–दोस्त दोस्त ना रहा, दोस्ती में कैसे आई दरार, बने सियासी दुश्मन
झारखंड की 81 सीटों में से एक जगन्नाथपुर विधानसभा सीट पर दिलचस्प मुकाबला हो रहा है। यहां मधु कोड़ा की पत्नी गीता कोड़ा अपने पति के पुराने दोस्त से दो-दो हाथ करती नजर आ रही हैं। यानी, दोस्त अब दोस्त ना रहा। पुराने दोस्त अब सियासी दुश्मन हैं। दोस्ती कब टूटी और इस सीट को जीतने के लिए उम्मीदवार क्या मास्टर स्ट्रोक चल रहे हैं। क्या है सोनाराम सिंकू की वह संजीवनी जिससे वह फिर इस सीट पर जीत का दावा कर रहे हैं। गीता कोड़ा की रणनीति पर क्या सवाल उठ रहे हैं। इस खबर में हम इसका पूरा विश्लेषण करेंगे।
सोनाराम सिंकू को बना दिया था विधायक
गीता कोड़ा के सांसद बनने के बाद पूर्व सीएम मधु कोड़ा ने अपनी पत्नी की जगन्नाथपुर विधानसभा सीट साल 2019 के विधानसभा चुनाव में अपने दोस्त सोनाराम सिंकू के हवाले कर दी थी। उम्मीद थी कि जब जरूरत होगी सोनाराम सिंकू सीट खाली कर देंगे। गीता कोड़ा जब तक सांसद थीं तब तो मधु कोड़ा और सोनाराम सिंकू की खूब पटी। मगर, जब मधु कोड़ा ने इस साल चुनाव से पहले पलटी मारी तो उनके दोस्त सोनाराम सिंकू का सियासी सितारा गर्दिश में आ गया। सोनाराम सिंकू पर भी बीजेपी में आने का प्रेशर बनने लगा। मगर, सोनाराम सिंकू ने वेट एंड वाच की स्थिति में बने रहना ठीक समझा। गीता कोड़ा अगर सिंहभूम लोकसभा सीट से इस साल हुए लोक सभा चुनाव में जीत जातीं तो शायद इस सीट पर चुनावी सीन अलग होता। मगर, ऐसा नहीं हो सका। सोनाराम सिंकू ने लोकसभा चुनाव में जेएमएम की उम्मीदवार जोबा मांझी को जिताने में जी जान लगा दी। गीता कोड़ा हार गईं। गीता कोड़ा अपने गढ जगन्नाथपुर में भी पीछे रह गई थीं। इस तरह लोकसभा चुनाव के दौरान ही मधु कोड़ा और सोनाराम सिंकू के बीच सियासी खाई चौड़ी हो गई।
अब मधु और सोनाराम के बीच 36 का आंकड़ा
अब दोनों के बीच छत्तीस का आंकडा है। गीता कोड़ा को भाजपा से टिकट मिल गया तो सोनाराम सिंकू पर कांग्रेस ने भरोसा जताया। सोनाराम इस सीट के सिटिंग विधायक थे ही। अब सोनाराम सिंकू के पुराने मित्र मधु कोड़ा की पत्नी से ही उनकी लड़ाई है।
नेटवर्क पर कब्जे की जंग
जगन्नाथपुर मधु कोड़ा का गढ रहा है। साल 2000 से 2014 तक इस सीट पर मधु कोड़ा और गीता कोड़ा का कब्जा रहा। साल 2019 के चुनाव में सोनाराम सिंकू कोई अपने दम पर चुनाव नहीं जीते। उन्हें मधु कोड़ा ने ही चुनाव जितवाया था। राजनीतिक सूत्रों की मानें तो इधर बीच पांच साल में सोनाराम सिंकू ने मधु कोड़ा के नेटवर्क पर कब्जा कर लिया है। मधु कोड़ा के कई पुराने वफादार अब सोनाराम सिंकू की दोस्ती का दम भर रहे हैं। इस हालात में गीता कोड़ा के सामने चुनावी चुनौती बढ़ गई है। गीता कोड़ा को कई गुना अधिक मेहनत करनी पड़ रही है। मधु कोड़ा अपनी पत्नी को विधायक बनाने के लिए कोई कोर कसर नहीं छोड़ना चाहते। इसलिए, वह अपने पुराने वफादारों को मिलाने के लिए जी जान से मेहनत में जुटे हैं।
कोड़ा दंपति की 24 साल की पूंजी है जगन्नथपुर
