हजारीबाग : बरही विधानसभा सीट पर इधर कुछ साल में कांग्रेस का दबदबा बढ़ा है। इस सीट पर कांग्रेस के विधायक उमा शंकर अकेला अब अपने बेटे की ताजपोशी करने जा रहे हैं। राजनीतिक हालात यही संकेत दे रहे हैं। हो सकता है कि इस सीट से विधानसभा चुनाव 2024 में उमा शंकर अकेला की जगह उनके बेटे रवि शंकर अकेला ताल ठोकते नजर आएं तो ताज्जुब मत कीजिएगा। क्योंकि, इस बार बरही से उमाशंकर अकेला के साथ ही उनके बेटे रविशंकर अकेला ने भी टिकट की दावेदारी का आवेदन कर दिया है। माना जा रहा है कि अगर राजनीतिक कील-कांटा दुरुस्त रहा तो रवि शंकर अकेला ही यहां से अपने पिता उमा शंकर अकेला की सियासी विरासत संभालेंगे। रविशंकर अकेला ही कांग्रेस के टिकट पर यहां चुनाव लड़ते नजर आएंगे।
1952 से 1977 तक रामगढ़ राजपरिवार का था वर्चस्व
बरही विधानसभा क्षेत्र में 1952 से 1977 तक रामगढ़ राजपरिवार का दबदबा रहा है। इस सीट पर रामगढ़ राजपरिवार के लोग या उनके समर्थक ही जीत का परचम लहराते रहे हैं। राजघराने के कामाख्या नारायण सिंह, कुंवर इंद्र जीतेंद्र नारायण सिंह और राजमाता ललिता राजलक्ष्मी इसी सीट से चुनाव जीत कर बिहार विधानसभा में पहुंची थीं। बरही में पहला आम चुनाव 1952 में हुआ था। इस चुनाव में ही रामगढ़ राजघराने ने यहां से जीत हासिल की थी। इस सीट से रामगढ़ के राजा कामाख्या नारायण सिंह की पार्टी के उम्मीवार विधायक बने थे। कामाख्या नारायण सिंह ने अपनी अलग पार्टी बनाई थी। इस पार्टी का नाम छोटा नागपुर संताल परगना जनता पार्टी था। पहले ही चुनाव में छोटा नागपुर संताल परगना जनता पार्टी की जीत हुई थी। पहले विधानसभा चुनाव 1952 में राजा कामाख्या नारायण सिंह ने बरही से पदमा गांव के रहने वाले एडवोकेट रामेश्वर प्रसाद महथा को प्रत्याशी बनाया था। रामेश्वर प्रसाद महथा की जीत हुई थी। मगर, 1962 के विधानसभा चुनाव में रामेश्वर प्रसाद महथा ने राजा से अनबन कर ली और कांग्रेस में चले गए। इससे राजा नाराज हुए और रामेश्वर प्रसाद महथा को हराने के लिए उन्होंने बरही से खुद चुनाव लड़ा। 1962 के चुनाव में राजा कामाख्या सिंह इस सीट से जीते। 1967 और 1969 में राज परिवार के इंद्र जीतेंद्र नारायण सिंह बरही से विधायक बने।
1971 में राजपरिवार की हुई थी हार
1971 में भारत पाक युद्ध में भारत की जीत से पूरा देश उत्साहित था। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी वीरांगना बन कर उभरी थीं। इस उत्साह का असर बरही में भी दिखा। यहां 1972 में हुए आम चुनाव में कांग्रेस के उम्मीदवार रामेश्वर प्रसाद महथा ने जीत हासिल की और तीसरी बार यहां से विधायक बने। मगर, राजघराने ने 1977 के विधानसभा चुनाव में अपनी खोई हुई विरासत फिर हासिल कर ली और महारानी ललिता राजलक्ष्मी विजयी हुईं। इसके बाद इस सीट से राजघराने का असर धीरे-धीरे खत्म होने लगा। 1980 और 1985 में कांग्रेस के निरंजन सिंह विधायक चुने गए। 1990 में भाकपा के रामलखन सिंह बरही के विधायक बने। 1995 में कांग्रेस के मनोज कुमार यादव विधायक बने। उनका यहां की राजनीति में दबदबा बना। वह यहां से चार बार विधायक बने।
लोकसभा चुनाव में भाजपा रही आगे
बरही विधानसभा हजारीबाग लोकसभा क्षेत्र में आती है। इस साल हुए लोकसभा चुनाव में बरही विधानसभा में भाजपा आगे रही थी। यहां से मनीष जयसवाल को 1 लाख 33 हजार 167 वोट मिले थे। जबकि, कांग्रेस के उम्मीदवार जेपी पटेल यहां से काफी पीछे रहे थे। उन्हें सिर्फ 51 हजार 988 वोट ही मिल पाए थे।
कब कौन जीता
1952- रामेश्वर प्रसाद महथा, छोटा नागपुर संताल परगना जनता पार्टी
1957- रामेश्वर प्रसाद महथा, छोटा नागपुर संताल परगना जनता पार्टी
1962- कामाख्या नारायण सिंह, छोटा नागपुर संताल परगना जनता पार्टी
1967- इंद्र जीतेंद्र नारायण सिंह- छोटा नागपुर संताल परगना जनता पार्टी
1969- इंद्र जीतेंद्र नारायण सिंह- छोटा नागपुर संताल परगना जनता पार्टी
1972- रामेश्वर प्रसाद महथा- कांग्रेस
1977- राजमाता ललिता राजलक्ष्मी, छोटा नागपुर संताल परगना जनता पार्टी
1980- निरंजन सिंह, कांग्रेस
1985- निरंजन सिंह, कांग्रेस
1990- रामलखन सिंह, भाकपा
1995- मनोज कुमार यादव, कांग्रेस
2000- मनोज कुमार यादव- कांग्रेस
2005- मनोज कुमार यादव- कांग्रेस
2009- उमाशंकर अकेला-भाजपा
2014- मनोज कुमार यादव- कांग्रेस
2019- उमा शंकर अकेला- कांग्रेस