से हटा दिए गए चंपई सोरेन अब बगावत की राह अख्तियार कर चुके हैं। वह भी अपनी नई पार्टी बनाने जा रहे हैं।
भाजपा ने क्यों नहीं लिया चंपई को
भाजपा ने चंपई सोरेन को पार्टी में क्यों नहीं लिया। आपरेशन लोटस के फेल होने के बाद बीजेपी ने चंपई सोरेन को पार्टी में लेने से इंकार कर दिया। इसकी सबसे बड़ी वजह यही रहीं कि अगर पार्टी चंपई को भाजपा में लेती तो इससे आदिवासियों के बीच में पार्टी की इमेज को नुकसान पहुंचने का खतरा था। झामुमो पहले दिन से कहती आई है कि भाजपा आदिवासी मुख्यमंत्री के पीछे पड़ी है। वह आदिवासी सीएम को झारखंड की कुर्सी पर नहीं देखना चाहती है। इसी वजह से वह हेमंत सोरेन के पीछे पड़ी रहती है। ऐसे में इस इल्जाम से बचने के लिए चंपई को भाजपा में नहीं लिया गया है। माना जा रहा है कि चुनाव में चंपई सोरेन और भाजपा दोनों मिल कर झामुमो पर हमलावर होंगे। हेमंत सोरेन पर अपने परिवार को ही आगे बढ़ाने का आरोप लगाया जाएगा। इसके अलावा, बांग्लादेशी घुसपैठ के मुद्दे पर भी भाजपा व चंपई हेमंत सोरेन को घेरेंगे।
समझें आदिवासी सीटों का गणित
भाजपा आदिवासियों के कद्दावर नेता हेमंत सोरेन को चुनाव में शिकस्त देने के लिए आदिवासी कार्ड खेलने की योजना तैयार कर रही है। चंपई सोरेन उसकी इस योजना में फिट होंगे। आदिवासी शिबू सोरेन को सम्मान देते हैं। इसी नाते आदिवासी समाज में हेमंत सोरेन का भी सियासी कद ऊंचा है। भाजपा इस कद को छोटा करना चाहती है। भाजपा के आदिवासी नेता भाजपा की इस योजना में फिट नहीं बैठ पा रहे थे। इसीलिए, चंपई को खड़ा किया गया है। हेमंत सोरेन के कद का इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि झारखंड में आदिवासियों के लिए कुल 28 विधानसभा सीटें आरक्षित हैं। इनमें से 22 पर इंडिया गठबंधन का कब्जा है। इनमें से 17 सीटें अकेले झामुमो के पास हैं। लोकसभा में 14 में से पांच सीटें आरक्षित हैं। हाल ही में हुए लोकसभा चुनाव में इन सभी सीटों पर इंडिया गठबंधन ने कब्जा कर लिया है। इनमें से दो सीटें पहले भाजपा के पास थीं जो चुनाव में उसके हाथ से निकल गईं।