क्यों खुलने जा रहा है चीनी कंपनियों के लिए देश का दरवाजा, जानें क्या है अंदरूनी मामला
नई दिल्ली : कभी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने चीनी कंपनियों पर प्रतिबंध लगाए थे। तब चीन के गद्दार और पीठ में छुरा भोंकने वाला देश बताया गया था और कहा गया कि चीनी कंपनियों को अपने देश में कारोबार नहीं करने दिया जाएगा। मगर, भारत की विदेश नीति पटरी बदलने वाली है। कहा जा रहा है कि कुछ बड़ी चीनी कंपनियों पर से पाबंदी हटाने की कवायद शुरू की गई है। इसके लिए कागजी प्रक्रिया चल रही है। इसे पूरे मामले में अब कई सवाल उठ रहे हैं ? क्या है पूरा मामला ? क्यों किया जा रहा है ऐसा ? क्यों चीनी कंपनियों की तरफ से नरम पड़ रहा है मोदी सरकार का रवैया ? क्या अब चीन सुधर रहा है ? इस खबर में हम इस बारे में विस्तार से जानेंगे।
भारत में फिर हो सकती है चीनी कंपनियों की इंट्री
देश में फिर चीनी कंपनियों की इंट्री हो सकती है। भारत में चीन की कंपनियों के निवेश पर जो पाबंदी लगाई गई थी, उसे हटाने की बात हो रही है। सोलर माड्यूल और क्रिटिकल मिनरल्स के क्षेत्र में काम करने वाली कंपनियों को भारत में इंट्री दी जाएगी। सुरक्षा से जुड़ी संस्थाएं, वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय इस मामले की जांच कर रहे हैं। से पहले एक आर्थिक सर्वे हुआ था। इस सर्वे में कहा गया था कि अगर भारत को मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर में आगे बढ़ना है तो उसे चीन से निवेश लाना होगा। चीन कंपनियों को भारत में इंट्री देनी होगी। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि अमेरिका में भारत के निर्यात को बढ़ावा तभी दिया जा सकता है जब चीन से प्रत्यक्ष विदेशी निवेश आए।
क्या है प्रत्यक्ष विदेशी निवेश
विदेश की कोई कंपनी अगर भारत की किसी कंपनी में पैसा लगाती है तो इसे प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) कहते हैं। देश में एक नियम है कि जिन मुल्कों के साथ भारत की सीमा मिलती है वहां की कंपनियों को भारत की कंपनी में पैसा निवेश करने से पहले भारत सरकार से अनुमति लेनी होगी। पहले यह नियम पाकिस्तान, बांग्लादेश आदि देशों पर लागू था। मगर, गलवान की झड़प के बाद इसे चीन पर भी लागू कर दिया गया था।
गलवान की घटना के बाद चीन की कंपनियों पर लगे थी पाबंदी
साल 2020 में लद्दाख की गलवान घाटी में भारतीय सैनिकों की चीनी फौजियों के साथ झड़प हुई थी। इसके बाद भारत और चीन के संबंधों में दरार आ गई थी। भारत और चीन के संबंध खराब हो गए थे। केंद्र सरकार ने चीन की कंपनियों के हजारों-करोड़ रुपये के टेंडर रद कर दिए थे। चीन की कई कंपनियों को बाहर का रास्ता दिखा दिया गया था। उत्तर प्रदेश सरकार ने चीन से आने वाले बिजली के मीटर नहीं खरीदने का फैसला लिया था। एमटीएमएन और बीएसएनएल ने चाईनीज कंपनियों से फोर जी नेटवर्क के कल-पुर्जे नहीं लेंगे। हरियाणा सरकार ने भी। रेलवे ने भी 471 करोड़ रुपये का सिग्नलिंग प्रोजेक्ट का टेंडर रद कर दिया गया था। मेरठ रैपिड रेल का टेंडर भी रद कर दिया गया था। यह टेंडर चीन की कंपनी के पास था। हरियाणा सरकार ने चाईनीज कंपनी को मिला 480 करोड़ रुपये का टेंडर रद कर दिया था। चीनी नागरिकों को वीजा जारी करने की प्रक्रिया धीमी कर दी गई थी। साल 2019 में दो लाख चीनी नागरिकों को वीजा दिए गए थे। मगर, साल 2020 में सिर्फ 1500 चीनी नागिरकों को वीजा दिया गया था।
रोजगार बढ़ाने के लिए खुल रहा दरवाजा
अब केंद्र सरकार देश में रोजगार बढ़ाना चाहती है। इसके लिए सरकार को मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर को बढ़ावा देना होगा। इसीलिए वह चीनी कंपनियों के लिए देश का दरवाजा खोल रही है। सर्वे रिपोर्ट के अनुसार चीन की कंपनियों पर पाबंदी के चलते भारतीय कंपनियों को नुकसान उठाना पड़ा है। भारतीय कंपनियों में रोजगार के अवसर कम हुए हैं। मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर भी कमजोर पड़ा है। इधर बीच देश में विदेशी निवेश घटा है। क्रिटिकल मिनरल्स और सोलर पैनल बनाने में चीनी कंपनियां आगे हैं। इसीलिए देश में चीनी कंपनियों को लाने का इरादा है। इस वजह से बजट में विदेशी कंपनियों पर लगने वाले कारपोरेट टैक्स को 40 फीसदी से घटा कर 35 प्रतिशत कर दिया गया है।