जमशेदपुर : कोल्हान टाइगर कहे जाने वाले चंपई सोरेन ने अपना राजनीतिक सफर 1991 में विधानसभा चुनाव में सरायकेला सीट से जीत के साथ शुरू किया था। तब उन्हें निर्वाचन आयोग ने झामुमो से दो उम्मीदवार सामने आने की वजह से तीर-धनुष चुनाव चिन्ह नहीं आवंटित किया था। चंपई सोरेन को घंटी चुनाव चिन्ह पर लड़ना पड़ा था। इसके बाद भी चंपई सोरेन ने सरायकेला से जीत दर्ज की थी जो साल 2000 के चुनाव को छोड़ कर अब तक जारी है। अभी तक वह झामुमो के टिकट पर चुनाव जीतते रहे हैं। इस बार उन्होंने पाला बदल लिया है। पहली बार वह भाजपा के टिकट पर सरायकेला से लड़ेंगे। अब देखना यह है कि पूर्व सीएम अर्जुन मुंडा की तरह वह झारखंड के सीएम की कुर्सी तक पहुंचते हैं या फिर उनका हश्र कृष्णा मार्डी, सूरज मंडल आदि नेताओं जैसा होने वाला है।
पहले चुनाव में क्यों नहीं मिला था झामुमो का सिंबल
सरायकेला सीट से 1985 और 1990 में कृष्णा मार्डी विधायक बने थे। मगर, 1991 में कृष्णा मार्डी ने सिंहभूम से लोकसभा का चुनाव लड़ा और सांसद बन गए। इसके बाद सरायकेला सीट खाली हो गई। निर्वाचन आयोग ने यहां उपचुनाव कराने का एलान किया। चंपई सोरेन ने यहां से टिकट की दावेदारी की। मगर, सिंहभूम के तत्कालीन सांसद कृष्णा मार्डी अपनी पत्नी मोती मरांडी को चुनाव लड़ाना चाहते थे। चंपई और कृष्णा मार्डी दोनों पटना पहुंच गए थे। बताते हैं कि झामुमो सुप्रीमो शिबू सोरेन और शैलेंद्र महतो भी कृष्णा मार्डी के साथ थे और यह तय था कि टिकट मोती मरांडी को ही मिलेगा।
चंपई ने पकड़ा था सूरज मंडल का साथ
मगर, चंपई सोरेन की शिबू सोरेन के खासमखास कहे जाने वाले सूरज मंडल से बनती थी। मोती मरांडी को पार्टी की तरफ से सिंबल का लेटर व एबी फार्म मिल गया था। इस पर शिबू सोरेन के दस्तखत थे। इस बात की जानकारी मिलते ही चंपई सोरेन रेस हो गए और सारी बात शैलेंद्र महतो से बताई। चंपई ने सूरज मंडल के आवास पर डेरा डाल दिया। मोती मरांडी को एबी फार्म मिल जाने से चंपई सोरेन निराश थे। मगर, सूरज मंडल ने नई तरकीब निकाली।
चंपई को भी मिला एबी फार्म, कर दिया था नामांकन
सूरज मंडल के पास शिबू सोरेन के हस्ताक्षर वाला एबी फार्म रहता था। उन्होंने एक फार्म चंपई सोरेन को दे दिया। चंपई फौरन पटना से लौटे और सरायकेला में नामांकन कर दिया। बाद में मोती मरांडी ने भी नामांकन कर दिया। अब झामुमो से दो-दो नामांकन हो गए थे। इसलिए, अधिकारियों ने दोनों में से किसी को भी तीर धनुष सिंबल नहीं दिया। इसके बाद चंपई सोरेन को घंटी चुनाव चिन्ह मिला। वह चुनाव लड़े और जीत दर्ज की। तब से अब तक चंपई सोरेन लगातार सरायकेला के विधायक बनते रहे हैं। सिर्फ साल 2000 में भाजपा ने अनंत राम टुडू को टिकट दिया था और वह जीत गए थे।
एक-एक कर बिखरते गए कद्दावर चेहरे
बताते हैं कि बाद में कृष्णा मार्डी, सूरज मंडल और शैलेंद्र महतो ने झामुमो छोड़ दी थी। इनके झामुमो छोड़ने के बाद इनकी सियासत पर ग्रहण लग गया। अब इन तीनों का झारखंड की सियासत में कोई वजूद नहीं है। हालांकि, इन्होंने अपनी सियासी जमीन तलाश करने की काफी कोशिश की मगर, कामयाबी नहीं मिली। अब देखना यह है कि चंपई सोरेन की सियासत कहां पहुंचती है।