मधु कोड़ा साल 2000 के विधानसभा चुनाव में जगन्नाथपुर के विधायक बने थे। इसके बाद वह मंत्री भी बने थे। साल 2005 में भाजपा ने मधु कोड़ा को टिकट नहीं दिया। इस पर मधु कोड़ा ने भाजपा को अपनी ताकत का एहसास दिलाने के लिए निर्दलीय चुनाव लडा और जीत गए। निर्दलीय विधायक के तौर पर वह झारखंड के सीएम बन गए और जेएमएम और कांग्रेस से मिल कर 22 महीने तक सरकार चलाई थी। इसके बाद वह घोटाले में जेल गए। बाहर आने के बाद अब वह फिर दोबारा भाजपा में शामिल हो गए हैं। मगर, इस बार भाजपा का सफर मधु कोड़ा को रास नहीं आ रहा है। उनकी पत्नी गीता कोड़ा सिंहभूम से चुनाव हार चुकी हैं।
वोटों की खाई पाटने में जुटे कोड़ा दंपति
लोकसभा चुनाव में गीता कोड़ा जगन्नाथपुर से ही तकरीबन 20 हजार से अधिक वोटों से पिछड गई थीं। कोड़ा दंपति इस खाई को पाटने के लिए जुट गए हैं। वह लगातार मेहनत कर रहे हैं। कोड़ा दंपति ने अपना राजनीतिक अस्तित्व बचाने के लिए पूरी ताकत झोंक दी है। साल 2009 और 2014 में मधु कोड़ा की अपनी पार्टी जेबीएसपी से जगन्नाथपुर की विधायक बनने वाली गीता कोड़ा अगर यह चुनाव भी हारती हैं तो उनके साथ ही मधु कोड़ा का भी राजनीतिक कॅरियर खत्म हो सकता है। राजनीतिक जानकारों का यही आकलन है। इसी वजह से मधु कोड़ा और गीता कोड़ा इस चुनाव के लिए रात दिन एक किए हुए हैं।
जेएलकेएम व झापा भी दे रही टेंशन
निर्दलीय उम्मीदवार मंगल सिंह बोबांगा भी कोडा दंपति को टेंशन दे रहे हैं। इनके साथ भी मतदाता जुड रहे हैं। जयराम महतो की पार्टी लक्ष्मी नारायण लागुरी और झारखंड पार्टी के लक्ष्मी नारायण गागराई के साथ भी लोगों का जुटान है। यह तीनों भी कोडा दंपति के लिए सिरदर्द बने हुए हैं।
जगन्नाथपुर में कब किसने मारी बाजी
जगन्नाथपुर सीट पर साल 2000 के चुनाव में बीजेपी के टिकट पर मधु कोड़ा ने कांग्रेस के सोनाराम बिरुआ को 7 हजार 424 वोटों से हराया था। मधु कोड़ा को 25 हजार 818 वोट मिले थे। जबकि, सोनाराम बिरुआ को 18 हजार 394 वोट मिले थे। साल 2005 के चुनाव में निर्दलीय चुनाव लड़ रहे मधु कोड़ा ने 26, हजार 842 वोट पा कर कांग्रेस के मंगल सिंह सिंकू को 14 हजार 787 वोटों से हराया था। मंगल सिंह सिंकू को 12 हजार 95 वोट मिले थे। साल 2009 के चुनाव में इस सीट से मधु कोड़ा की पत्नी गीता कोड़ा ने अपने पति की पार्टी जेबीएसबी के टिकट पर 37 हजार 145 वोट पाकर भाजपा के सोनाराम बिरुआ को 25 हजार 740 वोटों से हराया था। सोनाराम बिरुआ को 11 हजार 405 वोट मिले थे। साल 2014 के चुनाव में गीता कोड़ा ने 48 हजार 546 वोट पाकर भाजपा के मंगल सिंह सुरेन को 24 हजार 611 वोटों से हराया था। मंगल सिंह सुरेन को 23 हजार 935 वोट मिले थे। सााल 2019 के चुनाव में सांसद बन जाने की वजह से गीता कोड़ा की जगह मधु कोड़ा ने अपने दोस्त सोनाराम सिंकू को अपनी सियासत सौंप दी थी। अब इस सियासत पर सोनाराम सिंकू का कब्जा हो चुका है। अब देखना है कि मधु कोड़ा अपना राजनीतिक अस्तित्व बचा पाते हैं या नहीं। गीता कोड़ा अपने पति की सियासी विरासत सोनाराम सिंकू से वापस छीन पाती हैं या नहीं। पूरा झारखंड इस पर टकटकी लगाए बैठा है। इसका फैसला मतगणना के दिन होना है।