झारखंड में सियासी सुनामी आने वाली है। अलग-अलग पार्टियों में बडे पैमाने पर तोडफोड होने वाली है। भारतीय जनता पार्टी किसी भी कीमत पर इस बार झारखंड में सरकार बनाना चाह रही है। भले ही इसके लिए दूसरी पार्टियों के विधायकों को ही भाजपा में क्यों न शामिल करनी पडे। सूत्र बताते हैं कि भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने इस मिशन की कमान असम के मुख्यमंत्री हेमंता विश्व शर्मा को सौंपी है। झारखंड में ऑपरेशन लोटस की शुरुआत हो गयी है। पहले निशाना चंपई सोरेन पर लगाया गया है, चंपई सोरेन ने रास्ता बदल भी लिया है। आखिर उनका झारखंड मुक्ति मोरचा के साथ तल्खी और भाजपा के करीब जाने की क्या है कारण ?
चंपई को कोल्हान टाइगर कहा जाता है। टाइगर को पिछले छह माह में देश की सभी मीडिया चैनलों की हेडलाइन बनने का मौका मिला। पहली बार 31 जनवरी 2024 को जब झारखंड के सीएम हेमंत सोरेन को इडी ने मनी लॉंड्रिंग के एक केस में जेल भेज दिया तो हेमंत सोरेन ने अपनी पत्नी कल्पना सोरेन, भाई बसंत सोरेन या फिर परिवार के किसी अन्य को सीएम की गद्दी पर बैठाने के बजाय अपने सबसे करीबी चंपई सोरेन को सीएम की गद्दी सौंप दी। यह अंदाजा शायद खुद चंपई सोरेन को भी नहीं था कि उन्हें सीएम बनाया जाएगा। उन दिनों वे देश भर की सुर्खियां बने थे। लेकिन, सीएम की गद्दी से उतरते ही अचानक भाजपा के साथ उनकी नजदीकियां, भाजपा का उनके प्रति सॉफ्ट कॉर्नर, कोलकाता जाकर भाजपा के बडे नेता से मुलाकात उसके बाद दिल्ली पहुंचना, घर से झारखंड मुक्ति मोरचा का झंडा बैनर हटा देना, ट्विटर हैंडल से झारखंड मुक्ति मोरचा का चिन्ह हटा देना, जिस हेमंत सोरेन का नाम अपने संबोधन में कम से कम बीस बार चंपई सोरेन लेने थे, उस हेमंत सोरेन का नाम झंडोतोलन कार्यक्रम में एक बार भी नहीं लेना, एक बार फिर उन्हें मीडिया की सुर्खियां बना रहा है। भाजपा के सूत्र और राजनीतिक जानकार बता रहे हैं कि चंपई सोरेन का भाजपा के साथ डील पक्की है। वे कभी भी भगवा कैंप में शामिल हो सकते हैं।
चंपई सोरेन झारखंड आंदोलनकारी रहे, लेकिन कभी जेल नहीं गए
चंपई सोरेन सरायकेला से छह बार के विधायक हैं। झारखंड अलग राज्य के आंदोलन के समय से ही वे गुरुजी के बेहद करीबी
रहे हैं। हालांकि अलग राज्य के आंदोलन में वे कभी जेल नहीं गए। वर्ष 1991 में उन्होंने पहली बार निरदलीय चुनाव लडा और जीत गए। उसके बाद 1995 में उन्होंने झारखंड मुक्ति मोरचा के टिकट पर चुनाव लडा और विधायक बने। तब से लेकर आज तक जब-जब झारखंड मुक्ति मोरचा सत्ता में आयी, चंपई सोरेन अलग-अलग विभागों में मंत्री बनाए गए। झामुमो ने 2019 के चुनाव में लोकसभा का टिकट भी दिया, लेकिन वे हार गए। फिर 2019 में ही जब झारखंड मुक्ति मोरचा सत्ता में आई तो उन्हें पथ परिवहन विभाग का मंत्री बनाने के साथ ही राज्य का मुख्यमंत्री भी बनाया गया। इस प्रोफाइल को देखने के बाद यह बात को साफ है कि चंपई सोरेन के जीवन में झारखंड मुक्ति मोरचा का बडा योगदान है।
भाजपा के दिल्ली के नेताओं ने कहीं चूक तो नहीं की ?
चंपई सोरेन झारखंड में तीन बार मंत्री और एक बार मुख्यमंत्री बने। कद बडा है, लेकिन, मंत्री रहते इतना बडा भी नहीं कि वे कोल्हान या फिर कोल्हान के बाहर की सीटों पर कोई बडा करिश्मा कर सकें। दिल्ली की मीडिया की चकाचौंध से दूर अगर धरातल पर रह कर अगर बात करें, वे खुद कोल्हान से आते हैं, लेकिन पूरे कोल्हान में ही चंपई सोरेन का कोई खास प्रभाव नहीं है। कहते हैं कि आंकडे कभी झूठ नहीं बोलते हैं। वर्ष 2005 में चंपई सोरेन खुद 880 वोटों के मामूली अंतर से भाजपा के लक्ष्मण टुडू से जीत सके थे। वह भी री काउंटिंग में। इसके साथ ही 2014 के चुनाव में भी वे सिर्फ 1100 वोटों से ही चुनाव जीत सके थे। इसके अलावा झारखंड की राजनीति में करीब से वास्ता रखने वाले जानकार भी यह मानते हैं कि चंपई सोरेन का प्रभाव पूरे कोल्हान में ही नहीं है। चाहे वह सरायकेला के आस-पास की सीट जमशेदपुर पूर्वी या पश्चिमी हो, बहरागोडा हो या फिर मंझगांव, मनोहरपुर या फिर जगन्नाथपुर। चंपई सोरेन बडी मुश्किल से अपनी सीट जीतते आए हैं। वर्ष 2000 में तो खुद भाजपा के अनंत राम टुडू के हार गए थे। उन्हें पूरा झारखंड तब सही से जान सका, जब उन्हें मुख्यमंत्री बनाया गया। वे आदिवासियों के बीच उतने प्रभावशाली हैं भी नहीं कि आदिवासी उनकी बातों पर बगावत कर दे।
गीता कोड़ा वाला प्रयोग कर रही है भाजपा
भाजपा के पास अभी पूर्व सीएम की फौज खडी है। बाबूलाल मरांडी, अर्जुन मुंडा के साथ ही भाजपा की टिकट पर ही रघुवर दास सीएम बने। अप्रत्यक्ष रूप से ही सही लेकिन गीता कोड़ा के बहाने मधु कोडा भी भाजपा कैंप में ही हैं। इतने बडे धुरंधरों के रहने के बावजूद अब चंपई सोरेन के चेहरे को लेकर भाजपा आगे बढने का प्रयास कर रही है। जानकारों का मानना है कि इसकी कोई गारंटी नहीं कि इसका ग्राउंड जीरो पर कोई बहुत बडा प्रभाव नहीं होने वाला है